बटुक भैरव BATUK BHAIRAV


भगवान भैरव को शिवजी का अंशावतार माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्याहन के समय भगवान शंकर के अंश से भैरवजी की व्युत्पत्ति हुई थी जिस कारण इस तिथि को काल भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार का प्रतीक बन चुका था तथा एक बार अपने मद से लिप्त होकर भगवान शिव के ऊपर भी आक्रामक हो गया, तब शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। कालान्तर में जिनकी दो शाखाएं बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड रूप में प्रसिद्ध हुए।


पुराणों में भैरव उल्लेख : तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख मिलता है - असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव तथा संहार भैरव। वहीं कालिका पुराण में 1. नंदी, 2. भृंगी, 3. महाकाल, 4. वेताल तथा 5. भैरव को शिवजी का गण बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी 1. महाभैरव, 2. संहार भैरव, 3. असितांग भैरव, 4. रुद्र भैरव, 5. कालभैरव, 6. क्रोध भैरव, 7. ताम्रचूड़ भैरव तथा 8. चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है तथा इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिव महापुराण में भैरवजी को परमात्मा शंकर का पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -

भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्ते वै न जानन्ति मोहिता: शिवमायया।।
भैरव साधना व ध्यान : ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है। जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

श्री बटुक भैरवजी की उपासना - इस वर्ष दिनांक 6 दिसंबर, 2012 को भैरव जयंती है। इस दिन शत्रु बाधा निवारण, कोर्ट-कचहरी संबंधी परेशानी, तंत्र क्रियाओं के प्रभाव को नष्ट करने व अभीष्ट प्राप्ति हेतु भगवान भैरव की आराधना विशेष फलदायी है। छोटी काशी के नाम से विख्यात जयपुर शहर में स्वर्ण पथ, मानसरोवर स्थित चमत्कारी बटुक भैरव जी का मंदिर सर्वाधिक जागृत, ज्वलंत और जन-जन के मन की अभिलाषा को पूर्ण करने वाला है। यहां अनेकानेक साधकों को अपने अभीष्ट की प्राप्ति होने के अनुभव नित-प्रति देखने व सुनने में आते हैं। भैरव अष्टमी अर्थात् भैरव जयंती के दिन प्रात: श्रद्धा व भक्तिभाव से भैरव मंदिर में जाकर यथासंभव पूजा अर्चना करें। भैरव पूजन के लिए त्रिकोण बनाकर सिंदूर अथवा रोली से मध्य में आधार बिंदू देकर उस पर आसन लगाना चाहिए। इसी तरह का एक और त्रिकोण बनाकर उसी पर दीपक प्रज्ज्विलत करें, दीपक में तिल का तेल भरकर दस दिक्पाल सहित अष्ट भैरवों को दीपदान करना चाहिए। भगवान भैरव जी की पूजा में एक चौमुखी दीपक भी अवश्य प्रज्जवलित करें। भैरवजी का सात्विक ध्यान करके भैरव स्रोत, भैरव नामावली, भैरव सहस्रनाम व इनके एक सौ आठ नाम से उपासना करें। इसके पश्चात इस मंत्र का जाप करें - " ह्रीं बटुकाय आपदुराणाय कुरु-कुरु बटुकाय ह्रीं " अथवा " बटुक भैरवाय नम: " का भी मंत्र जाप करना उत्तम है। पूजन सामग्री के रूप में रोली, मौली, सिंदूर, लाल वस्त्र व लाल फूल, गुड़, गुलगुला, उड़द का बडा, मधु, लाल चंदन का चूर्ण, तिल के तेल का दीपक, बूंदी का लड्डू, ईख का रस, सूजी का हलवा, भुना हुआ केला, उड़द की दाल का पापड़, इमरती, कच्चा दूध, घिसा लाल चंदन, अगरबत्ती व लोहबान का प्रयोग कर सकते हैं। भैरवजी की स्तुति के साथ ही इनके वाहन अर्थात श्वान (कुत्ते) को भी दूध, दही व मिष्ठान खिलाने से पुण्य प्राप्त होता है।
बटुक भैरव BATUK BHAIRAV बटुक भैरव BATUK BHAIRAV Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on नवंबर 27, 2018 Rating: 5

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