संशयात्‍मा विनश्‍यति


चरित्र कोई इकाई नहीं, बल्कि सहत्रों इकाइयों का समूह है। काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह के साथ आत्‍मविश्‍वास भी चरित्र का महत्‍वपूर्ण घटक है। आत्‍मविश्‍वास शब्‍द आत्‍म तत्‍व और उस पर विश्‍वास से जुड़कर बना है। जो भी ज्ञान, शक्ति और सामर्थ्‍य है वह इंसान के भीतर ही है। बस उसे पहचानने की जरूरत है। भारतीय ज्ञान विज्ञान में इसी आत्‍मविश्‍वास को पहचानने का प्रयास विभिन्‍न तरीकों से किया गया है। एक आम इंसान की जिंदगी में रोजमर्रा की समस्‍याओं का समाधान भी आत्‍मविश्‍वास के भीरत ही छिपा है। 
           
गीता में भगवान कृष्‍ण ने कहा है जो अज्ञानी है उनका नाश होगा, जो ज्ञानी हैं, लेकिन विवेकपूर्ण नहीं है, उसका नाश होगा, जो ज्ञानी और विवेकपूर्ण होने के बावजूद श्रद्धा से रहित है उनका भी नाश होगा, लेकिन ज्ञान, विवेक और श्रद्धा होने के बावजूद जो लोग संशय में होंगे, यानी जो अपने आत्‍म रूप को लेकर शंका करेंगे उनका नाश तय है। जब तक इंसान खुद को समझ नहीं लेता, तब तक वह खुद पर पूरी तरह विश्‍वास भी नहीं कर पाता है। ऐसे में उसकी अनंत ऊर्जा भी उसका साथ नहीं दे पाती है। जो लोग स्‍वयं को समझना शुरू करते हैं और अपनी शक्तियों पर विश्‍वास करना शुरू कर देते हैं, उन्‍हें हम तेजी से सफलता की सीढि़यों पर चढ़ते हुए देखते हैं। एक कमजोर आत्‍मविश्‍वास वाले व्‍यक्ति को हम दूसरों का अनुसरण या नकल करते हुए आसानी से देख सकते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि दूसरे व्‍यक्ति में वह खास बात है जो उसे सफलता दिला रही है, और मुझ में कहीं वह बात नहीं है। यहीं से फिसलन शुरू होती है और इंसान उस सर्वश्रेष्‍ठ को देने से चूक जाता है, जिसका वह अधिकारी होता है। आत्मविश्वास एक प्रेरक शक्ति है जो हमें जीवन में आगे बढ़ने तथा कुछ कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित करती है। 
            चित्‍त की वृत्तियां हमें खुद पर‍ विश्‍वास करने से रोकती हैं। ऐसे में पतंजलि ने हठयोग के पहले ही सूत्र में कहा कि योग चित्‍त की वृत्तियों का निरोध करता है। आत्मविश्वास या इच्छाशक्ति व्यक्ति के मनोशारीरिक मापदंड पर निर्भर करती है स्वस्थ मस्तिष्क और स्वस्थ शरीर ही आत्मविश्वास या इच्छाशक्ति बनाए रख सकता है। नित्य योगाभ्यास के लिए भी इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। चेतन मन से किसी कार्य की योजना बार-बार दोहराने से वह अवचेतन में प्रतिबिंबित होने लगती है और अवचेतन मन अपार शक्ति के साथ कार्य करने लगता है।
            मजे की बात यह है कि आत्‍मविश्‍वास से भरे लोगों को कोई भी काम असंभव नजर नहीं आता। किसी भी नए काम के लिए वे पूरी ताकत के साथ जुट जाते हैं और अपने आत्‍मविश्‍वास के बल पर ही उसे पूरा करने का प्रयास करते हैं। अधिकांश खोजें, दुस्‍साहसी और असंभव दिखाई देने वाले कार्य आत्‍मविश्‍वास से लबरेज लोगों ने ही किए हैं। अगर हम दो ऐसे लोगों की तुलना करें जिनमें एक आत्‍मविश्‍वास से भरा हो और दूसरा अपने हर निर्णय के लिए अन्‍य लोगों की अनुमति का इंतजार कर रहा हो, तो सफलता की दर उन लोगों में अधिक दिखाई देगी जो आत्‍मविश्‍वास से भरे हैं। सफलता और विफलता के पैमाने पर भी आत्‍मविश्‍वास से भरे लोग अधिक सफल दिखाई देते हैं। एक सामान्‍य इंसान की तुलना में विश्‍वासी व्‍यक्ति अधिक शक्ति से अधिक समय तक कार्य कर पाता है। 
            रक्‍त में शर्करा की मात्रा स्थिर रखना इच्छाशक्ति व आत्मविश्वास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इच्छाशक्ति का उपयोग करते समय रक्तशर्करा कम होती है अथवा उसकी आवश्यकता बढ़ जाती है। दोपहर का भोजन टालकर कार्यालय में काम करने से शाम तक इच्छाशक्ति कम हो सकती है। नियमित योगाभ्यास करने से चयापचय नियंत्रित होकर रक्तशर्करा की मात्रा नियंत्रित होती है। अधिक भोजन करने से रक्त संचार पेट में अधिक व मस्तिष्क में कम हो जाता है। परिणामतः इच्छाशक्ति की कमी होने लगती है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो लेपटिन हार्मोन की कमी मस्तिष्क में होने से भूख कम होकर आत्मविश्वास कम होने लगता है। आत्मविश्वास या इच्छाशक्ति बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक कैलोरी के रूप में सुझाव देते हैं।
            इसी प्रकार कम निद्रा या अनिद्रा व्यक्ति के आत्मविश्वास पर खराब प्रभाव डालती है। 6 घंटे से कम नींद लेने वालों की इच्छाशक्ति या आत्मविश्वास या आत्मनियंत्रण कम होने का कारण घ्रेलीन हार्मोन का बढ़ना होता है। यह हार्मोन मस्तिष्क में धुँधलापन पैदा करते हुए मस्तिष्क में असंतुलन की स्थिति निर्मित करता है अर्थात दुविधा या अंतर्द्वंद्व की स्थिति बनती है और आत्मविश्वास कम हो जाता है। निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। अतः आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए अच्‍छी नींद आवश्यक है। ध्यान का अभ्यास बहुत जरूरी है। यह अभ्यास प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट के लिए अवश्य करना चाहिए। गीता के अनुसार ‘युक्ति आहार विहार’ के अनुरूप भोजन और निद्रा के साथ योगाभ्यास भी अति उपयुक्त है।
            स्‍वामी विवेकानन्‍द ने भी एक जगह कहा कि अगर तुम्‍हें ज्‍योतिषी से सलाह लेने की जरूरत पड़े तो पहले डटकर भोजन करो और चादर तानकर लंबी नींद खींचो। इससे शरीर के भीतर शक्ति का संचार होगा और तुम्‍हें ज्‍योतिषी की जरूरत महसूस नहीं होगी। क्‍योंकि उनका विश्‍वास था कि ‘ब्रहमांड की समस्त शक्तियां हमारे भीतर समाहित हैं। ये हम ही हैं जो अपने नेत्रों को ढंक कर अँधेरे का रोना रोते हैं।‘ अपनी समस्‍याओं के लिए दूसरे लोगों की सलाह लेने वाले अधिकांश लोग खुद पर पर्याप्‍त विश्‍वास नहीं रख पाते हैं और सलाह लेने पहुंचते हैं। 
            गीता के दसवें अध्‍याय विभूतिपाद में भी भगवान कृष्‍ण अर्जुन को उपदेश देते हुए अपने उस रूप का वर्णन करते हैं, जिसमें वे बताते हैं कि सभी प्राणियों, वस्‍तुओं और तो और त्रिलोक में सर्वश्रेष्‍ठ वही हैं। गीता का दसवां अध्‍याय इस प्रकार लिखा गया है जिसमें अभ्‍यास करने वाला साधक मैं के साथ सभी शक्तियों को भीतर महसूस कर सकता है। इसका नियमित पाठ करने से कमजोर से कमजोर आत्‍मविश्‍वास वाला व्‍यक्ति भी तेजी से उस विश्‍वास को पा जाता है, जिसकी उसे जरूरत है।


संशयात्‍मा विनश्‍यति संशयात्‍मा विनश्‍यति Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

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