मंगला गौरी पूजा व्रत कथा मंत्र व उद्यापन विधि | Mangla Gauri puja vrat mahatv katha mantra udyapan vidhi in hindi
हिन्दू मान्यतानुसार, हर पूजा का अपना ही महत्व है. और हर पूजा किसी न किसी उद्देश्य से की जाती है. गौरी व्रत व मंगला गौरी व्रत दोनों जुलाई के महीने में आते है, लेकिन दोनों को मनाने का तरीका अलग अलग है. गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात में प्रसिद्ध है, जबकि मंगला व्रत उत्तर व मध्य भारत में रखा जाता है. हम आपको दोनों ही व्रत के बारे में पूरी जानकारी देंगें.
मंगला गौरी व्रत महत्त्व कथा व उद्यापन पूजा विधि
Mangla Gauri puja vrat mahatv katha mantra udyapan vidhi in hindi
यह बहुत ही प्रभावशाली और मनोकामना को पूर्ण करने वाली, पूजाओं मे से एक है. जिसे पूर्ण विधि विधान से करने से, सभी मांगी गई इच्छाओं की पूर्ति होती है.- गौरी पूजा का महत्व
- गौरी पूजन कब किया जाता है ?
- गौरी पूजन की आवश्यक सामग्री
- गौरी पूजा की विधी
- गौरी पूजा की कथा
- गौरी पूजा मंत्र
- उद्द्यापन विधी

मंगला गौरी पूजा व्रत का महत्व ( Mangla Gauri puja vrat Mahatv )–
हिन्दू पुराणों के अनुसार इसका विशेष महत्व कुवारी कन्या, जिसके विवाह मे कोई बाधा आ रही हो या वैवाहिक जीवन मे खुशहाली के लिए, पुत्र की प्राप्ति, पति/ पुत्र की लंबी आयु, व अन्य सुखों के लिए, कोई भी कुवारी कन्या या सौभाग्यशाली-सुहागन स्त्री के द्वारा, इस व्रत को किया जाता है.
गौरी पूजन नाम से स्पष्ट है, माँ गौरा अर्थात् माता पार्वती के लिए यह व्रत किया जाता है. पुराणों के अनुसार, भगवान शिव-पार्वती को श्रावण माह अति प्रिय है. इसलिए यह व्रत श्रावण माह के मंगलवार को ही किया जाता है. इसलिए इसे मंगला गौरी भी कहा जाता है.
मंगला गौरी पूजन की आवश्यक सामग्री – गौरी पूजन मे सुहाग के समान और 16-16 वस्तुओ का बहुत महत्व है.
क्रमांक | आवश्यक सामग्री |
1 | चौकी/पाटा/बजोट, तीनो एक ही है. जो भी उपलब्ध हो, पुजा के लिए रख ले. |
2 | सफेद व लाल कपडा एवं कलश. |
3 | गेहू व चावल. |
4 | आटे का चौ-मुखी दीपक, अगरबत्ती, धुपबत्ती, कपूर, माचिस. |
5 | 16-16 तार की चार बत्ती. |
6 | साफ व पवित्र मिट्टी, माता गौरा की प्रतिमा बनाने के लिए. |
7 | अभिषेक के लिये- साफ जल, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर का मिश्रण). |
8 | माता गौरा के लिये वस्त्र. |
9 | पूजा सामग्री-मौली, रोली (कुमकुम), चावल, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहन्दी, काजल, सिंदूर |
10 | 16 तरह के फूल, माला, पत्ते आटे के लड्डू, फल |
11 | पंचखोका (5 तरह के मेवे), 7 तरह के अनाज |
12 | 16 पान, सुपारी, लोंग |
13 | 1 सुहाग पिटारी (जिसमे – सिंधुर, टीकी, नथ, काजल, मेहन्दी, हल्दी, कंघा, तेल, शीशा, 16 चूड़ीया, बिछिया, पायल, नैलपोलिश, लिपस्टिक, खिलौना, बालों की पिन आदि शामिल होते हैं) |
14 | इच्छानुसार नैवेद्य/प्रसादी |
Step 1:- यह व्रत श्रावण के प्रथम मंगलवार से शुरू होता है. तथा श्रावण के हर मंगलवार को किया जाता है. पूजा करने के पहले स्नान कर, कोरे वस्त्र पहनते हैं.
Step 2:- पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठे, व बड़ी चौकी लगाये. उस चौकी पर आधे में सफेद कपडा बिछा कर चावल की नौ छोटी-छोटी ढेरी बनाये. अब उसी चौकी पर आधे में लाल कपड़ा बिछा कर गेहू के सोलह ढेरी बनाये.
Step 3:- अब चौकी पर थोड़े से चावल अलग से रख कर, पान के पत्ते पर साथिया बनाकर उस पर गणेशजी की प्रतिमा रखे. ठीक उसी तरह, गेहू की अलग से ढेरी कर उस पर कलश रखे. उस पर पांच पान के पत्ते रख, नारियल रखे. और चौकी पर चौमुखी दीपक व उसमे, 16 तार की बत्ती लगाकर प्रज्वलित करे.
Step 4:- सर्वप्रथम, प्रथम पूज्य गणेशजी की प्रतिमा का विधिविधान से स्नानादि करा कर, वस्त्र स्वरूप जनेऊ, रोली-चावल, सिन्दूर चढ़ा कर पूजन कर भोग लगाये. ठीक उसी तरह रोली-चावल से कलश और दीपक का पूजन करे. उसके बाद चावल की जो नौ ढेरी है, वह नवग्रह स्वरूप तथा गेहू की सोलह ढेरी, माता का स्वरूप मान इसकी विधिविधान से पूजा करे.
Step 5:- अब एक थाली मे पवित्र तथा साफ मिट्टी ले कर, माँ गौरा की प्रतिमा बना कर पूरी श्रध्दा से प्रतिमा को चौकी पर रखे. अब सबसे पहले प्रतिमा को जल दूध पंचामृत से स्नानादि करा कर, अभिषेक करें एवं वस्त्र धारण कराये.
Step 6:- माँ गौरा की रोली-चावल, से पूजा करके सोलह श्रंगार की वस्तु चढ़ाये. फिर सोलह तरह की सभी चीजों- फूल, माला, फल, पत्ते, आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लोंग, इलायची तथा पंचखो का प्रसाद रखे.
Step 7:- अब कथा कर, मंत्र का जाप कर आरती करे. हर मंगलवार को पूजन के बाद अगले दिन, माँ गौरा की प्रतिमा को किसी तालाब या नदी मे, पूरी श्रध्दा से विसर्जित करे. मन्नत अनुसार यह व्रत पूर्ण कर उद्द्यापन करे.
मंगला गौरी पूजा व्रत की कथा (Mangla Gauri puja vrat Katha)–
बहुत पुरानी बात थी, एक समय मे कुरु नामक देश मे, श्रुतिकीर्ति बहुत प्रसिद्ध सर्वगुण संपन्न, अतिविद्द्वान राजा हुआ करता था जोकि, अनेको कलाओं मे तथा विशेष रूप से धनुष विध्या मे निपूर्ण था. सम्पूर्ण सुखो के बाद भी राजा बहुत दुखी और परेशान था क्योंकि, उसके कोई पुत्र नही था. वह संतान सुख से वर्जित था. जिसके चलते राजा ने कई जप-तप, ध्यान, और अनुष्ठान कर देवी की भक्ति-भाव से तपस्या करी.
देवी प्रसन्न हुई, और कहा- हे राजन! मांगो क्या मांगना चाहते हो. तब राजा ने कहा माँ, मे सर्वसुखो व धन-धान्य से समर्ध हूँ. यदि कुछ नही है तो, वह संतान-सुख जिससे मैं वंचित हूँ. मुझे वंश चलाने के लिये वरदान के रूप मे, एक पुत्र चाहिए. देवी माँ ने कहा राजन, यह बहुत ही दुर्लभ वरदान है, पर तुम्हारे तप से प्रसन्न हो कर, मैं यह वरदान तो देती हूँ, परन्तु तुम्हारा पुत्र सोलह वर्ष तक ही जीवित रहेगा. यह बात सुन कर राजा और उनकी पत्नी बहुत चिंतित हुये. सभी बातोँ को जानते हुए भी राजा-रानी ने यह वरदान माँगा.
देवी माँ के आशिर्वाद से रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. राजा ने उस बालक का नामकरण संस्कार कर, उसका नाम चिरायु रखा. साल बीतते गये, राजा को अपने पुत्र की अकाल म्रत्यु की चिंता सताने लगी.
तब किसी विद्वान के कहानुसार, राजन ने सोलह वर्ष से पूर्व ही, अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से कराया जो, मंगला गौरी के व्रत करती थी, जिससे उस कन्या को भी व्रत के फल स्वरूप, सर्वगुण सम्पन्न वर की प्राप्ति हुई. तथा उस कन्या को सौभाग्यशाली व सदा सुहागन का वरदान प्राप्त था. जिससे विवाह के उपरान्त, उसके पुत्र की अकाल मत्यु का दोष स्वत: ही समाप्त हो गया, और राजा का वह पुत्र अपने नाम के अनुसार, चिरायु हुआ.
इस तरह जो भी, स्त्री या कुवारी कन्या पुरे भक्ति-भाव से, यह फलदायी मंगला गौरी व्रत करती है, उसकी सब ईच्छा पूर्ण होकर सर्वसुखो की प्राप्ति होती है.
मंगला गौरी पूजा मंत्र (Mangla Gauri puja Mantra)-
पुराणों मे, इस व्रत का बहुत अधिक महत्व है. तथा उससे संबंधित कई मंत्र भी दिये गये है, जिसका कम से कम 11,21,51,108 बार या अपनी श्रध्दा के अनुसार जप करना सर्वश्रेष्ठ बताया गया है.
मंत्र –
सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके.
शरणनेताम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते..
यह बहुत ही आसन, प्रसिद्ध और शक्तिशाली मंत्र है. इसके अलावा भी अनेक मंत्र दिये गये है. अपने पुरोहित से पूछ कर अपनी इच्छानुसार मंत्र के जाप करे.
मंगला गौरी पूजा व्रत उद्द्यापन विधी (Mangla Gauri puja vrat udyapan vidhi)–
मन्नत के अनुसार, अपने मंगला गौरी के व्रत पूर्ण कर आखरी मंगलवार को किसी पंडित या पुरोहित के सानिध्य मे तथा सोलह सुहागन स्त्रियों को भोजन करा कर इस व्रत की समाप्ति करनी चाहिए. जिसमे पूजन विधी हर मंगलवार की तरह करके, आखरी मंगलवार को पुरे परिवार के साथ अर्थात कुवारी कन्या अपने माता-पिता के साथ व सुहागन स्त्री अपने पति के साथ हवन करे. पूर्णाहुति मे पुरे परिवार व सगे-संबंधियों को शामिल कर अंत मे आरती करे. इस तरह मंगला गौरी व्रत का उद्धयापन किया जाता है.
गौरी व्रत सामग्री महत्त्व कथा व उद्यापन पूजा विधि ( Gauri vrat mahatv katha udyapan puja vidhi )
गौरी व्रत का महत्व (Gauri vrat mahatv) –गौरी व्रत अविवाहित लड़कियों व कन्याओं के द्वारा रखा जाता है. इस व्रत में गौरी पार्वती की पूजा की जाती है. इस व्रत के रहने से लड़की की जल्दी शादी होती है, साथ ही उसे अच्छा जीवन साथी मिलता है. गौरी व्रत को मोराकत व्रत भी कहते है. कहते है इस व्रत में पार्वती की पूजा आराधना करने से लड़कियों को शिव जैसे भोले, पत्निव्रता पति मिलते है. हिन्दू मान्यता के अनुसार शिव सबसे अच्छे पति माने जाते है, हर लड़की इनके जैसा ही पति चाहती है.
गौरी व्रत गुजरात में अषाढ़ (जुलाई-अगस्त) माह के शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होता है, एवं 5 दिनों बाद पूर्णिमा को खत्म होता है. इस बार यानि 2017 में ये व्रत 4 जुलाई को शुरू होगा व 8 जुलाई को ख़त्म होगा. 5 दिन के इस व्रत में उपवास रखा जाता है, जिसमें नमक को पूरी तरह त्यागा जाता है.
गौरी व्रत पूजा विधि (Gauri vrat puja vidhi) –
- यह व्रत रखने के 1 हफ्ते पहले से 7 अलग अलग बर्तन में ज्वार को मिट्टी में लगाते है. फिर रोज इसे पानी देते है. इसे माता पार्वती का प्रतीक मानकर इनकी पूजा की जाती है.
- व्रत के पहले दिन सुबह जल्दी नहाकर इन 7 बर्तन की पूजा की जाती है. इस पर पानी, दूध, फूल चढ़ाया जाता है. दीपक जलाकर, पार्वती माता की आराधना की जाती है.
- 5 दिन ऐसा रोज करते है. आखिरी दिन रात भर जागकर जागरण करते है. भजन, कीर्तन, नाच गाना होता है.
- व्रत में पूरा दिन कुछ नहीं खाते है, शाम को दिया बत्ती के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है.
- इस व्रत के दौरान नमक बिलकुल नहीं खाया जाता है. आटे की रोटी पूरी, घी, दूध से बना समान, मेवे, फल आदि खाया जाता है.
- आखिरी दिन सुबह नहाकर, मंदिर जाते हैं, गाय की पूजा कर, उसे रोटी खिलाई जाती है. ज्वार के बर्तन की पूजा करे, और फिर इसे किसी, नदी, या घर में बड़े बर्तन में पानी रखकर सिरा दें.
- इस दिन 11 लड़कियों को बुलाकर खाना खिलाएं. उन्हें यादगार के तौर पर कुछ उपहार दें.
- यह व्रत 5 साल तक लगातार रखा जाता है, आप चाहें तो इसे 7 साल भी कर सकते है.
गौरी व्रत की वैसे कोई कथा नहीं है, लेकिन ये माना जाता है कि जिस तरह माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके कई व्रत रहकर शिव को पाया था, वैसे ही लड़कियां कठिन जप तप करके शिव जैसा वर पाना चाहती है. हिन्दुओं को इस पर पूर्ण विश्वास है कि माता पार्वती की पूजा आराधना करने से उन्हें शिव जैसा ही वर मिलेगा.
गौरी व्रत उद्यापन विधि (Gauri vrat udyapan vidhi) –
सबसे पहले चौकी पर विराजित सभी देवी देवताओं को, नैवेद व प्रसादी का भोग लगाये. जिसके उपरान्त, पुरोहितों को भोजन करा कर दक्षिणा दे. फिर सोलह सुहागन महिलाओं को, भोजन करा कर सुहाग की सामग्री दे. अंत मे पुरे परिवार के साथ भोजन कर व्रत की समाप्ति करे.
गौरी पार्वती का व्रत अविवाहिता के द्वारा 5 साल रखते है, इस दौरान उसकी शादी हो जाती है, तब भी 5 सालों तक इस व्रत को रखा जाता है. पांच साल हो जाने के बाद जयापार्वती का व्रत रखना जरुरी समझा जाता है ये विवाहिता सुखी जीवन के लिए रखती हैं. गौरी व्रत को बीच में नहीं छोड़ा जाता है, इसे 5 साल तक 5 दिन के लिए रहना ही पड़ता है.
यह अनुष्ठान भविष्य में एक अच्छा पति पाने के पवित्र इरादे से किया जाता है. पवित्र इरादे हमेशा खुशीयों से हमारे जीवन को भर देते है. इस व्रत से युवा लड़कियों के जीवन में नयी खुशियाँ आती है, उनमें आत्म विश्वास, अनुशासन व धैर्य बढ़ता है.
ज्येष्ठ गौरी पूजा विधि, कथा (Jyeshta Gauri puja vidhi Katha)
ज्येष्ठ गौरी पूजा तीन दिन का त्यौहार होता है, जो मुख्यतः महाराष्ट्र में मराठी समुदाय द्वारा मनाया जाता है. यह 10 दिनों तक चलने वाले गणेश महोत्सव के दौरान आता है. महाराष्ट्र के कई मराठी परिवार में गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि विधान से करते है. महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के समय वैसे ही बहुत धूम रहती है, पुरे भारत में महाराष्ट्र में सर्वाधिक गणेश प्रतिमा रखी जाती है, और लोग इसे बड़े तौर पर मनाते है. इसी बीच में तीन दिन का गौरी पूजा त्यौहार आता है, जिसे शादीशुदा औरतें मनाती है.कब मनाई जाती है ज्येष्ठ गौरी पूजा ?
ज्येष्ठ गौरी पूजा हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्र महीने (अगस्त-सितम्बर) के शुक्ल पक्ष की छठी के दिन शुरू होता है, और अष्टमी के दिन समाप्त होता है. तीन दिन ज्येष्ठ गौरी पूजा का ये त्यौहार गौरी आह्वान से शुरू होता है, अगले दिन गौरी पूजन होती है, आखिरी दिन गौरी विसर्जन होता है.
मंगला गौरी पूजा व्रत कथा मंत्र व उद्यापन विधि | Mangla Gauri puja vrat mahatv katha mantra udyapan vidhi in hindi
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जुलाई 23, 2019
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: