कार्तिक स्नान KARTIK SNAN

अब आपको बताते हैं कि कार्तिक स्नान क्यों करना चाहिए तथा कार्तिक स्नान में क्या करें और क्या न करें. स्नान करने वाले भक्तों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है-स्कंद पुराण में आता है-
मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः।
तीर्थं नारायाणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।
कार्तिक मास श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय है. इसमें हरि की कथा सुनने, सुनाने से तीर्थदर्शनों का लाभ प्राप्त होता है और कलियुग में श्रीकृष्ण की कृपाप्राप्ति का यह सबसे उत्तम साधन है.
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम् ।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम् ।।
कार्तिक स्नान के अद्भुत फलः
-कार्तिक मास के समान दूसरा कोई मास नहीं है, सतयुग के समान दूसरा कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है. कार्तिक माह में किए स्नान का फल, हजार बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के बराबर पुण्यकारी है.
-कुम्भ में प्रयाग में कुंभस्नान करने का जो फल मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान से प्राप्त होता है. कार्तिक माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए. जो कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं वे वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं.
धार्मिक कार्यों के लिए यह माह सर्वश्रेष्ठ माना गया है. आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है.

क्या करें यदि किसी विवशता में नहीं कर पाते हैं कार्तिक स्नानः

कार्तिक मास में नदीस्नान, सरोवर स्नान आदि का विधान है परंतु यदि आप यह नहीं कर पाते तो भी परेशान होने की बात नहीं. सुबह अपने घर में स्नान करें. स्नान के जल में गंगाजल या किसी पवित्र तीर्थ का जल मिला लें व पूजा पाठ करें.
किसी कार्तिक स्नान व्रती की सेवा करें. भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम के मंदिर में सेवा दें. वहां आप साफ-सफाई कर सकते हैं, भजन-कीर्तन कर सकते हैं, दीप जला सकते हैं. मंदिर में यदि फूल-पौधे लगे हैं तो उनकी सेवा कर सकते हैं.
बुजुर्गों या किसी को भी कार्तिक माहात्म्य की कथा नियम से सुनाएं. माहात्म्य कथाएं हम प्रभु शरणम् ऐप्पस में शृंखलाबद्ध देंगे.
कार्तिक माह में भगवान शिव, मां चण्डी, सूर्यनारायण तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाना चाहिए, मंदिरों की सफाई आदि करनी चाहिए, भगवान विष्णु का विभिन्न प्रकार के पुष्पों से शृंगार करना चाहिए.ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है.
कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिदेवों ने महापुनीत पर्व कहा है. इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. कार्तिक माह की पूर्णिमा को बिना स्नान किए अन्न तक ग्रहण नहीं करना चाहिए.
कार्तिक मास में राधा-कृष्ण, विष्णु भगवान तथा तुलसी पूजा का अत्यंत महत्व है. जो मनुष्य इस माह में इनकी पूजा करता है, उसे पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.
श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक माह में तारा भोजन भी करते हैं. पूरे दिन व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं. व्रत के अंतिम दिन उद्यापन किया जाता है. हम आपको कार्तिक उद्यापन की संक्षिप्त विधि भी बताएंगे.
घर में सब प्रकार की शुभता, सदैव सुख शान्ति के लिए तुलसी आराधना अवश्य करनी चाहिए. जिस घर में शुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी हरी-भरी रहती हैं एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी हरी भरी नहीं रहतीं.
घर-परिवार की सुख, शांति, समृद्धि के लिए कार्तिक मास में जरूर करने चाहिए ये कार्यः
दीपदान करें-कार्तिक मास में सबसे प्रधान कार्य दीपदान करना है. इस मास में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है. इससे अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है.
तुलसी पूजन-कार्तिक में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है. वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है.
भूमि पर शयन-
भूमि पर शयन करना कार्तिक मास का तीसरा प्रधान कार्य माना गया है. भूमि पर शयन करने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं.
ब्रह्मचर्य-
कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है.

भोजन में सावधानी-

व्रती के लिए कार्तिक मास में कुछ अनाज और आहार का निषेध बताया गया है. उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई, हींग, मूली और हरी सब्जी आदि का सेवन निषेध है. व्रती को घीया या लौकी, गाजर, बैंगन, कैथ (बेल जैसा पेड़ जिसके फल खट्टे होते हैं), बासी भोजन तथा दूसरे का भोजन और दूषित खाना नहीं खाना चाहिए.
अपने लिए जो भोजन पकाएं उसे बिना भगवान के भोग लगाए तथा बिना गोमाता के लिए ग्रास निकाले भोजन नहीं करना चाहिए. व्रती को तामसिक पदार्थों का त्याग करना चाहिए. व्रती को दिन के चतुर्थ पहर में एक समय का भोजन पत्तल पर करना चाहिए.
तेल मर्दन-
कार्तिक माह में पूरे मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए. वह केवल कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी को शरीर पर तेल लगा सकता है. अन्य दिनों में तेल का त्याग करना चाहिए.

संयम-

व्रती को संयम से काम लेना चाहिए. क्रोध का त्याग करना चाहिए. उसे साधुओं के समान व्यवहार करना चाहिए.
अल्पभाषी-
व्रती को व्रत के दौरान कम बोलना चाहिए. किसी की निंदा तथा विवाद में नहीं पड़ना चाहिए. व्रती को किसी से झगडा़ नहीं करना चाहिए. परदेश नहीं जाना चाहिए. इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए.
पवित्रता-
व्रती पुरूष अथवा स्त्री किसी भी रजस्वला स्त्री का स्पर्श भी ना करें, दोष लगता है. रजस्वला स्त्री का छूआ खाना, कौओं का जूठा भोजन, एवं उस घर का अन्न नहीं खाना चाहिए जहां सूतक लगा हो.
कार्तिक स्नान KARTIK SNAN कार्तिक स्नान KARTIK SNAN Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on नवंबर 27, 2018 Rating: 5

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