राहु-केतु का नाम ज्योतिष में एक विशेष स्थान रखता है। ज्योतिष्ा में राहु-केतु को सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण का कारण माना जाता है। राहु-केतु को कुछ लोग छाया ग्रह कहते हैं, तो कुछ कटान बिन्दु कहते हैं परन्तु कटान बिन्दु किसका -यह अधिकांश लोगाें को पता नहीं है। आइये इन्हीं बातों पर विचार करें ताकि राहु-केतु का खगोलीय अस्तित्व स्पष्ट हो सके।
खगोलीय दृष्टि से राहु-केतु चंद्रमा के पातबिन्दु ( Node) हैं। पातबिन्दु क्रान्ति वृत्त (सूर्य का प्रतीयमान मार्ग) पर वे बिन्दु हैं, जिस स्थान पर चंद्रमा अथवा कोई ग्रह क्रान्तिवृत्त को काटकर एक बार दक्षिण से उत्तर की ओर एवं दूसरी बार उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं। जब वे क्रान्तिवृत्त को काटकर दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो उस बिन्दु को आरोही पात (Aह्यष्enस्त्रinद्द ह्वश्स्त्रe) एवं जब वे उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं तो उस बिन्दु को अवरोही पात (Ascending Node) कहते हंै। चंद्रमा के आरोही पात को राहु एवं अवरोही पात को केतु कहते हैं। ये दोनों पात बिन्दु क्रान्तिवृत्त पर आमने-सामने 180 अंश के अंतर पर स्थित होते हैं।
क्रान्तिवृत्त से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को शर (Descending Node) कहते हैं। चूंकि क्रान्तिवृत्त सूर्य का प्रतीयमान मार्ग है, अत: सूर्य का शर सदैव शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रह जब अपने पातबिन्दु पर होते हैं, उस समय वे क्रान्तिवृत्त पर होते हैं, अत: उस समय उनका शर भी शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रहों के परम शर अलग-अलग होते हैं अर्थात वे क्रान्तिवृत्त से अलग-अलग दूरी तक उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते हैं। उदाहरण के लिये, चंद्रमा का परम शर 5 अंश 9 कला, होता है अर्थात चंद्रमा क्रान्तिवृत्त से 5 अंश 9 कला उत्तर की ओर एवं उतना ही दक्षिण की ओर चले जाते हैं। इसी प्रकार बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति एवं शनि के औसत परम शर क्रमश: 7 अंश 0 कला, 3 अंश 24 कला, 1 अंश 51 कला, 1 अंश 18 कला, 2 अंश 29 कला होते हंै। चंद्रमा के पातबिन्दु निम्नलिखित चित्र से स्पष्ट है:-
चंद्रमा एवं ग्रहों के पातबिन्दु स्थिर नहीं होते हैं। ये भी क्रान्तिवृत्त पर भ्रमण करते रहते हैं। चंद्रमा के पातबिन्दु (राहु-केतु) 6793.5 दिन में (अर्थात 18.6 वर्ष) वक्र गति से एक भगण (अर्थात एक चक्कर) पूरा करते हैं। एक वर्ष में ये 19 अंश 21 कला एवं एक दिन में 3 कला 11 विकला की वक्रगति से क्रान्तिवृत्त पर संचरण करते हैं। पूर्णिमा अथवा अमावस्या को यदि ये पातबिन्दु (राहु अथवा केतु) सूर्य के पास हाें तो क्रमश: चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण प़डते हैं। चूँकि सूर्य का एक भगण 365.2568 दिन में मार्गी गति में तथा चंद्रपात (राहु अथवा केतु) का एक भगण 6793.5 दिन में वक्र गति में होता है, अत: सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति 346.62 (=1/(1/365.2468+1/6793.5) दिन में होती है। यह सूर्य के साथ राहु से राहु अथवा केतु से केतु तक की युति की अवधि है। चूँकि राहु एवं केतु एक दूसरे के आमने-सामने स्थित होते हैं, अत: राहु से केतु अथवा केतु से राहु तक सूर्य की युति होने में 346.62 दिन का आधा समय अर्थात 173.31 दिन लगते हैं। पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रता के कारण यह अवधि 1.67 प्रतिशत (अर्थात 2.89 दिन) न्यूनाधिक हो सकती है।
सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण तभी राहु का खगोलीय संभव होते हैं, जब सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (Longitudinal) पूर्व-पश्चिम अंतर शून्य अथवा 180 अंश एवं शरीय (Latitudinal) उत्तर-दक्षिण अंतर शून्य हो जाये। चूंकि सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय पूर्व-पश्चिम अंतर तो प्रत्येक अमावस्या को शून्य एवं पूर्णिमा को 180 अंश हो जाता है, परंन्तु उनका शरीय उत्तर-दक्षिण अंतर प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को शून्य नहीं होता है, अत: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को नहीं प़डते हैं। सूर्य एवं चंद्रमा का शरीय अंतर शून्य तभी होगा जब चंद्रमा अपने पातबिन्दु (राहु अथवा केतु) के पास स्थित हों। ऎसा यदि अमावस्या अथवा पूर्णिमा को हो तो ही क्रमश: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प़डते हैं। इससे स्पष्ट है कि सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति के कारण ही सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प़डते हैं। चूँकि सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति औसतन 173.31 दिन में होती है, अत: इस युति के आस-पास जो भी अमावस्या अथवा पूर्णिमा प़डेगी, उसको क्रमश: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण निश्चित रूप से पडे़ंगे। उदाहरण के लिये वर्ष 2007 में सूर्य की राहु एवं केतु से युति के कारण निम्नानुसार सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डेंगे:-
सूर्य की युति युति का दिनांक ग्रहण ग्रहण का दिनांक
राहु के साथ 07 मार्च,2007 चंद्र्र ग्रहण 4 मार्च 2007
सूर्य ग्रहण 19 मार्च 2007
केतु के साथ 31 अगस्त, 2007 चंद्र्र ग्रहण 28 अगस्त,07
सूर्य ग्रहण 11 सितम्बर,07
उपर्युक्त सारिणी से स्पष्ट है कि सूर्य के साथ राहु-केतु की युति से पूर्व पूर्णिमा प़डने पर चंद्र ग्रहण एवं युति के पश्चात अमावस्या प़डने पर सूर्य ग्रहण प़ड रहा है। इसी प्रकार सूर्य के साथ चंद्रपातों (राहु अथवा केतु) की युति के कारण सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण औसतन 173.31 दिन के अंतराल में प़डते रहते हैं।
खगोलीय दृष्टि से राहु-केतु चंद्रमा के पातबिन्दु ( Node) हैं। पातबिन्दु क्रान्ति वृत्त (सूर्य का प्रतीयमान मार्ग) पर वे बिन्दु हैं, जिस स्थान पर चंद्रमा अथवा कोई ग्रह क्रान्तिवृत्त को काटकर एक बार दक्षिण से उत्तर की ओर एवं दूसरी बार उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं। जब वे क्रान्तिवृत्त को काटकर दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो उस बिन्दु को आरोही पात (Aह्यष्enस्त्रinद्द ह्वश्स्त्रe) एवं जब वे उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं तो उस बिन्दु को अवरोही पात (Ascending Node) कहते हंै। चंद्रमा के आरोही पात को राहु एवं अवरोही पात को केतु कहते हैं। ये दोनों पात बिन्दु क्रान्तिवृत्त पर आमने-सामने 180 अंश के अंतर पर स्थित होते हैं।
क्रान्तिवृत्त से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को शर (Descending Node) कहते हैं। चूंकि क्रान्तिवृत्त सूर्य का प्रतीयमान मार्ग है, अत: सूर्य का शर सदैव शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रह जब अपने पातबिन्दु पर होते हैं, उस समय वे क्रान्तिवृत्त पर होते हैं, अत: उस समय उनका शर भी शून्य होता है। चंद्रमा अथवा ग्रहों के परम शर अलग-अलग होते हैं अर्थात वे क्रान्तिवृत्त से अलग-अलग दूरी तक उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते हैं। उदाहरण के लिये, चंद्रमा का परम शर 5 अंश 9 कला, होता है अर्थात चंद्रमा क्रान्तिवृत्त से 5 अंश 9 कला उत्तर की ओर एवं उतना ही दक्षिण की ओर चले जाते हैं। इसी प्रकार बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति एवं शनि के औसत परम शर क्रमश: 7 अंश 0 कला, 3 अंश 24 कला, 1 अंश 51 कला, 1 अंश 18 कला, 2 अंश 29 कला होते हंै। चंद्रमा के पातबिन्दु निम्नलिखित चित्र से स्पष्ट है:-
चंद्रमा एवं ग्रहों के पातबिन्दु स्थिर नहीं होते हैं। ये भी क्रान्तिवृत्त पर भ्रमण करते रहते हैं। चंद्रमा के पातबिन्दु (राहु-केतु) 6793.5 दिन में (अर्थात 18.6 वर्ष) वक्र गति से एक भगण (अर्थात एक चक्कर) पूरा करते हैं। एक वर्ष में ये 19 अंश 21 कला एवं एक दिन में 3 कला 11 विकला की वक्रगति से क्रान्तिवृत्त पर संचरण करते हैं। पूर्णिमा अथवा अमावस्या को यदि ये पातबिन्दु (राहु अथवा केतु) सूर्य के पास हाें तो क्रमश: चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण प़डते हैं। चूँकि सूर्य का एक भगण 365.2568 दिन में मार्गी गति में तथा चंद्रपात (राहु अथवा केतु) का एक भगण 6793.5 दिन में वक्र गति में होता है, अत: सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति 346.62 (=1/(1/365.2468+1/6793.5) दिन में होती है। यह सूर्य के साथ राहु से राहु अथवा केतु से केतु तक की युति की अवधि है। चूँकि राहु एवं केतु एक दूसरे के आमने-सामने स्थित होते हैं, अत: राहु से केतु अथवा केतु से राहु तक सूर्य की युति होने में 346.62 दिन का आधा समय अर्थात 173.31 दिन लगते हैं। पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रता के कारण यह अवधि 1.67 प्रतिशत (अर्थात 2.89 दिन) न्यूनाधिक हो सकती है।
सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण तभी राहु का खगोलीय संभव होते हैं, जब सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (Longitudinal) पूर्व-पश्चिम अंतर शून्य अथवा 180 अंश एवं शरीय (Latitudinal) उत्तर-दक्षिण अंतर शून्य हो जाये। चूंकि सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय पूर्व-पश्चिम अंतर तो प्रत्येक अमावस्या को शून्य एवं पूर्णिमा को 180 अंश हो जाता है, परंन्तु उनका शरीय उत्तर-दक्षिण अंतर प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को शून्य नहीं होता है, अत: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को नहीं प़डते हैं। सूर्य एवं चंद्रमा का शरीय अंतर शून्य तभी होगा जब चंद्रमा अपने पातबिन्दु (राहु अथवा केतु) के पास स्थित हों। ऎसा यदि अमावस्या अथवा पूर्णिमा को हो तो ही क्रमश: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प़डते हैं। इससे स्पष्ट है कि सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति के कारण ही सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण प़डते हैं। चूँकि सूर्य के साथ राहु अथवा केतु की युति औसतन 173.31 दिन में होती है, अत: इस युति के आस-पास जो भी अमावस्या अथवा पूर्णिमा प़डेगी, उसको क्रमश: सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण निश्चित रूप से पडे़ंगे। उदाहरण के लिये वर्ष 2007 में सूर्य की राहु एवं केतु से युति के कारण निम्नानुसार सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डेंगे:-
सूर्य की युति युति का दिनांक ग्रहण ग्रहण का दिनांक
राहु के साथ 07 मार्च,2007 चंद्र्र ग्रहण 4 मार्च 2007
सूर्य ग्रहण 19 मार्च 2007
केतु के साथ 31 अगस्त, 2007 चंद्र्र ग्रहण 28 अगस्त,07
सूर्य ग्रहण 11 सितम्बर,07
उपर्युक्त सारिणी से स्पष्ट है कि सूर्य के साथ राहु-केतु की युति से पूर्व पूर्णिमा प़डने पर चंद्र ग्रहण एवं युति के पश्चात अमावस्या प़डने पर सूर्य ग्रहण प़ड रहा है। इसी प्रकार सूर्य के साथ चंद्रपातों (राहु अथवा केतु) की युति के कारण सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण औसतन 173.31 दिन के अंतराल में प़डते रहते हैं।
खगोलीय दृष्टि से राहु-केतु RAHU & KETU
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
नवंबर 27, 2018
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: