भगवान विष्णु ने त्रेता युग में भगवान राम का अवतार धारण किया था। उनकी सेवा के लिए भगवान शिव ने अपने रुद्रावतार भगवान हनुमान को प्रकट किया। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लेकर उन्हें कलियुग में धरती पर सशरीर रहने का आदेश दिया। तब से वे कलियुग देव के रूप में ज्यादा पूजे जाने लगे और सशरीर हिमालय क्षेत्र में तपस्यारत हैं। वे आजीवन ब्रह्मचर्य हैं। हालाँकि उन्होंने सूर्य से कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूर्य की ही महान् तपस्विनी पुत्री सुवर्चला से विवाह किया मगर फिर भी वे अखण्ड ब्रह्मचर्य हैं। बजरंगबली के विवाह का उल्लेख पराशर संहिता में भी किया गया है। भारत में मारुतिनंदन हनुमानजी का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ वह अपनी पत्नी सुर्वचला के साथ विराजे हैं। दरअसल यह मंदिर हैदराबाद से करीब 220 किलोमीटर दूर तेलंगाना के खम्मम जिले में स्थित है। पाराशर संहिता में हनुमानजी के विवाह की कथा का उल्लेख है। भारत के कुछ हिस्सों विशेषरूप से तेलंगाना में हनुमान जी को विवाहित माना जाता है। सुवर्चला सूर्यदेव की पुत्री हैं जिनका विवाह पवनपुत्र हनुमानजी के साथ हुआ था। वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं विवाहित हनुमान जी। मान्यता है कि जो भी मारुतिनंदन और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है।
पाराशर संहिता के अनुसार, हनुमानजी विवाहित हैं। हनुमानजी ने सूर्यदेव को अपना गुरु बनाया था। सूर्यदेव के पास नौ दिव्य विद्याएँ थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान हनुमानजी प्राप्त करना चाहते थे। सूर्यदेव ने इन नौ में से पाँच विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया लेकिन शेष चार विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया। शेष चार दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों। हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचर्य थे। इस कारण सूर्यदेव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। समस्या के निराकरण के लिए सूर्यदेव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए लेकिन उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। तब हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी। जब हनुमानजी विवाह के लिए मान गए तब उनके योग्य कन्या के रूप में सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला को चुना गया। सूर्यदेव ने हनुमानजी से कहा-- सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है और इसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो। सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष चार दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। सूर्यदेव ने यह भी बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव अखण्ड ब्रह्मचर्य ही रहोगे; क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी। इस तरह हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह सूर्यदेव ने करवा दिया।
विवाह के बाद सुवर्चला तपस्या में लीन हो गईं और हनुमानजी से अपने गुरु सूर्यदेव से शेष चार विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया। इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ब्रह्मचारी बने हुए हैं और सशरीर हिमालय क्षेत्र में तपस्यारत हैं।
हनुमान की पत्नी
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
अप्रैल 24, 2019
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