योगिनी आठ होती हैं। योगिनी महादशा का एक सम्पूर्ण चक्र ३६ वर्ष में पूरा हो जाता है। इसके बाद इसकी पुनरावृत्ति होती है। केतु को छोड़कर बाकी सभी ग्रह एक-एक योगिनी के स्वामी हैं। योगिनी दशा की कुल अवधि ३६ वर्ष है जबकि विंशोत्तरी में दशा की अवधि १२० वर्ष की है. अन्य शब्दों में यदि मनुष्य की आयु १२० वर्ष मानें तो योगिनी दशा के तीन चक्र पूरे हो जाएंगे और चौथे चक्र की दशाएं जीवन के अंत समय में चल रही होंगी।
प्रत्येक योगिनी दशा के जन्म नक्षत्र तथा स्वामी निश्चित हैं, जो निम्न तालिका से स्पष्ट हो जाएंगे :-
भ्रामरी दशा अश्विनी नक्षत्र में होती है। इसके बाद सभी नक्षत्रों में एक-एक योगिनी दशा होती है। अतः ८-८ जन्म नक्षत्रों के बाद पुनः जन्म नक्षत्रों की आवृत्ति उसी दशा में होती है, जैसे भ्रामरी क्रमांक १, ९, १७ व २५ में प्रथम ३ (मंगला, पिंगला तथा धन्या) एवं अंतिम २ (सिद्धा व संकटा ) प्रत्येक दशा ३-३ नक्षत्रों में होती है, जबकि बीच की ३ (भ्रामरी, भद्रा तथा उल्का दशाएं ४-४ नक्षत्रों में होती हैं।
प्रत्येक योगिनी दशा के जन्म नक्षत्र तथा स्वामी निश्चित हैं, जो निम्न तालिका से स्पष्ट हो जाएंगे :-
सद्धर्मे द्विजदेवगोपुरजनोत्कर्षप्रदात्री नृणां नानाभोगयशोऽर्थसन्नृपपराश्वेभाङ्गजाप्तिप्रदाः ।
सन्माङ्गल्यविभूषणाम्बरचयस्त्रीभोगसन्दायिनी ज्ञानानन्दकरी दशा भवति सा ज्ञेया सदा मङ्गला ॥
इस दशा में मन पवित्र होता है तथा धार्मिक कार्यों में सहज रूचि होती है. देव पूजन, सत्संग, धर्म चर्चा व पुराण कथाओं में सम्मिलित होने से सुख, वैभव और सम्पन्नता बढ़ती है. इस अवधि में सुख, सुविधा, यश एवं रत्नाभूषण की प्राप्ति होती है. घर परिवार में मंगल उत्सव होते हैं. विद्या, विनय, वैभव के साथ मित्र व संबंधियों का स्नेह व सहयोग भी मन की प्रसन्नता को बढ़ाता है. अन्य विद्वानों के अनुसार मंगल, मांगल्य, मंगला का अर्थ शुभ श्रेष्ठ व कल्याणकारी है. निष्ठावान पत्नी, सुशील, आज्ञाकारी और भाग्यशाली संतान, धन वैभव, शुभता, पूजा अर्चना प्रार्थना द्वारा अरिष्ट निवारण, स्वस्थ, श्रेष्ठ व कल्याणकारी आयोजन, पद, प्रतिष्ठा, प्रताप, पराक्रम व विशेष सफलता, मंगला की दशा या भुक्ति में सहज मिलती है.सन्माङ्गल्यविभूषणाम्बरचयस्त्रीभोगसन्दायिनी ज्ञानानन्दकरी दशा भवति सा ज्ञेया सदा मङ्गला ॥
२ - पिंगला (सूर्य) - अवधि २ वर्ष :
स्यात्पुंसां यदि पिङ्गला प्रसवतो हृद्रोगशोकप्रदा नानारोगकुसङ्गदेहमनसो व्याध्यर्दितार्तिप्रदा ।
तृष्णासृग्ज्वरपित्तशूलमलिनस्त्रीपुत्रभृत्याप्तसन्मानध्वंशकरी धनव्ययकरी सत्प्रेमहन्त्री खला ॥
विद्वानों ने सूर्य को क्रूर ग्रह माना है. अतः इस दशा में मनोव्यथा, देह कष्ट, हृदय रोग तथा मिथ्या मनोरथ से उपजा दुःख अथवा अनैतिक आचरण, या कुसंगति के कारण धन व यश की हानि तो कभी पित्त रोग, ज्वर या रक्त विकार से कष्ट होता है. इस अवधि में संतान, सेवक तथा संबंधी भी कष्ट पाते हैं जिस कारण मन दुखी रहता है. कुछ विद्वान पिंगला का संबंध अग्नि-दुर्घटना या उष्णता, वरिष्ठ जन के सहयोग से कार्य सिद्धि, उल्लू जैसी सजगता, कुबेर का खजाना, पर्यटन प्रेम, व्यापार कुशलता, पीला या सुनहरी रंग जो प्रसन्नता का वातावरण बनाए, कष्ट-क्लेश से मुक्ति, किसी प्रभावशाली महिला का सहयोग व समर्थन तथा शुभ कृत्य, उदारता, परोपकार और अधिकार या सत्ता सुख से जोड़ते हैं. ध्यान रहे पिंगला एक सरल हृदया और धार्मिक विचार वाली राजनर्तकी थी जो अपने तोते को राम नाम सिखाते हुए मृत्यु प्राप्त कर मुक्त हो गई.तृष्णासृग्ज्वरपित्तशूलमलिनस्त्रीपुत्रभृत्याप्तसन्मानध्वंशकरी धनव्ययकरी सत्प्रेमहन्त्री खला ॥
३ - धान्या (गुरु) - अवधि ३ वर्ष :
धान्या धन्यतमा धनागमसुखव्यापारभोगप्रदा पुंसां मानविवृद्धिदा रिपुगणप्रध्वंसिनी साैख्यदा ।
विद्याराजजनप्रबोधसुरतज्ञानाङ्कुरान्वर्द्धिनी सत्तीर्थामरसिद्धसेवनरतिर्लभ्या दशा भाग्यतः ॥
धान्या दशा का संबंध गुरु, उन्नति, प्रगति, विकास, धन-मान की वृद्धि तथा सुख सम्पन्नता से माना जाता है. इस अवधि में विद्या, शिक्षा और योग्यता बढ़ती है तथा शत्रु नष्ट होते हैं. गुरु धर्म और अध्यात्म का कारक होने से, धान्या दशा में, जातक देवार्चन करता है तथा उपासना व तीर्थाटन से कार्यसिद्धि व सुख पाता है तो कभी राजा के अनुग्रह से धन, मान और पद प्रतिष्ठा मिलती है. अन्य विद्वान धान्या को धन धान्य की वृद्धि करने वाली दशा मानते हैं. ये दशा स्वास्थ्य, सम्मान, सद्गुण, स्नेह व परस्पर सहयोग को बढ़ाकर सुखी बनाती है. यों तो प्राचीन ग्रंथों में धान्या को मधुर, शीतल, स्वादिष्ट, स्वास्थयवर्धक तथा उत्तम भोजन माना है किन्तु मतान्तर में कहीं धान्या का अर्थ कसैला, कड़वा अथवा प्यास बढ़ाने वाला, तिक्त तथा मूत्र रोग का कारक भी माना गया है.विद्याराजजनप्रबोधसुरतज्ञानाङ्कुरान्वर्द्धिनी सत्तीर्थामरसिद्धसेवनरतिर्लभ्या दशा भाग्यतः ॥
४ - भ्रामरी (मंगल) - अवधि ४ वर्ष :
दुर्गारण्यमहीधरोपगहनारामातपव्याकुला दूराद्दूरतरं भ्रमन्ति मृगवत्तृष्णाकुलाः सर्वतः ।
भूपालान्वयजा दशामधिगता ये वै नृपा भ्रामरीं स्वं राज्यं प्रविहाय ते स्फुटतरं क्ष्माधो लुठन्ते मुहुः ॥
यह दशा पर्यटन, भ्रमण तो कभी घर परिवार से दूर निरर्थक भटकाव दिया करती है. मंगल अग्नि तत्त्व, क्रूर ग्रह होने से कभी, पदभंग, मानहानि या स्थानांतरण संबंधी क्लेश देता है. कोई जातक साहस, पराक्रम तथा परिश्रम से, अपनी प्रतिष्ठा बचाने या सफलता और सम्मान पाने से सुखी होता है. अन्य विद्वानों के अनुसार भ्रामरी दशा घर परिवार के सुख में तो कमी करती है किन्तु परिश्रम व पर्यटन द्वारा जातक, राजा सरीखे धनी मानी व्यक्तियों की कृपा से लाभ पता है. यदि जातक मानसिक संतुलन और धैर्य बनाए रखे तो जैसे देवी ने भ्रमरों द्वारा दैत्य समुदाय का नाश किया था, वैसे ही सारी बुराइयां इस दशा में स्वतः मिट जाती हैं. भूपालान्वयजा दशामधिगता ये वै नृपा भ्रामरीं स्वं राज्यं प्रविहाय ते स्फुटतरं क्ष्माधो लुठन्ते मुहुः ॥
५ - भद्रिका (बुध) - अवधि ५ वर्ष :
साैहार्दं निजवर्गभूसुरसुरेशानां सुहृन्मान्यता माङ्गल्यं गृहमण्डलेऽखिलसुखव्यापारसक्तं मनः ।
राज्यं चित्रकपोलपालितिलकालिप्ताङ्गनाभिः समं क्रीडामोदभरो दशा भवति चेत् पुंसां हि भद्राभिधा ॥
यह दशा परिवार में स्नेह, सौहार्द तथा सहयोग बढ़ाती है. नए व लाभकार मैत्री संबंध बनते हैं. जातक संत, महात्मा, धनी मानी तथा राजा या उच्च अधिकारियों की कृपा से धन, मान व सुख पता है. घर में मंगल समारोह का आयोजन होता है. व्यापारिक दक्षता तथा सुख सुविधा की वृद्धि होती है. मित्रों के साथ आमोद-प्रमोद में समय बीतता है. भद्र या भद्रिका का अर्थ शुभ और कल्यानप्रद होता है. जातक मानो शुभता का आगार बन जाता है. सिद्ध महात्मा और धनी मानी व्यक्तियों के आशीर्वाद से उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. वह स्वस्थ, गुणी, उदार, परोपकारी तथा दूसरों की सेवा सहायता को तत्पर रहने से स्नेह, सम्मान व प्रतिष्ठा पाता है.राज्यं चित्रकपोलपालितिलकालिप्ताङ्गनाभिः समं क्रीडामोदभरो दशा भवति चेत् पुंसां हि भद्राभिधा ॥
६ - उल्का (शनि) - अवधि ६ वर्ष :
उल्का चेद्यदि योगिनी गुरुदशा मानार्थगोवाहनव्यापाराम्बरहारिणी नृपजनक्लेशप्रदा नित्यशः ।
भृत्यापत्यकलत्रवैरजननी रम्यापहन्त्री नृणां हृन्नेत्रोदरकर्णदन्तपदजो रोगः स्वदेहे भृशम् ॥
किसी अग्नि पिंड का आकाश से गिरना उल्कापात कहलाता है. इसकी तुलना निर्धारित लक्ष्य पर मार करने वाले संहारक प्रक्षेपास्त्र से की जा सकती है. यह दशा धन, यश तथा वाहन सुख को नष्ट करती है. संतान तथा सेवक से मानसिक कष्ट क्लेश मिलता है. कभी राजा के कोप से धन और प्रतिष्ठा की हानि होती है. परिवार में मतभेद या वैर विरोध बढ़ने से, घर मानो युद्ध भूमि अथवा शत्रु दुर्ग सरीखा जान पढ़ता है. हृदय, उदर, दांत, कान या पाँव की पीड़ा भी दुःख दिया करती है. अन्य विद्वानों के मत से उल्का दशा, नगर या बस्ती में उपद्रव या उत्पाद (दंगों) से कष्ट देती है. कभी अग्नि या दुर्घटना का भय होता है. शायद ये अवधि व्यक्ति, परिवार, समाज तथा देश (स्थान) के लिए अशुभ और अनिष्टप्रद है. कोई जातक ज्योतिष या व्याकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट सफलता भी पाता है.भृत्यापत्यकलत्रवैरजननी रम्यापहन्त्री नृणां हृन्नेत्रोदरकर्णदन्तपदजो रोगः स्वदेहे भृशम् ॥
७ - सिद्धा (शुक्र) - अवधि ७ वर्ष :
सिद्धा सिद्धिकरी सुभोगजननी मानार्थ सन्दायिनी विद्याराजजनप्रतापधनसद्धर्माप्तसज्ज्ञानदा ।
व्यापाराम्बरभूषणादिकसुतोद्वाहादिमाङ्गल्यदा सत्सङ्गान्नृपदत्तराज्यविभवो लभ्या दशा पुण्यतः ॥
इस दशा विद्वानों ने धन, विद्या, सफलता व संपन्नता देने वाली दशा माना है. जातक सुख, सौभाग्य, सम्मान तथा पद-प्रतिष्ठा व यश पाता है. उसे धन, वस्त्र, रत्नाभूषण तथा वाहन सुख की प्राप्ति होती है. कभी बच्चों का विवाह होने से सुख व संतोष मिलता है. अन्य विद्वानों के अनुसार इस दशा में जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. उसे मनोवांछित लाभ और सफलता मिलती हैं. वह उच्च पद, अधिकार व सत्ता सुख पाता है. कभी सिद्ध महात्माओं की कृपा से, दैवीय गुण और शक्तियों का विकास होता है. वह निर्णय कुशल, सभी के झगड़े निपटाने वाला तथा चमत्कारिक व्यक्तित्व का धनी व प्रतिष्टित व्यक्ति होता है.व्यापाराम्बरभूषणादिकसुतोद्वाहादिमाङ्गल्यदा सत्सङ्गान्नृपदत्तराज्यविभवो लभ्या दशा पुण्यतः ॥
८ - संकटा (राहू) - अवधि ८ वर्ष :
राज्यभ्रंशाग्निदाहो गृहपुरनगरग्रामगोष्ठेषु पुंसां तृष्णारोगाङ्गधातुक्षयविकृतिरथो पुत्रकान्तावियोगः ।
चेत्स्यान्मोहोऽरिभीतिः कृशतनुलतिकासङ्कटायाः विरोधो नोमृत्युर्जन्मकालाद्यमपि हि विना सङ्कटां योगिनीजम् ॥
यह दशा धन, मान, यश तथा पद प्रतिष्ठा की हानि करती है. कभी चोरी, अग्निभय या उपद्रव के कारण धन सम्पदा का नाश होता है. मिथ्या मनोरथ, देह की दुर्बलता, परिवार से वियोग या स्वर्ण की हानि भी क्लेश देती है. यदि आयुष्य स्माप्त प्रायः हो तो जातक की मृत्यु होना भी संभव है. मतान्तर से जातक मनमानी करने की प्रवृत्ति, हठी स्वभाव, कुसंगति व स्वार्थपूर्ण आचरण के कारण अपनी परेशानी स्वयं ही बढ़ाता है. लोभ और स्वार्थ के वशीभूत होकर वह नीति विरुद्ध कार्य कर अपयश और कलंक का भागी बनता है. कभी संकीर्ण व संकुचित मनोवृति भी मनोव्यथा का कारण बनती है. सङ्कटा महादशाकाे कालखण्डमा यसरी शारीरिक, मानसिक र अार्थिक प्रत्येक किसिमका पीडा व्यहोर्नु पर्ने अवस्थाको सिर्जना हुन्छ । महादशा ही नहीं, इस योगिनी का अन्तर्दशा प्राप्त होने पर भी कष्टप्रद रहता है, मानसागरी में उल्लेख है :-चेत्स्यान्मोहोऽरिभीतिः कृशतनुलतिकासङ्कटायाः विरोधो नोमृत्युर्जन्मकालाद्यमपि हि विना सङ्कटां योगिनीजम् ॥
भ्रामर्यां च तथोल्कायां सङ्कटान्तर्दशा यदि । तदा तु यमराजस्य सदनं प्राप्यते नृभिः ॥
भ्रामरी या उल्का के महादशा काल में सङ्कटा की अन्तर्दशा प्राप्त होने पर जातक यमराज के सदन तक पहँच सकता है । इसी लिए सङ्कटा योगिनी का दशा ही नहीं अन्तर्दशा काल में भी जातक को सचेत रहना चाहिए । बनारस की संकटा देवी की उपासना करने से संकट मिटते हैं तथा सुख की प्राप्ति होती है.
योगिनी : परिचय व फलादेश
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
अप्रैल 24, 2019
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