जानिए महादेव शिव के अस्त्र त्रिशूल, नाग, डमरू, त्र‌िपुंड और चंद्रमा का गुप्त रहस्य !!

भगवान महादेव
शिव के पास कैसे आये ये,
इन गुप्त एवं गहरे रहस्यों को
जान हैरान रह जायेंगे आप!! 
भगवान श‌िव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छव‌ि उभरती है वो एक तपस्वी पुरुष की होती है। इनके एक हाथ में त्र‌िशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प माला, स‌िर पर चंद्रमा और माथे पर त्र‌िपुंड चंदन लगा हुआ है। कहने का मतलब है क‌ि श‌िव के साथ ये 5 चीजें जुड़ी हुई हैं। आप दुन‌िया में कहीं भी चले जाइये आपको श‌िवालय में श‌िव के साथ ये 5 चीजें जरुर द‌‌िखेगी। क्या यह श‌िव के साथ ही प्रकट हुए थे या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह श‌िव से जुड़ते गए। श‌िव के साथ इनका संबंध कैसे बना और यह भगवान श‌िव जी से कैसे जुड़ी… 

इन रहस्यों से आज हम आपको अवगत करवा रहे हैं .........


आइये जानते है भगवान शिव के त्रिशूल से जुड़े अनोखे एवं रहस्मयी बाते…

भगवान शिव के त्रिशूल के संबंध में कहा जाता है की यह त्रिदेवो का प्रतीक ब्र्ह्मा, विष्णु, महेश है यानि इसे रचना, पालन एवं विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भुत, भविष्य तथा वर्तमान के साथ स्वर्ग, धरती तथा पाताल एवं इच्छा क्रिया एवं बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।

देवो के देव महादेव शिव अत्यन्त निराले तथा इसके साथ ही उनकी वेशभूषा भी अत्यन्त विचित्र है। भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल है। शिव शंकर के हाथ में मौजूद यह त्रिशूल अपने विषय में एक अलग ही कथा प्रस्तुत करता है। कुछ लोग भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल को विनाश की निशानी मानते है। परन्तु वास्तव में भगवान शिव के त्रिशूल के रहस्य को समझ पाना भगवान शिव के समान ही रहस्मयी एवं बहुत कठिन है। हमारे हिन्दू धार्मिक पुराणों एवं ग्रंथो में अनेक गूढ़ रहस्य छिपे हुए है जिनमे से एक है भगवान शिव के हाथ में उपस्थित त्रिशूल।
भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल। भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है। माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण श‌िव जी के तीन शूल यानी त्र‌िशूल बने। इनके बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्ट‌ि का संचालन कठ‌िन था। इसल‌िए श‌िव ने त्र‌िशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण क‌िया।

तीनों गुण सत, रज, तम का भी परिचायक है! त्रिशूल ..... 


इसके साथ ही हिन्दू धर्म में देवियो के हाथो में भी त्रिशूल देखा जाता है। देवी शक्ति दुष्टों का विनाश अपने शस्त्र त्रिशूल से करती है। अतः भगवान शिव के त्रिशूल को त्रिदेवियों माता लक्ष्मी, सरस्वती एवं पार्वती के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है की भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण भौतिक लोक, पूर्वजो की दुनिया तथा विचारों की दुनिया के सर्वविनाश के लिए हुआ था। ताकि दुनिया में मनुष्य के बढ़ते पाप का विनाश कर एक नए आध्यात्मिक दुनिया का निर्माण हो सके ताकि सृष्टि में कोई पाप शेष ना रहे।

त्रिशूल, तीनों गुण सत, रज, तम का भी परिचायक है और त्रिशूल का शिव के हाथ में होने का अर्थ है कि भगवान तीनों गुणों से ऊपर है, वह निर्गुण है। शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है तथा इसमें मनुष्य के अतीत, भविष्य तथा वर्तमान के कष्टों को दूर करने की ताकत होती है। इतना ही नहीं इसी के साथ हमारी आत्मा जन्म एवं मृत्यु के चक्र को छोड़ मोक्ष की प्राप्ति द्वारा ईश्वर का सानिध्य पा सकती है।

शिव के त्रिशूल में इंसानी मस्तिष्क और शरीर में व्याप्त विभिन्न बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने की भी ताकत है। मनुष्य शरीर में भी त्रिशूल, जहां तीन नाड़ियां मिलती हैं, मौजूद है और यह ऊर्जा स्त्रोतों, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को दर्शाता है। सुषुम्ना जो कि मध्य में है, को सातवां चक्र और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है।
हमारे शरीर में एक स्थान ऐसा होता है जो बाहरी उठापटक को पूरी तरह नजरअंदाज करता है और यह तभी कार्य करता है जब सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने लगती है। सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने के साथ ही जीवन की असली शुरुआत होती है। जब बाहर हो रही किसी भी तरह की गतिविधियों का प्रभाव मनुष्य के भीतर नहीं होता। वहीं अन्य दो कोनों को इड़ा और पिंगला कहा जाता है। इड़ा और पिंगला को शिव और शक्ति का नाम भी दिया जाता है। इन्हें शिव और शक्ति का नाम लिंग के अनुसार नहीं बल्कि उनकी विेशेषताओं के आधार पर दिया गया है।

जानें कैसे आया श‌िव के हाथों में डमरू 

भगवान श‌िव जी को संहारकर्ता के रूप में वेदों और पुराणों में बताया गया है। जब‌क‌ि श‌िव का नटराज रूप ठीक इसके व‌िपरीत है। यह प्रसन्न होते हैं और नृत्य करते हैं। इस समय श‌िव के हाथों में एक वाद्ययंत्र होता है ज‌‌िसे डमरू करते हैं। इसका आकार रेत घड़ी जैसा है जो द‌िन रात और समय के संतुलन का प्रतीक है। श‌िव भी इसी तरह के हैं। इनका एक स्वरूप वैरागी का है तो दूसरा भोगी का है जो नृत्य करता है पर‌िवार के साथ जीता है। इसल‌िए श‌िव के ल‌िए डमरू ही सबसे उच‌ित वाद्य यंत्र है। यह भी माना जाता है क‌ि ‌ज‌िस तरह श‌िव आद‌ि देव हैं उसी प्रकार डमरू भी आद‌ि वाद्ययंत्र है।

भगवन श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया। लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी। उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है। सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।



















श‌िव के गले में व‌िषधर नाग कहां से आया ?








भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है। इस नाग का नाम है वासुकी। इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था ज‌िससे सागर को मथा गया था। कहते हैं क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे। इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान द‌िया।










शिवजी ने क्यों धारण किया सिर पर चन्द्रमा.. 


आइये जानते है इससे जुड़ी प्रचलित कथा के बारे में। शिवजी के सिर पर चन्द्र उनके योगी स्वरूप की शोभा बढ़ाता है। इनका एक नाम शशिधर भी है। शिवजी अपने सिर पर चंद्र को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है।

इस संबंध में शिव पुराण में उल्लेख है कि जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे विष निकला। विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया। इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र को धारण किया। 

दूसरी कथा के अनुसार के अनुसार चन्द्रमा का व‌िवाह दक्ष प्रजापत‌ि की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं। इनमें चन्द्रमा रोह‌िणी से व‌िशेष स्नेह करते थे। इसकी श‌िकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया। इस शाप बचने के ल‌िए चन्द्रमा ने भगवान श‌िव की तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने श‌‌ीश पर स्‍थान द‌िया। जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी वह स्‍थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।
चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए। आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

श‌िव के माथे पर इस तरह आया त्र‌िपुंड… 


भगवान श‌िव के माथे पर भभूत (राख) से बनी तीन रेखाएं हैं। माना जाता है क‌ि यह तीनों लोको का प्रतीक है। इसे रज, तम और सत गुणों का भी प्रतीक माना जाता है। लेक‌िन श‌ि‌व के माथे पर भभूत की यह तीन रेखाएं कैसे आयी इसकी बड़ी रोचक कथा है।

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजपत‌ि के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह करने के बाद भगवान श‌िव उग्र रूप धारण कर लेते हैं और सती के देह को कंधे पर लेकर त्र‌िलोक में हहाकार मचाने लगते हैं। अंत में व‌िष्‍णु चक्र से सती के देह को खंड‌ित कर देते हैं। इसके बाद भगवान श‌िव अपने माथे पर हवन कुंड की राख मलते और इस तरह सती की याद को त्र‌िपुंड रूप में माथे पर स्‍थान देते हैं।
जानिए महादेव शिव के अस्त्र त्रिशूल, नाग, डमरू, त्र‌िपुंड और चंद्रमा का गुप्त रहस्य !! जानिए महादेव शिव के अस्त्र त्रिशूल, नाग, डमरू, त्र‌िपुंड और चंद्रमा का गुप्त रहस्य !! Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on अप्रैल 24, 2019 Rating: 5

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