एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन
भीतर से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी हो सकता है, इसीलिए
लोग विवाह बंधन से पहले कुंडली की व्याख्या कराना जरूरी समझते हैं। कुंडली के बारह
भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है। इस भाव के अलावा आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में
अनिवार्य माना जाता है।
वैवाहिक बंधन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बंधन है। विवाह
प्यार और स्नेह पर अधारित एक संस्था है। यह वह पवित्र बंधन है, जिसपर
पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है। समान्यत: कुंडली में अष्ट कुट एवं मांगलिक
दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह जान लेना अनिवार्य है कि
कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति महत्वपूर्ण है।
एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन
भीरत से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी भी हो सकता है, जाहिर है कि कुंडली की विस्तृत व्याख्या अनिवार्य मानी जाती है। कुंडली के
बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव के
अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का
पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य है।
नवमांश कुंडली सप्तांश, चतुर्विशांश, सप्तविशांश के अलावा रोग के लिए त्रिशांश कुंडली भी देखी जाती है। लड़कों
के लिए शुक्र एवं लड़कियों के लिए गुरु कारक ग्रह है, इसकी
स्थिति देखना अनिवार्य है। पुन: गुरु से सप्तम, चंद्र
से सप्तम एवं सप्तम भाव के अधिपति की शुभ स्थिति देखी जाती है। शुभ ग्रह उसे कहते
है जो स्वगृही, मित्रगृही या उच्च हो। आजकल शादी में
सिर्फ लड़की का रूप-रंग ही देखा जाता है, जबकि सामान्य
कद-काठी और रूप-रंग के बच्चे भी यदि अत्यंत भाग्यशाली हुए, तो घर की स्थिति उत्तरोत्तर अच्छी होती जाती है और घर में चार चांद लग
जाते हैं। कई मामलों में मांगलिक दोष भी भंग हो जाता है, लेकिन उसे मांगलिक मान लिया जाता है और शादियां कट जाती हैं।
सप्तम भाव के ग्रह का विभिन्न भाव में शुभ स्थिति में
फल
यदि सप्तम भाव का स्वामी प्रथम भाव में हो तो वह ऐसे
व्यक्ति से शादी करेगा जिसे वह बचपन से जानता हो। पति एवं पत्नी प्रखर बुद्धि के
होंगे और सभी बातों की जांच करने की क्षमता होगी। यदि यह दूसरे भाव में हो तो
पत्नी धनी होगी या उसके आने के बाद धन होगा। यदि तीसरे भाव में हो तो भाई भाग्यशाली
होंगे एवं विदेश में निवास करेंगे। यदि सप्तमेश चौथे भाव में हो तो जीवन पूर्णत:
प्रसन्न एवं खुशहाल होता है।
यदि पंचमभाव में हो तो पति या पत्नी संपन्न परिवार से
होंगे और एक-दूसरे के लिए लाभकारी होंगे। छठे भाव में होने पर शुभ स्थिति नहीं
रहती, लेकिन सप्तम भाव में स्थित होने से पति या पत्नी का
व्यक्तित्व आकर्षक होता है, वह न्यायप्रिय और सम्मानित
व्यक्ति होता है। अष्टम भाव में स्थित होने से उसकी शादी किसी पास के संबंध में ही
हो जाती है और दोनों धनी रहते हैं। नवम भाव में स्थित होने से जातक के पिता विदेश
में रहते हैं, पत्नी सुसंस्कृत एवं आदर्श होती है।
दशम भाव में स्थित होने पर जातक विदेश में सफल होता
है, यात्र
निरंतर करनी पड़ती है, पति या पत्नी एक-दूसरे के प्रति
समर्पित रहते हैं। वहीं एकादश भाव में स्थित होने पर पत्नी धनी परिवार से होती है
एवं अपने साथ प्रचूर धन लाती है। द्वादश भाव में होने पर स्थिति शुभ नहीं रहती है।
दाम्पत्य भाव में स्थित ग्रहों का फल
अगर इस भाव में सूर्य हो तो जातक गोरा होगा, सिर
पर बाल कम होंगे, शादी विलंब से होगी, उसमें कष्ट होगा। यदि इस भाव में चंद्रमा हो तो पति या पत्नी देखने में
सुंदर होंगे, लेकिन ईष्या की भावना होगी। इस भाव में
मंगल हो तो जातक पर पत्नी का शासन रहेगा एवं दाम्पत्य तनावपूर्ण होगा। बुध वहां
उपस्थित हो तो वह जातक सदाचारी और मिलनसार होगा, उसे
कानून या गणित का ज्ञान होगा, उसे लिखने की क्षमता होगी।
यहां गुरु होने से वह राजनयिक और कोमल हृदय वाला होगा, पति
या पत्नी सुंदर होगी, शिक्षा अच्छी होगी, शादी से लाभ होगा। इस भाव मे शुक्रहो तो जातक का विवाहित जीवन सुखी रहेगा, पत्नी इसकी भक्त होगी, लेकिन यह झगड़ालु होगा।
यहां शनि होने से विवाह विलंब से होगा, जातक
अपनी पत्नी के नियंत्रण में रहेगा, पत्नी कुरूप होगी, लेकिन अत्यधिक मेहनती होगी। यदि यहां राहू हो तो यह जातक के परिवार के लिए
दुख लेकर आयेगा, पत्नी स्त्रीजन्य रोग से पीड़ित होगी
एवं आरामपसंद होगी। इस भाव में केतू रहने से पत्नी दुष्ट प्रकृति की होगी अथवा पति
दुष्ट होगा, जातक के पेट में असाध्य बीमारी होगी।
विवाह बंधन से पहले ज्योतिष की उपयोगिता
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जून 30, 2019
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