गुरु और शुक्र ग्रहों को लेकर हमेशा से ही भ्रम की स्थिति बनी रही है। गुरू जहां देवताओं के गुरू हैं वहीं शुक्र राक्षसों के। ऐसे में शादी विवाह आदि मांगलिक कार्यों में शुक्र उदय होना आवश्यक मना गया है बजाय गुरू के। अरविन्द मिश्रा जी को भी यही कंफ्यूजन है कि राक्षसों का गुरु उदय होता है तो मांगलिक कार्य क्यों होते हैं। हालांकि मिश्राजी को यह भी डर है कि किसी ज्योतिषी से इस सवाल का हल पूछा जाएगा तो ऊलूल जुलूल जवाब ही हाथ आएंगे। इसके बावजूद मैं प्रयास करने का जोखिम उठाना चाहता हूं।
यह समझने की बात है कि देवताओं के गुरू बृहस्पति और राक्षसों के गुरू शुक्र अलग-अलग खेमों का मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन दीगर बात यह है कि इसके बावजूद भी दोनों की प्रकृति एक ही है। यानि मार्गदर्शन करना। वास्वत में गुरू सामाजिक प्रतिष्ठा, ज्ञान, लोक व्यवहार और ऐसे ही कई बिंदुओं के लिए जरूरी है जो इंटरपर्सनल स्किल से जुड़े हैं। वहीं शुक्र आमोद-प्रमोद, विलासिता, दैहिक आनन्द, स्टेटस और ऐसे ही कई बिंदुओं से जुड़ा है।
किसी मांगलिक कार्य में इन दोनों चीजों की सख्त आवश्यकता होती है। यानि एक ही समय में दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों और जानकारों तक अपनी खुशी पहुंचाना और उसी खुशी को सेलिब्रेट करना। इनमें से एक भी चीज का अभाव हो तो पूरा आयोजन ही बोझ बन सकता है।
गुरू या शुक्र अस्त हों तो माना जाता है कि वे सूर्य के काफी करीब पहुंच चुके हैं। एस्ट्रोनॉमिकली यह बात अलग से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। यह हुआ ज्योतिष के गणित का भाग। अब फलित ज्योतिष का मानना है कि अस्त होने की स्थिति में ग्रह अपना प्रभाव सूर्य को सौंप देते हैं। यानि ग्रहों का नैसर्गिक प्रभाव कम या खत्म हो जाता है। यह स्थिति भी खराब है।
यहां सूर्य के प्रभाव का अर्थ ऐसे निकाला जा सकता है कि शादी का माहौल हो और घर का मुखिया ओवर कंट्रोल की स्थिति बना दे। न बाजे बजेंगे, ना संगीत होगा और न बिना प्रोटोकॉल के दूसरे लोगों से मिलना है। यानि सबकुछ ओवर मैनेज्ड। यह स्थिति अधिकांश लोगों को पसंद नहीं आएगी।
इसलिए कोशिश की जाती है कि मांगलिक कार्यों के दौरान गुरू और शुक्र दोनों में से कोई भी अस्त न हो। और दूल्हे या दुल्हन के परिजन मैरीजनस एटमॉसफीयर का पूरा आनन्द ले सकें।
शुक्र विचार
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जून 30, 2019
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