यह है जलवा राहू-केतु का ..........
प्रिय बंधुओ , अगर आप पर आपके ही योगकारी या उच्च के ग्रह की दशा चल रही है तो भी आप को सफलता नहीं मिल रही तो जान लें ये भी राहू-केतु का गुप्त खेल होता है.......
प्रिय बंधुओ , जिस भी ग्रह की दशा चल रही हो यदीं उस पर भी राहू या केतु की पंचम / सप्तम /नवम दृष्टि का कुप्रभाव हो जाये तो भी सफलता नहीं मिल पाती........
प्रिय बंधुओ , हमारी जन्मपत्री में त्रिकोण यानि (लग्न / पंचम स्थान / नवम स्थान) बहुत कीमती होती है यदीं इन स्थानों पर और इनके स्वामी ग्रहों पर भी राहू या केतु की पंचम / सप्तम /नवम दृष्टि का कुप्रभाव हो जाये तो भी सफलता नहीं मिल पाती........
प्रिय बंधुओ , हमारी जन्मपत्री में पितरों से सम्बंधित ग्रह सूर्य ,चंदर और बृहस्पति भी बहुत कीमती होते है यदीं इन पर भी राहू या केतु की पंचम / सप्तम /नवम दृष्टि का कुप्रभाव हो जाये तो भी सफलता नहीं मिल पाती.......
प्रिय बंधुओ , हमारी जन्मपत्री के दुसरे , पांचवे या नोवें भाव में राहू के बैठने का कुप्रभाव हो जाये तो भी पितृ दोष बन जाता है सफलता नहीं मिल पाती........
ज्योतिष वो विद्या जो मानव के भूत , भविष्य और वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है , ब्रह्मा जी के ऋषि पुत्र मह्रिषी भृगु ने और उनके ऋषि भ्रात्रों के तप का अथक प्रयास करके नवग्रहों की चाल और स्वभाव को मानव जीवन के साथ जोड़ा और इस चाल के प्रभाव को फलादेश के रूप में विभिन्न शास्त्रों में कलम बद्द कर दिया , नवग्रहों की चाल और उनकी युतियों को शोध करके विभिन्न योगों का नाम दिया गया उन्ही में से एक योग है जो आज के कलयुग में मानव पर सबसे अधिक प्रभाव डाल रह है वो है महा विवादास्पद '' पितृ दोष या फिर कहें काल-सर्प दोष '' आईये जाने ,,, जब कोई भी भाव दो पाप ग्रहों के बीच घिर जाये तो ''पाप-कर्त्री दोष'' कहलाता है इसी प्रकार जब आधी कुण्डली दो तामसिक ग्रहों राहू और केतु से घिर जाये और बाकी पिंड ग्रह इस ''फांस'' में आ जाएँ तो ''महा पाप कर्तरी दोष'' अथवा आधुनिक शोध अनुसार काल सर्प दोष कहलाता है , प्राचीन समय में ज्योतिष में इसी को पितृ-दोष भी कहा जाता था , जिसका सम्बन्ध हमारे पूर्वजों की अन्यायी मृत्यु या अचानक होने वाली घटना से जोड़ा गया है जैसे घर में एक के बाद एक मौत होना , ब्रेन हेम्ब्रेज , मूक हृदय अघात , लम्बी बीमारी में बहुत अधिक (लाखों में) खर्चा हो जाना फिर भी मरीज की मृत्यु हो जाना यानि घर की दौलत (लक्ष्मी का रूठना ) का चले जाना और जीव का भी न बचना , किसी का आत्महत्या कर लेना , हत्या हो जाना , एक्सीडेंट में कट कर मरना , घर से अचानक लापता हो जाना , गृहस्थी का सुख भोगे बिना किसी कुंवारे की मृत्यु हो जाना , घर की बहु-बेटी का बगावत कर स्वयं को जला लेना यानि वंश की वृद्धि न होने का कारण बनना , घर में पुरुषों की कमी या पुत्र संतान प्राप्त न होना या सन्तान ही न होना या (एब्नोर्मल चाइल्ड ) मानसिक विक्षिप्त या शारीरिक अविकसित सन्तान होना या घर में किसी अतृप्त बुजुर्ग की आत्मा के वास का आभास होना या प्रेत दिखाई देना ..... ये सभी पितृ-दोष के साक्षात् सामान्य लक्ष्ण है ,,,जिसका ज्ञान जन्म कुण्डली से भी भली भांति जाना जा सकता है |
जलवा राहू-केतु का .................
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जून 30, 2019
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