ईश्वर को पाने का सहज मार्ग प्रार्थना और ध्यान


ईश्वर तथा आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करने की दो विधियां हैं-प्रार्थना और ध्यान। भक्ति मार्ग में प्रार्थना और ध्यान दोनों का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि प्रार्थना से ध्यान थोडा कठिन है, क्योंकि प्रार्थना सहज है और इसे प्रत्येक व्यक्ति आसानी से कर सकता है। लेकिन ध्यान के लिए मानसिक एकाग्रता की आवश्यकता पडती ही है। प्रार्थना का महत्व कहते हैं कि जब हम कमजोर अथवा असहाय हो जाते हैं, तब प्रार्थना के अलावा और कोई रास्ता हमें दिखाई ही नहीं पडता है। प्रार्थना उच्च, मध्यम, यहां तक कि निम्न कोटि की भी हो सकती है। कभी-कभी हम स्वार्थ और दिखाने के लिए भी देवी-देवताओं के समक्ष आंखें बंद कर प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग तो केवल अपने क्षुद्र स्वार्थ की प्राप्ति के लिए भी प्रार्थना करते हैं। जब हम सच्चे मन से दूसरों की भलाई के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, तो उसे उच्च कोटि की प्रार्थना माना जाता है। इसके अलावा, जब हम अपने लिए आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण होने के लिए प्रार्थना करते हैं, तो वह मध्यम हो जाती है और जब हम दूसरों को नीचा दिखाने के लिए प्रार्थना करते हैं, तो वह निम्न स्तर की प्रार्थना हो जाती है।
प्रार्थना में हमें न केवल ईश्वर से मांगना पडता है, बल्कि याचना भी करनी पडती है, जबकि ध्यान में अपने आप ही सब कुछ मिल जाता है। प्रार्थना में आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि हम प्रार्थना बचपन में ही सीख जाते हैं। जीवन से मुक्ति दिलाता है ध्यान वास्तव में, जीवन से मुक्ति प्राप्त करने आध्यात्मिक शक्ति-संपन्न बनने, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने, ईश्वर को प्रसन्न करने तथा पूरे संसार पर विजय पाने का एकमात्र साधन है ध्यान। ध्यान की विधियां सहज और सरल जरूर हैं, लेकिन उसके लिए आध्यात्मिक ज्ञान का होना आवश्यक है। ध्यान के लिए ईश्वरीय मर्यादाओं के पालन की आवश्यकता भी पडती है। ध्यान में मौन भाषा अनिवार्य है। सच तो यह है कि आज तक जितने भी महापुरुष और सिद्धपुरुषहुए हैं, उनकी सफलता ध्यान से ही संभव हो पाई है। ध्यान से न केवल विचारों में पवित्रता आती है, बल्कि हमारी संकल्प -शक्ति में भी वृद्धि होती है। पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी ध्यान की अहम भूमिका होती है। जब हम ध्यान करते हैं, तो उससे निकलने वाली ऊर्जा और शक्ति शुद्ध और शक्तिशाली वातावरण का निर्माण करती है। श्रीमद्भागवत गीता में भी श्रीकृष्ण ने परमात्मा की प्राप्ति का साधन ध्यान को ही बताया है। ध्यान से हम सभी सांसारिक माया-मोह के बंधनों से मुक्त हो मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होने लगते हैं। श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है, हे अर्जुन परमात्मा को पाने के लिए कर्मकाण्ड नहीं, बल्कि ध्यान ही श्रेष्ठ विधि है। अपने मन के तार को परमात्मा के साथ जोडना ही ध्यान और योग कहलाता है। ध्यान या प्रार्थना अब सवाल यह उठता है कि ध्यान किया जाए या प्रार्थना! सच तो यह है कि ध्यान सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए यदि किसी भी व्यक्ति को परमात्मा की मदद, स्वयं पर नियंत्रण, पारिवारिक सामंजस्य स्थापित करने या दूसरे व्यक्तियों के मनोभावोंको जानना है, तो ध्यान ही है सर्वश्रेष्ठ साधन। ध्यान में हमारे स्थूल नेत्र बंद हो जाते हैं और अन्त:करण का नेत्र खुल जाता है। इस नेत्र से एक स्थान पर बैठा व्यक्ति दूर की वस्तुओं को देख सकता है, दूसरे व्यक्ति को संदेश दे सकता है। दरअसल, ध्यान की सहायता से हम असंभव से लगने वाले कार्य को भी संभव बना सकते हैं। इसलिए ध्यान और योग की प्रक्रिया को प्राचीन काल से ही विभिन्न महापुरुषों, देवताओं, महाऋषियोंने प्रतिपादित किया है। योगों में सबसे उच्च योग की प्रक्रिया स्वयं सर्वआत्माओंके परमपिता परमात्मा शिव ने योगेश्वर के रूप में हमें बताया और सिखाया है। आइए, हम ध्यान की सहायता से आध्यात्मिक शक्तियों से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाएं। यही समय की मांग है।
ईश्वर को पाने का सहज मार्ग प्रार्थना और ध्यान ईश्वर को पाने का सहज मार्ग प्रार्थना और ध्यान Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

ads 728x90 B
Blogger द्वारा संचालित.