सन्दर्भ : विश्वकर्मा पूजा

सनातन परंपरा में विश्वकर्मा जयंती पूरे धूमधाम से मनाई जाती है। खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे, मशीनों तथा औजारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है। इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं।
'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। और इसके आलावा जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान है, जो भी मंदिर, देवालय है जिनका उल्लेख, शास्त्रों और पुरानो में है उनके निर्माण का भी श्रेय विश्वकर्मा को ही जाता है। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा जी देवताओ के शिल्पी थे।

भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा भी है। इसके अनुसार काशी (वाराणसी) में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। अपने कार्य में निपुण था, परंतु स्थान-स्थान पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्माण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो। इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
पूजन विधि:
भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है। इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता स्नानादि-नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजास्थान में बैठे। इसके उपरांत विष्णु भगवान का ध्यान करे। तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर-ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:, ओम् अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:, ऐसा कहकर चारों दिशाओ में अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। पुष्प जलपात्र में छोड़े। इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं। उस स्थान पर सप्त धान्य रखें। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करें। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर प्रार्थना पूर्वक नमस्कार करें व आग्रह करें-हे विश्वकर्मा देवता, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।


मेषःनियोजित रूप से काम करने से व्यावसायिक योजनाएं सफल होंगी।
क्या करें-रोगी को वस्त्र दें।
क्या न करें-बड़ों की बात को दिल पर ना लें।
वृषभःकार्य के साथ आज मनोरंजन के अवसर भी प्राप्त होंगे।
क्या करें-वाणी पर सयम रखें।
क्या न करें-कोई नया अनुबंध ना करें।
मिथुनःस्वास्थ का ध्यान रखें, नेत्र विकार की संभावना है।
क्या करें-माता पिता के आशीर्वाद लें।
क्या न करें-वाहन नहीं चलाएं।
कर्कःगृहोपयोगी वस्तुओं में वृद्धि व खर्च संभव है।
क्या करें-हनुमान जी को लाल पुष्प की माला अर्पित करें।
क्या न करें-सोते व्यक्ति को ना जगायें।
कन्याःदांपत्यजीवन में मधुरता का अनुभव करेंगे।
क्या करें-जरूरतमंद को मीठा व नमकीन भोजन कराएं।
क्या न करें-भोजन के बाद स्नान नहीं करें।
तुलाःसुखद यात्रा वा सुरुचिपूर्ण भोजन करने का अवसर प्राप्त होगा।
क्या करें-क्रोध ना करें।
क्या न करें-लापरवाही से बचें।
वृश्चिकःआज आयात-निर्यात करने वाले व्यापारी अच्छा लाभ प्राप्त करेंगे।
क्या करें-कुमारी कन्या का पूजन करें।
क्या न करें-बिना स्नान किए तिलक धारण ना करें।
धनुःकोई प्रिय वस्तु जो खो गई हो आज उसके वापस मिलने का योग है।
क्या करें-एक गांठ हल्दी की जल में प्रवाहित करें।
क्या न करें-मध्य रात्रि में स्नान नहीं करें।
मकरःप्रिय व्यक्ति, पुराने मित्र के साथ सुखद पलों का आनंद मिलेगा।
क्या करें-पक्षियों को चारा दें।
क्या न करें-दक्षिण मुख भोजन ना करें।
कुम्भःपरिवार के साथ मनोरंजन हेतु खर्च पर व्यय होगा।
क्या करें-गणेश जी की अराधना करें।
क्या न करें-नीले रंग का वस्त्र प्रयोग ना करें।
मीनःजीवनसाथी के साथ सम्बंध प्रगाढ़ होंगे। व्यस्तता के बाद भी समय निकाल सकेंगे।
क्या करें-जल में फिटकरी ड़ाल कर स्नान करें।
क्या न करें-पश्चिम मुख भोजन नहीं करें।
सन्दर्भ : विश्वकर्मा पूजा सन्दर्भ : विश्वकर्मा पूजा Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

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