परम्परागत भारतीय ज्योतिष में उन्नीसवीं शताब्दी में मिले नेप्च्यून ग्रह को लेकर कोई सामग्रमी नहीं मिलती लेकिन बाद के साहित्य में इसे स्थान तो मिला, पर पहचान नहीं। यूरेनस को लेकर मेरा निजी अनुभव भी कुछ खास अच्छा नहीं रहा है। इसके बावजूद पिछले कुछ समय में नेप्च्यून को लेकर उत्साह में बढ़ोतरी हुई है। इस ग्रह को मास्टर ऑफ डिस्गायस भी कहा जाता है। आइए देखते हैं क्या है इस ग्रह में..
पश्चिमी ज्योतिषियों के अनुसार नेप्च्यून सपनों और छद्म प्रभावों का ग्रह है। यह भावों, राशियों एवं अन्य ग्रहों को अपना विशिष्ट प्रभाव देता है। राशियों में यह गुरु के साथ मीन राशि का आधिपत्य साझा करता है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच की कड़ी मानते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह जातक के अवचेतन के संबंधों के बारे में जानकारी देता है। इस ग्रह की ऊर्जा को धोखे, भ्रम और निराशाजनक लत के रूप में देखा जा सकता है। देसी अंदाज में कहें तो जातक की कुण्डली में नेप्च्यून ग्रह जिस स्थान पर होगा, उस स्थान से संबंधित चमत्कार पैदा करेगा। बारह भावों और बारह राशियों में नेप्च्यून के असर को देखा जा सकता है। हर राशि और भाव में नेप्च्यून रहस्य, आदर्श, अध्यात्म और कल्पनाओं के तीव्र असर का समावेश कर देगा। उदाहरण के तौर पर अगर नेप्च्यून दूसरे भाव में है तो जातक धन कमाने के लिए नए और असामान्य तरीके काम में लेगा।
नेप्च्यून एक राशि में करीब 14 साल तक रहता है। इसके चलते पूरी एक जनरेशन के स्वभाव में एक जैसा प्रभाव भी देखा जा सकता है। भारतीय परिपेक्ष्य में देखें तो आजादी के पहले के सालों को चौदह-चौदह सालों में विभाजित करें तो हर दौर में एक विशिष्ट श्रेणी के लोग अधिक आए। आजादी के बाद भी पीढि़यों की विशिष्टता के दौर जारी हैं। कोई राष्ट्रवादी पीढ़ी है तो कोई भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाली। कोई दौर पश्चिमी अंधानुकरण वालों का रहा तो कोई दौर देश के लिए काम करने वाले लोगों का रहा। पश्चिमी देशों को देखा जाए तो मिथुन राशि बौद्धिकता की परिचायक है। ऐसे में वर्ष 1887 से 1901 के बीच रचनात्मक जीनियस लोगों की भरमार रही। इसी तरह वर्तमान दौर (1998 से 2012) में नेप्च्यून कुंभ राशि में है। यह राशि मानवतावाद और मौलिक चिंतन वाली है। इस दौर के लोग परम्परागत सोच से हटकर काम करने वाले और मानवता की सहायता करने वाले काम करने वाले सिद्ध हो सकते हैं।
नेप्च्यून का गोचर
इस ग्रह को एक राशिचक्र पूरा करने में 164 साल का समय लगता है। ऐसा माना जाता है कि नेप्च्यून का असर इस पर निर्भर करता है कि हम इससे प्रभाव से पैदा हुई स्थितियों के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं अथवा इसका विरोध कर रहे हैं। दरअसल यह ग्रह अपने गोचर के प्रथम चरण में भ्रम पैदा करता है और बाद में स्थितियों को चमत्कारिक रूप से साफ दिखाता है। हकीकत में यह अमूर्त से हमारे तीसरी शक्ति से संपर्क का माध्यम बनता है, और अपने गोचर के अंत में फिर से भौतिक जगत में ले आता है। इस ग्रह का प्रभाव कहां कितना होगा और किस तरह कार्य करेगा इस बारे में भी बताना कुछ मुश्किल है। हां, संकेत निकाले जा सकते हैं, लेकिन ठीक ठीक क्रियाविधि बताना टेढ़ा काम है।
नेप्च्यून भी लगता है महत्वपूर्ण
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
नवंबर 17, 2019
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