जब शापित हुए शनिदेव.......


शनिदेव सूर्य के पुत्र माने जाते हैं। इनकी माता सवर्णा (छाया) थीं। शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है। कहते हैं कि बचपन से ही शनि श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। युवा होने पर इनका विवाह चित्ररथ की बड़ी कन्या से हुआ। इनकी पत्नी साध्वी और तेजस्विनी थीं। एक बार वे दिव्य पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा लेकर पति के निकट आईं। शनिदेव उस समय यौगिक ध्यान-मुद्रा में थे। उन्हें बाहरी जगत का कोई भान नहीं रहा। पत्नी प्रतीक्षा करते-करते थक गईं। उन्होंने इसे अपनी उपेक्षा माना और क्रोधित होकर शनिदेव को तत्काल शाप दे दिया कि अब आप जिस किसी को भी देखेंगे, वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर उन्होंने पत्नी को खूब मनाया। इस पर पत्नी को पश्चाताप होने लगा। कहते हैं कि शनिदेव उसी दिन से सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे किसी भी प्राणी का अहित नहीं करना चाहते थे। उनकी दृष्टि पड़ते ही प्राणी नष्ट हो सकता था।
शनि ग्रह का अपना विशेष महत्व है। ज्योतिष विद्या के अनुसार, शनि ग्रह जब रोहिणी नक्षत्र को भेद कर तीव्र गति से आगे बढ़ता है, तब विनाश- योग बनता है। कथा है कि अयोध्या नरेश राजा दशरथ के काल में इसका योग बना था। यह योग आने पर प्रजा अन्न-जल के अभाव में मृत्युलोक प्राप्त करती है। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए महाराज दशरथ अपने युद्धक रथ में बैठकर नक्षत्र-लोक पहुंच गए। महाराज दशरथ ने शनि देवता की क्षत्रिय धर्म के अनुसार, अस्त्र-शस्त्र से वंदना की। शनि दशरथ की अर्चना से प्रसन्न हो गए और तुरंत उन्होंने राजा से वरदान मांगने कहा। महाराज ने वर मांगा कि जब तक सृष्टि में सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, आप अयोध्या पर किसी प्रकार का संकट न आने दें। शनिदेव की कृपा-दृष्टि पाकर महाराज दशरथ संतुष्ट हो गए। उन्होंने अपने युद्धक रथ में अस्त्र-शस्त्र डाल दिया और फिर से उनकी पूजा-वंदना की। इसके बाद उन्होंने सरस्वती और गणेश का ध्यान करते हुए शुभ स्तोत्र की रचना की।
इस अर्चना से शनिदेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे एक और वरदान मांगने कहा। महाराज दशरथ ने कहा कि आज से आप किसी भी देवगण, मनुष्य या पशु-पक्षी को कष्ट न पहुंचाएं। उन्होंने यह वरदान भी दे दिया। साथ ही, एक शर्त भी रख दी कि यदि किसी की जन्मपत्री या गोचर में मृत्यु-स्थान या चतुर्थ स्थान में रहूं, तब मैं उसे मृत्यु का कष्ट दूंगा। यदि वह मेरी प्रतिमा की पूजा आपके द्वारा रचित स्तोत्र से करेगा, तो मैं उसे कष्ट न देकर रक्षा करूंगा।
मान्यता है कि शनिदेव एक-एक राशि चक्र में तीस-तीस माह निवास करते हैं और तीस वर्ष में सभी राशियों को पार कर जाते हैं। इनका वाहन गिद्ध है और रथ लोहे का बना हुआ है। ये श्याम वर्ण के हैं। धनुष बाण और त्रिशूल इनके अस्त्र-शस्त्र हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार, शनि की शरीर-कांति इन्द्रनील मणि के समान है। वे गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके एक हाथ में धनुष, बाण, त्रिशूल है, तो दूसरा हाथ वर देने की मुद्रा धारण किए हुए है।
जब शापित हुए शनिदेव....... जब शापित हुए शनिदेव....... Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on नवंबर 17, 2019 Rating: 5

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