भवन चाहे आवासीय हो या व्यावसायिक भवन में भवन की छत पर पहुँचने के लिए या भवन में भूमिगत कक्षों का निर्माण हो तो आने-जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाना आवश्यक है। वास्तु शास्त्र में सीढ़ियाँ बनाने के लिए भी सिद्धांत बनाए गये हैं। वास्तु अनुसार सीढ़ियाँ सदैव भवन के दक्षिण व पश्चिम के दायीं ओर हो तो उत्तम है। उत्तरी-ईशान, पूर्वी-ईशान और ईशान कोण में सीढ़ी भूलकर भी नहीं बनायें। इससे विपरीत प्रभाव रोग, आर्थिक संकट, स्त्रियों का वर्चस्व कारोबारी नुकसान एवं बच्चों में मानसिक रोग तथा गृहस्वामी के लिए दुर्घटना व मृत्यु का कारण भी ईशान की सीढ़ियाँ बनती हैं। उत्तर एवं पूर्वी दीवार का स्पर्श करती हुई सीढ़ियाँ न बनावें, यदि बनाना आवश्यक ही है तो दीवार से कम से कम तीन इंच दूर हो। आग्नेय कोण के दक्षिण में सीढ़ी हो सकती है, परन्तु पूर्वी दीवार का स्पर्श न हो। वायव्य कोण में भी सीढ़ी बनायी जा सकती है, किन्तु उत्तरी दीवार का स्पर्श न हो। दक्षिण-नैर्ऋत्य व उत्तर पश्चिम का पश्चिम सीढ़ियों के लिए श्रेष्ठ स्थान है। सीढ़ियाँ घुमावदार बनायें। जिन का घुमाव चढ़ते में बांयी से दांयी ओर होनी चाहिए।
सीढ़ियों से संबंधित अन्य वास्तु सिद्धांत-
- सीढ़ियों के नीचे कोई महत्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए। जैसे रसोई, शौचालय, स्नानघर नहीं बनाना चाहिए। यदि आवश्यकतावश बनाना ही है तो इसकी छत सीढ़ियों के आधार से भिन्न होनी चाहिए, यानि छत और सीढ़ी के मध्य खाली स्थान रहें।
- सीढ़ी का पहला पायदान कभी गोलाई में नहीं हो। सीढ़ियों के टप्पों की संख्या हमेशा विषम ( odd number ) होनी चाहिए तथा विषम के साथ सीढ़ियों की संख्या में 3 का भाग देने पर 2 शेष बचे तो उत्तम रहती है। सीढ़ियों में अनावश्यक भार , फूलों के गमले वगैरह नहीं रखने चाहिए।
- घर के बीचों-बीच एवं दरवाजे के सामने सीढ़ी नहीं होनी चाहिए।
- सीढ़ी कभी भी टेड़ी - मेड़ी नहीं बनानी चाहिए।
- यदि किसी पुराने घर में सीढ़ियाँ उत्तर-पूर्वी भाग में बनी हो तो उसके वास्तुदोष को दूर करने के लिए सीढ़ी के द्वार पर आदमकद काँच लगावंे या छत पर नैर्ऋत्य में एक कमरा बनाना चाहिए।
- सीढ़ी में कभी भी लाल रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- सीढ़ी हमेशा ( clock wise direction ) में होनी चाहिए।
सीढ़ियों का वास्तुशास्त्र में महत्व
Reviewed by Krishna Prasad Sarma
on
अक्टूबर 01, 2018
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