कुष्माण्ड नवमी यानि अक्षय नवमी

नवमी कार्तिके शुक्ला कृतादिः परिकीर्तिता ।
वैशाखस्य तृतीया या शुक्ला त्रेतादिरुच्यते ॥
माघे पञ्चदशीनाम द्वापरादिः स्मृता बुधैः ।
त्रयोदशी नभस्ये च कृष्णा सा हि कलेः स्मृता ॥ स्कन्दपुराण ५.१२१-१२३ ॥

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इयं देवी वरारोहा यातु शैलं हिमाचलम् ।
तत्र यूयं सुराः सर्व्वे गत्वा नन्दत माचिरम् ॥
नवम्याञ्च सदा पूज्या इयं देवी समाधिना ।
वरदा सर्व्वलोकानां भविष्यति न संशयः ॥
नवम्यां यश्च पिष्टाशी भविष्यति हि मानवः ।
नारी वा तस्य सम्पन्नं भविष्यति मनोगतम् ॥”
इति वराहपुराणम्


“प्रपूजयेज्जगद्धात्रीं कार्त्तिके शुक्लपक्षके ।
दिनोदये च मध्याह्ने सायाह्ने नवमेऽहनि ॥”
इति मायातन्त्रे १७ पटलः ॥
“कुम्भराशिगते चन्द्रे नवम्यां कार्त्तिकस्य च ।
उषस्यर्द्धोदितो भानुर्द्दुर्गामाराध्य यत्नवान् ॥
पुत्त्रारोग्यधनं लेभे लोकसाक्षित्वमेव च ।
तां तिथिं प्राप्य मनुजः शनिभौमदिने यदि ।
प्रपूजयेन्महादुर्गां धर्म्मकामार्थमोक्षदाम् ॥”
इति कात्यायनीतन्त्रे ७८ पटलः ॥

अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ला नवमी को कहते हैं। अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड[1] का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।



धार्मिक मान्यताएँ
कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन जितेन्द्रिय होकर तुलसी सहित सोने के भगवान बनाये। पीछे भक्तिपूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिये एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से ही यहाँ तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिये, इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्नव्यापिनी नवमी लेनी चाहिये। धात्री और अश्वत्थ को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराये। उनका पुण्यफल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता।
श्रीकृष्ण की मुरली की त्रिलोक मोहिनी तान और राधा के नुपुरों की रूनझुन का संगीत सुनाती और प्रभु और उनकी आल्हादिनी शक्ति के स्वरूप मथुरा-वृन्दावन और गरूड़ गोविंद की परिक्रमा मन को शक्ति और शान्ति देती है।
धर्म और श्रम के सम्मिश्रण से पर्यावरण संरक्षण संदेश के साथ यह पर्व भक्तों के मंगल के लिए अनेक मार्ग खोलता है।
मथुरा-वृन्दावन परिक्रमा
अक्षय नवमी को ही भगवान श्री कृष्ण ने कंस-वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं। मथुरा-वृन्दावन एवं कार्तिक मास साक्षात राधा-दामोदर स्वरूप है। इसी मास में श्री कृष्ण ने पूतना-वध के बाद मैदान में क्रीड़ा करने के लिए नंद बाबा से गो-चारण की आज्ञा ली। गुजरात में द्वारिकानाथ, राजस्थान में श्रीनाथ, मध्य प्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, पांडवों के कारण पंजाब-दिल्ली के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु ब्रज-परिक्रमा करते हैं। नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।

युद्ध आह्वान दिवस
श्री कृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। मंगल की प्रतिनिधि तिथि नवमी को किया। क्रांति का शंखनाद ही अगले दिन दशमी को कंस के वध का आधार बना।

आंवला पूजन
अक्षय नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।

पुनर्जन्म से मुक्ति का साधन
नवमी के दिन युगल उपासना करने से भक्त शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है। प्रभु का दिया धर्म ही जीव को नियमों की सीख देता है। जो मनुष्य क़ानून के दंड से नहीं डरते उन्हें यह राह दिखाता है।

कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी कहा जाता है, पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था. माना जाता है कि अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया और अगले दिन कंस का वध किया.
अक्षय नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान श्रीविष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं. भगवान विष्णु ऐसा ब्रह्माजी को दिए अपने एक वचन को निभाने के लिए करते हैं.
भगवान ने ब्रह्माजी को ऐसा क्या वचन दिया था उसकी कथा अगले पोस्ट में बताएंगे. अभी अक्षय नवमी या आंवला नवमी की पूजा की सरलतम वैदिक विधि और कथा विस्तार से सुनिए.
संतानहीन स्त्रियां खासतौर से संतान की कामना के साथ अक्षय नवमी को आंवला पेड़ की पूजा, परिक्रमा और दान आदि करती हैं. अक्षय नवमी की कथा में एक निःसंतान दंपत्ती को इस पूजा के प्रभाव से संतान की प्राप्ति की बात कही गई है.
कैसे करें अक्षय नवमी की पूजाः
सबसे पहले देवी कूष्मांडा की आराधना की जाती है. उनका स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करेंः
दुर्गति नाशिन त्वहं दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयदां धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यम् अहं।।
इसके बाद कर्पूर जलाकर नीचे लिखे मंत्र से आंवला वृक्षकी पूजा करने के बाद परिक्रमा करें एवं अक्षय सुख-समृद्धि एवं आरोग्य की कामना करें. आंवले के चारों तरफ कच्चा सूत की रक्षा लपेटी जाती है. आंवला वृक्ष की 108 बार परिक्रमा का विधान है.
मंत्रः
यानि कानि च पापानि जन्मातरकृतानि च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।
परिक्रमा पूरी करने के बाद आंवला वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुख करके “ऊं धात्र्ये नमः” मंत्र से आंवले की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों को तर्पण करें. कर्पूर व घी के दीपक से आरती कर प्रदक्षिणा करें.
अक्षय नवमी को आंवला वृक्ष से अमृत की बूंदें टपकती हैं इसलिए उस दिन आवंले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से बहुत से रोगों में लाभ मिलता है. अक्षय नवमी पर किए गए दान का प्रभाव कार्तिक मास के अन्य दिनों पर किए गए दान से ज्यादा पुण्यदायी होता है.
मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और कुम्हड़े का दान करने से कुम्हड़े में जितने बीज होते हैं उतने ही साल तक दानकर्ता को स्वर्ग में वास करने का अधिकार मिलता है. यदि अक्षय नवमी को आपने एक आंवले का वृक्ष लगा दिया तो एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है.
यदि आप अक्षय नवमी को कुछ दान कर रहे हैं तो इस मंत्र के साथ दान का संकल्प अवश्य लें, अन्यथा आपका दान व्यर्थ चला जाएगा.
दान के संकल्प का मंत्रः
मम् अखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्य आदिनाम् उत्तरोत्तराभि वृद्धये कूष्माण्ड दानं करिष्ये।
इस संकल्प के साथ यथाशक्ति दान करना चाहिए. उसके बाद अक्षय नवमी की कथा सुननी चाहिए और फिर भोजन करना चाहिए.
।।अक्षय नवमी एवं आंवला नवमी की कथा।।
एक व्यापारी जो बहुत ही धर्मात्मा और दानी था वह अपनी पत्नी के साथ काशी में रहता था. उनकी कोई संतान नहीं थी. इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दुखी सी रहती थी और उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था.
एक दिन उसे किसी ने कहा कि अगर वो संतान चाहती हैं तो वह किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे. इससे उसको संतान प्राप्ति हो जाएगी. उसने यह बात अपने पति से कही लेकिन उसके धर्मात्मा पति ने इस बात के लिए उसे बहुत डांटा.
पर व्यापारी की पत्नी को संतान प्राप्ति की चाह ने इस तरह से मोह में डाल दिया था कि उसने अच्छे बुरे की समझ को ही त्याग दिया और एक दिन एक बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे दी, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कई रोग हो गये.
पत्नी की यह हालत देख व्यापारी बहुत दुखी था. उसने इसका कारण पूछा. तब उसकी पत्नी ने बताया कि उसने एक बच्चे की बलि दी थी संभवतः उसी के कारण ऐसा हुआ.
यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया और उसने उसे बहुत पीटा. पर बाद में उसे अपनी पत्नी की दशा पर दया आ गई और उसने उसे सलाह दी कि वो अपने इस पाप की मुक्ति के लिए गंगा में स्नान करे और सच्चे मन से प्रार्थना करे.
व्यापारी की पत्नी ने वही किया जो पति ने आदेश किया था. कई दिनों तक गंगा स्नान किया और तट पर पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की. इससे प्रसन्न होकर माता गंगा ने एक बूढी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए.
गंगा मैया ने कहा उसके शरीर के सारे विकार दूर करने हो सकते हैं यदि वह कार्तिक मास शुक्लपक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में आंवले का व्रत रखकर उसकी पूजा करेगी. इससे उसके सभी कष्ट दूर होंगे.
व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि विधान के साथ पूजा की और उसके शरीर के सभी कष्ट दूर हुए. उसे सुंदर शरीर प्राप्त हुआ. साथ ही उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई. तब से ही महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा से आंवला नवमी का व्रत रखती हैं.
कुष्माण्ड नवमी यानि अक्षय नवमी कुष्माण्ड नवमी यानि अक्षय नवमी Reviewed by Krishna Prasad Sarma on अक्टूबर 01, 2018 Rating: 5

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