अथर्ववेद में पीपल के पेड़ को देवताओं का निवास स्थान बताया गया है– अश्वत्थो देव सदन:. भारतीय लोकजीवन में पीपल के पेड़ को देवता समान पूज्य माना गया है. पीपल की छाया तप, साधना के लिए ऋषियों का प्रिय स्थल माना जाता था.
आपको पता नहीं होगा कि पीपल को पुत्र के सामना पालन करने और उसका उपनयन संस्कार यानी जनेऊ भी किया जाता है. उससे परिवार के किसी भी सदस्य की अकाल मृत्यु टाली जा सकती है. आज हम आपको बताएंगे कि क्यों पीपल का पेड़ हिंदू धर्म में इतना पूजनीय है.
शनि ग्रह के प्रकोप की शांति के लिए पीपल क्यों उपयोगी है. किस दिन पीपल की पूजा करने का अर्थ है घर में दरिद्रता को निमंत्रण. किस दिन पीपल को काटना चाहिए. तंत्र क्रियाओं में पीपल का कितना महत्व है. यह सब बातें जो आपके काम की हैं इस पोस्ट में हम बताएंगे.
पीपल का वृ़क्ष आधुनिक भारत में भी देवरूप में पूजा जाता है. स्कन्दपुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं.
भगवान कृष्ण कहते हैं- अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं. स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है. पीपल की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं.
वृहस्पति ग्रह अगर प्रतिकूल हो जाए और अशुभ फल देने लगे तो पीपल की लकड़ी से हवन करने पर शांति मिलती है. प्राय: यज्ञ में इसकी समिधा को बडा उपयोगी और महत्वपूर्ण माना गया है. प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज में अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है.
इसमें अर्थवण ऋषि पिप्पलाद मुनि को बताते हैं कि प्राचीन काल में दैत्यों के अत्याचारों से पीडित समस्त देवता जब विष्णु के पास गए और उनसे कष्ट मुक्ति का उपाय पूछा, तब प्रभु ने उत्तर दिया-मैं अश्वत्थ के रूप में भूतल पर प्रत्यक्षत: विद्यमान हूं.
विशेष कामनाओं के लिए कैसे करें पीपल वृक्ष की पूजाः
मंगल मुहूर्त में पीपल के वृक्ष को लगाकर आठ वर्षो तक पुत्र की भांति उसका लालन-पालन करना चाहिए.
इसके बाद उपनयन संस्कार करके नित्य सम्यक् पूजा करने से अक्षय लक्ष्मी मिलती हैं.
पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है.
शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसो तेल के दीपक को जलाकर छायादान से शनि पीडा से राहत मिलती है.
पीपल की सेवा प्रत्येक शनिवार करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं.
सांयकाल के समय पीपल के नीचे मिट्टी के दीपक को सरसों के तेल से प्रज्ज्वलित करने से दुःख व मानसिक कष्ट दूर होते है.
पीपल की परिक्रमा सुबह सूर्योदय से पूर्व करने से अस्थमा रोग में राहत मिलती है.
पीपल के नीचे बैठ कर ध्यान करने से ज्ञान की वृद्धि हो कर मन सात्विकता की ओर बढता है.
यदि ग्यारह पीपल के वृक्ष नदी के किनारे लगाए जाय तो समस्त पापों का नाश होता है.
ग्यारह नवनिर्मित मंदिरों में शुभ मुहूर्त में पीपल वृक्ष लगा कर चालीस दिनों तक इनकी सेवा या देखभाल (कहीं सूख ना जाये) करने पर व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती और जब तक वह जीवित रहता है तब तक उसके परिवार में भी अकाल मृत्यु नही होती.
क्यों शनिग्रह की शांति के लिए की जाती है पीपल पूजाः
एक बार अगस्त्य ऋषि तीर्थयात्रा के उद्देश्य से दक्षिण दिशा में अपने शिष्यों के साथ गोमती नदी के तट पर पहुंचे और सत्रयाग की दीक्षा लेकर एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे. उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था.
कैटभ नामक राक्षस अश्वत्थ और पीपल वृक्ष का रूप धारण करके ब्राह्मणों के यज्ञ को नष्ट कर देता था. जब कोई ब्राह्मण इन वृक्षों की समिधा के लिए टहनियां तोड़ने जाता तो यह राक्षस उसे खा जाता और ऋषियों का पता भी नहीं चलता.
धीरे-धीरे ऋषि कुमारों की संख्या कम होने लगी. तब दक्षिण तीर पर तपस्या रत मुनिगण सूर्य पुत्र शनि के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बतायी.
शनि ने विप्र का रूप धारण किया और पीपल के वृक्ष की प्रदक्षिणा करने लगे. अश्वत्थ राक्षस उन्हें भी साधारण विप्र समझकर निगल गया.
शनि अश्वत्थ राक्षस के पेट में घूमकर उसकी आंतों को फाड़कर बाहर निकल आए. शनि ने यही हाल पीपल नामक राक्षस का किया. दोनों राक्षस नष्ट हो गए. ऋषियों ने शनि का स्तवन कर उन्हें खूब आशीर्वाद दिया.
तब शनिदेव ने प्रसन्न होकर कहा- अब आप निर्भय हो जाएं. मेरा वरदान है कि जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के समीप आकर स्नान, ध्यान व हवन-पूजा करेगा और प्रदक्षिणा कर जल से सींचेगा, साथ में सरसों के तेल का दीपक जलाएगा तो वह ग्रह जन्य पीड़ा से मुक्त हो जाएगा.
शनि के उक्त वरदान के बाद भारत में पीपल की पूजा-अर्चना होने लगी. अमावस के शनिवार को उस पीपल पर जिसके नीचे हनुमान स्थापित हों, जाकर दर्शन व पूजा करने से शनि-जन्य दोषों से मुक्ति मिलती है.
पीपल वृक्ष की सेवा और उसमें जल देने, उसकी लकड़ी से हवन करने से बृहस्पति ग्रह भी प्रसन्न होते हैं.
पिप्पलेश्वर महादेवः शनिग्रह जन्य समस्त बाधाओं की मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय
पिप्पलाद मुनि का बचपन बड़ा कष्टप्रद बीता था. बहुत छोटी अवस्था में उन्हें अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा.
तब पीपल के पेड़ के नीचे ही उन्हें आश्रय मिला. पीपल की कृपा से वह जीवित रहे इसलिए उनका नाम पिप्पलाद भी हुआ.
बाद में पिप्पलाद को पता चला कि उनके बाल्यकाल के कष्टों का कारण शनि प्रकोप है. उन्हें बताया गया कि आपके जन्म के साथ ही शनि की साढ़े साती ने आपको प्रभाव में ले लिया इसलिए आपका बचपन ऐसा कष्टमय रहा.
पिप्पलाद को यह बात चुभ गई कि शनि में इतना अहंकार है कि वह नवजात शिशुओं तक को नहीं छोड़ते. इसका दंड तो शनि को भुगतना पड़ेगा.
पिप्पलाद घोर तपस्वी थे. वह शनिदेव से ऐसे चिढ़ गए थे कि तीनों लोकों में शनि को ढूंढना प्रारम्भ कर दिया. एक दिन अकस्मात पीपल वृक्ष पर शनि के दर्शन हो गए.
मुनि ने तुरन्त अपना ब्रह्मदण्ड उठाया और उसका प्रहार शनि पर कर दिया. शनि यह भीषण प्रहार सहन करने में असमर्थ थे. वह भागने लगे किंतु कही मार्ग ही न मिलता था. जहां जाते ब्रह्मदंड आता दिख जाता.
ब्रह्मदण्ड ने उनका तीनों लोकों में पीछा करना शुरू किया. ब्रह्माजी ने सुझाव दिया कि शिवजी ही इससे रक्षा कर सकते हैं. शनिदेव ने भागकर शिवजी की शरण ली.
उन्होंने शिवजी को पुकारना शुरू किया तो शिवजी प्रकट हुए.
शिवजी ने पिप्पलाद को समझाया- शनि ने सृष्टि के नियमों का पालन किया है. इसमें शनि का कोई दोष नहीं है. शिवजी के कहने पर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा कर दिया. शनि ने भी कहा कि वह चौदह वर्ष की आयु के जातकों को अपनी साढ़े साती से मुक्त रखेंगे.
तब पिप्पलाद ने कहा- जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनि देव की पूजा करेगा. उसके शनि जन्य कष्ट दूर हो जाएंगे.
धर्मदंड बिनादंड दिए जा नहीं सकता था. पिप्पलाद ने उसकी मारक क्षमता कम कर दी. ब्रह्मदंड ने शनि के पैर पर प्रहार किया और लौट गया.
पिप्पलेश्वर महादेव की अर्चना शनि जनित कष्टों से मुक्ति दिलाती है. पीपल की उपासना शनिजन्य कष्टों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है.
शनि पीड़ा से पीड़ित लोगों को सात शनिश्चरी अमावास्या को या सात शनिवार पीपल की उपासना कर उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए. इससे कष्ट से राहत मिलती है.
शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढ़ाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है. परंतु रविवार को पीपल पूजा से बचना चाहिए.
रविवार को पीपल का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए.
पुराणों में आया है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, फिर लक्ष्मीजी आईं. दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था.
एक बार मां लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा भगवान विष्णु के पास गईं और उनसे बोलीं- जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उसका ऐश्वर्य नष्ट नहीं होगा.
श्री विष्णु ने कहा- आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो. इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी. जब श्रीविष्णु भगवान ने मां लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने यह कहते हुए टालमटोल किया कि बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था.
उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थीं. श्रीहरि ने दरिद्रा से पूछा- कैसा वर पाना चाहती हो मुझे बताओ मैं वैसा ही वर खोजता हूं.
दरिद्रा बोली- ऐसा पति खोजें जो कभी पूजा-पाठ न करे, उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो.
श्रीविष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए.
अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो.
ऋषि उसके लिए उसका मनभावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला. दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी.
श्रीविष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मीजी बोली- जब तक बड़ी बहन की गृहस्थी नहीं बस जाती मैं विवाह कैसे करूं. लोक व्यवहार के विरूद्ध है यह बात.
मेरी बहन को ऐसा स्थान चाहिए जहां धर्मकार्य न होता हो. अब धरती पर ऐसा कोई स्थान तो नहीं है. इसलिए उसके पति अभी भटक ही रहे हैं. आप कोई मार्ग निकालें ताकि मेरी बहन को स्थान तो मिल सके.
इस पर श्रीहरि ने अपने निवास स्थान पीपल को ही दरिद्रा को दे दिया लेकिन शर्त रखी कि यह स्थान उसे सिर्फ रविवार को मिलेगा. रविवार को दरिद्रा व उसके पति का पीपल पर आधिपत्य होता है.
अत: हर रविवार देव वहां से चले जाते हैं. अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है.
पीपल विष्णु का स्थान है इसलिए पीपल के वृक्ष को काटने से लोग डरते हैं पर यदि पीपल वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है.
पीपल को रविवार के अलावा किसी और दिन नहीं काटना चाहिए.
पीपल से जुड़े तांत्रिक उपायः
हम आपको बता रहे हैं पीपल वृक्ष से जुड़े कुछ तंत्र उपाय, जिससे आपकी कई समस्याओं का निदान हो जाएगा.
धन प्राप्ति के लिए
पीपल के पेड़ के नीचे शिव प्रतिमा स्थापित करके उस पर प्रतिदिन जल चढ़ाएं और पूजन-अर्चन करें. कम से कम 5 या 11 माला पंचाक्षरी मंत्र का जप (ऊँ नम: शिवाय) करें. कुछ दिन नियमित साधना के बाद परिणाम आप स्वयं अनुभव करेंगे. प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को भी पूजना चाहिए.
हनुमानजी की कृपा पाने के लिए
हनुमानजी की कृपा पाने के लिए भी पीपल के वृक्ष की पूजा करना शुभ होता है. पीपल के वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर हनुमानजी का पूजन, स्तवन करने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं.
शनि दोष से बचने के लिए-
यदि रोज पीपल पर जल चढ़ाया जाए तो शनि दोष की शांति होती है. शनिवार की शाम पीपल के नीचे दीपक लगाएं और पश्चिममुखी होकर शनिदेव की पूजा करें तो और भी लाभकारी होता है.
बृहस्पति की कृपा के लिए-
पीपल की लकड़ी की समिधा से हवन करना चाहिए.
पीपल की पूजा करें शनिवार को पीपल के वृक्ष की पूजा विधि-विधान से करें। भागवत के अनुसार पीपल, भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप है। शनि दोषों से मुक्ति के लिए पीपल की पूजा ऐसे करें… नहाने के बाद साफ व सफेद कपड़े पहनें। पीपल की जड़ में केसर चंदन, चावल, फूल मिला पवित्र जल अर्पित करें। तिल के तेल का दीपक जलाएं। यहां लिखे मंत्र का जाप करें। मंत्र: आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्। देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।। विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नम:। मंत्र जाप के साथ पीपल की परिक्रमा करें। धूप, दीपक जलाकर आरती करें। पीपल को चढ़ाया हुआ थोड़ा-सा जल घर में लाकर भी छिड़कें। ऐसा करने से घर का वातावरण पवित्र होता है।
पीपल के पेड़ में देवताओं का निवास
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
अप्रैल 24, 2019
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