ऐसे ही अधिकांश लोगों के मन में यह बात स्थाई रुप से बैठी हुई है कि उत्तर-पूर्वी कोंण में स्थित शौचालय वास्तुशास्त्र का सबसे निकिृष्ट दोष है। ज्योतिष को न मानने वाला व्यक्ति भी जैसे मंगलदोष के भूत से भयभीत है, ठीक ऐसे ही भवन के शौचालय के वास्तुदोष को लेकर भवन का स्वामी सदैव चिन्तित रहता है। मन में बस एक ही बात उसने स्थाई रुप से बसा ली है कि जो कुछ भी अनर्थ हो रहा है, वह तथाकथित इस वास्तुदोष के कारण ही है।
सर्वप्रथम मन से भय और अंधविश्वास का भूत तो एक दम निकाल दीजिए। दस, बीस या सौ नहीं बल्कि हजारों ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं जहां मंगलदोष के होते हुए विवाह संम्पन्न हुए और वह दम्पत्ति सुखद दामपत्य जीवन जी रहे हैं तथा ईशान कोणों में जहां शौचालय स्थित हैं, उन भवनों के लोग उत्तरोत्तर वहां खूब फल-फूल रहे हैं और अपने जीवन में पूर्णतः सफल हैं। बौद्धिकता से देखें तो वास्तविकता यह है कि शुभ-अशुभ की संभवनाएं मात्र एक मंगलदोष, वास्तुदोष अथवा आप तथाकथित ऐसे अन्य एक दोष विशेष पर ही निर्भर नहीं करती। इसके लिए व्यक्ति विशेष, उसके अन्य सदस्य, परिजन, यहॉ तक कि घर का कोई पालतू जानवर जैसे कुत्ता आदि-आदि अन्य अनेक कारक उत्तरदायी हो सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा सबका भाग्य, क्रियमाण कर्म और पुरुषार्थ जब सब मिलकर एक लयबद्धता में आ जाते हैं तो भाग्य का सितारा चमकने लगता है। इसके विपरीत कहीं थोड़ा सा भी इनमें असंतुलन बना नहीं कि समझ लीजिए कि जीवन में अराजकता प्रारंभ हो गई। इसलिए मात्र एक किसी दोष विशेष को लेकर शुभ-अशुभ की गणना कर देना बौद्धिकता नहीं है।
किसी योग्य वास्तुविद, ज्योतिष तथा अन्य गुह्य विधाओं के मर्मज्ञ से सर्वप्रथम समस्याओं के मूल कारणों की गणना करवा लें। उसके बाद ही उस समस्या विशेष के निदान की ओर बढ़ें। क्योंकि बहुत अधिक सम्भावना हो सकती है कि जो दोष है ही नहीं, उसका व्यर्थ में आप निदान करवा रहे हैं। एक बात सदैव ध्यान रखें कि ऐसे में व्यक्ति पर लाभ के स्थान पर ठीक गलत दवा की तरह ही विपरीत प्रतिक्रिया अधिक होगी। यह बात अलग है कि अल्प समय में उसकी विपरीत प्रतिक्रिया अनुभव में न आए। यदि वास्तव में समस्या है तब ही उसका निदान अपने बुद्धि-विवेक से तलाशें और उसे व्यवहार में लाएं।
अध्यात्म तथा गुह्य विद्याओं आदि में इस विपरीत बन गयी लयबद्धता को पुनः संतुलन में लाने के अनेक उपाय हैं। अपनी सुविधा, समय और सामर्थ्यानुसार जो उपाय भी आप प्रयोग में लाएं उससे पहले यह बात भी ध्यान में रखें कि जैसे भाग्य को प्रभावित करने के अनेकानेक घटक हो सकते हैं वैसे ही उपायक्रम में भी अनेकानेक विधियॉ सम्भव हो सकती हैं। बौद्धिकता इसी में है कि जो कुछ अच्छा, अनुकूल और सुलभ हो उसे आस्था से अपनाते चलें। क्योंकि यह गणना करना कठिन है कि किस विधि, उपाय से व्यक्ति को कहां लाभ मिलने लगे।
वास्तुशास्त्र जनित दोष और नियमानुसार उनके निदान गणना करने के पीछे पूर्णतः वैज्ञानिक दृष्टिकोंण छिपा है। इसमें सूर्य की रश्मियों, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र तथा भौगोलिक स्थिति का पूरा-पूरा ध्यान किसी निर्माण से पूर्व रखा जाता है। निर्माण चाहे झोपड़ी का हो या फिर किसी अट्टालिका का, उदद्ेश्य यही होता है कि विभिन्न दुष्प्रभाव पैदा करने वाली रेडियोधर्मिता को कैसे दूर किया जाए जिससे कि उनके स्वामियों पर आर्थिक, दैहिक और आघ्यात्मिक तीनों प्रकार के अधिकाधिक सुप्रभाव उत्पन्न हों। यदि निर्माण कार्य होना है तब यही परामर्श दिया जाएगा कि वह वास्तु नियमों के अनुरुप ही हो। परन्तु यदि निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया है और वह वास्तुजनित दोष दे रहा है, तो उन दोषों के निराकरण हेतु यथासामर्थ्य उपक्रम अवश्य करें। अपने बुद्धि-विवेक से अच्छी तरह सुनिश्चित कर लें कि भवन में आपकी समस्याओं का कारण वास्तव में कहीं उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित शौचालय तो उत्पन्न नहीं कर रहा? तथाकथित इस दोष का संक्षिप्त विवरण तदनुसार उसका निदान यहॉ प्रस्तुत कर रहा हॅू। संभव है आपकी समस्या का निदान इस संक्षिप्त लेख में मिल जाए।
1. शौचालय तथा स्नान घर एक साथ अथवा अलग बनवाने का चलन सुविधानुसार प्रत्येक घर में किया जाता है। दोनों ही दशाओं में भवन के दक्षिण दिशा में इसका चुनाव उचित रहता है।
2. शौचालय के लिए भवन में उपयुक्त स्थान चित्र के अनुसार रख सकते हैं।
3. किसी कमरे के वायव्य अथवा नैऋर्त्य में शौचालय बनाया जा सकता है। वायव्य दिशा का शौचालय उत्तर की दीवार छूता हुआ नहीं होना चाहिए। यह पश्चिमी दिशा की दीवार से लगा हुआ होना चाहिए।
4. आग्नेय में पूर्व दिशा की दीवार स्पर्श किए बिना भी शौचालय बनवाया जा सकता है।
5. शौचालय में पॉट, कम्मोड इस प्रकार होना चाहिए कि बैठे हुए व्यक्ति का मॅुह उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में रहे। मल-मूत्र विसर्जन के समय व्यक्ति का मॅुह पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर कदापि नहीं होना चाहिए।
6. एक आदर्श शौचालय की स्थिति साथ दिए गए चित्र के अनुसार होनी चाहिए।
7. पानी के लिए नल, शॅावर आदि उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।
8. वाशबेसिन तथा बाथ टब भी ईशान कोंण में होना चाहिए।
9. गीजर अथव हीटर क्वाईल आग्नेय कोंण में रखना चाहिए।
10.शौचालय के द्वार के ठीक सामने रसोई घर नहीं होना चाहिए।
11.यदि केवल स्नानागार बनाना है तो वह शयनकक्ष के पूर्व, उत्तर अथवा ईशान कोंण में
हो सकता है।
12.दो शयनकक्षों के मध्य यदि एक स्नानागार आता हो तो एक के दक्षिण तथा दूसरे के
उत्तर दिशा में रहना उचित है।
13. स्नानागार में यदि दर्पण लगाना है तो वह उत्तर अथवा पूर्व की दीवार में होना चाहिए।
14. पानी का निकास पूर्व की ओर रखना शुभ है। शौचालय के पानी का निकास रसोई, भवन
के ब्रह्मस्थल तथा पूजा घर के नीचे से नहीं रखना चाहिए।
15. स्नानागार में यदि प्रसाधन कक्ष अलग से बनाना हो तो वह इसके पश्चिम अथवा दक्षिण
दिशा में होना चाहिए।
16. स्नानागार में कपड़ों का ढेर वायव्य दिशा में होना चाहिए।
17. स्नानागार में खिड़की तथा रौशनदान पूरब तथा उत्तर दिशा में रखना उचित है। एग्जॉस्ट
फैन भी इसी दिशा में रख सकते हैं। वैसे यह वायव्य दिशा में होना चाहिए।
18. स्नानागार में फर्श का ढलान उत्तर, पूर्व अथवा ईशान दिशा में रखना शुभ है।
19. अलग से स्नानागार बनाना है तो यह पश्चिम अथवा दक्षिण की वाह्य दीवार से सटा कर
नैऋर्त्य दिशा में बनाना उचित है।
20. पश्चिम की दिशा में पश्चिमी वाह्य दीवार से सटा कर अलग से भी स्नानागार बनाया जा
सकता है।
21. बाहर बनाया गया स्नानागार उत्तर की दीवार से सट कर नहीं होना चाहिए।
22.शौचालय भवन की किसी भी सीढ़ी के नीचे स्थित नहीं होना चाहिए।
उत्तर तथा पूर्वी क्षेत्र में बना शौचालय उन्नति में भी बाधा पहुचाता है, मानसिक तनाव देता है तथा वास्तु नियमों के विपरीत होने के कारण स्वास्थ संबंधी समस्याएं पैदा करता है। यदि आपके भवन का निर्माण हो चुका है और आप वास्तु जनित दोषों से पीढ़ित हैं तो निम्न समाधान करके देखिए, आपको आशातीत लाभ मिलेगा।
1. शौचालय की उत्तर-पूर्वी दीवार में एक दर्पण लगा लें।
2. शौचालय के उत्तर-पूर्वी कोंण पर भूमि में एक छोटा सा छेद (ड्रिल) करें, जिससे उत्तर-पूर्वी कोंण अलग हो जाए।
3. दक्षिण-पश्चिमी कोंण पर एक कार्बन आर्क इस प्रकार से लगा लें जिससे कि उसका प्रकाश शौचालय के उत्तर-पूर्वी कोंण पर पड़े।
4. शौचालय के ईशान कोंण में एक छोटा सा गढडा बना लें और उसमें एक कृत्रिम फब्बारा लगा लें जिसमें से निरंतर पानी बहता रहे।
5. ईशान कोंण में संभव हो तो एक्वेरियम का प्रयोग करें।
6. सबसे सरल है आप ईशान में पानी से भर कर कोई बर्तन रखा करें। कांच के एक बड़े बर्तन में डली वाला नमक भर कर शौचालय में रख दिया करें और किसी रविवार को वहॉ इसे फ्लश करके पुनः नए नमक से बर्तन को भर दिया करें।
7. शौचालय के द्वार पर नीचे लोहे, तांबे तथा चांदी के तीन तार एक साथ दबा दें।
शौचालय - स्नानघर का वास्तु
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
अप्रैल 24, 2019
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