हमारी पलकें क्यों झपकती हैं

पलकें झपकने को लेकर देवी भागवत पुराण एवं अन्य पुराणों में एक कथा है. इस कथा का संबंध माता सीता के पूर्वजों से हैं. आज वह कथा सुनिए.
राजा इच्छवाकु के वंश में खटवांग हुए. खटवांग के पुत्र दीर्घबाहु, दीर्घबाहु के पुत्र रघु हुए. रघु के पुत्र अज और अज के पुत्र दशरथ हुए. दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम के रूप में स्वयं नारायण ने अवतार लिया.
आपको माता सीता के पिता राजा जनक के कुल की चर्चा की ओर लिए चलता हूं. उनके बारे में अपेक्षाकृत कम पता है लोगों को इसलिए जनक के कुल की कथा सुनते हैं.
राजा निमि के राज्य में अकाल और अनावृष्टि हुई तो प्रजा संकट में आ गई. निमि बड़े धर्मात्मा थे. उन्होंने इस आपदा का कारण जानने के लिए अपने गुरुजनों से परामर्श किया.
सबकी यही राय हुई कि राजा को राजसूय यज्ञ कराकर माता जगदंबा के साथ-साथ सभी देवों को प्रसन्न करना चाहिए. माता जगदंबा की कृपा तो उनपर है ही इसलिए यदि राजसूय यज्ञ में निष्ठ होकर वह जगदंबा का आह्वान करें तो संकटों से प्रजा की रक्षा हो जाएगी.
निमि ने यज्ञ का निश्चय किया और पिता की आज्ञा से यज्ञ की तैयारी भी आरंभ कर दी.
उस समय भृगु, अंगिरा, वामदेव, गौतम, वशिष्ठ, पुलस्त्य, ऋचिक, पुलह और क्रतु जैसे श्रेष्ठ महर्षियों को आमंत्रित किया गया.
वशिष्ठ इनके कुल गुरू थे. सारी तैयारी पूरी करने के बाद निमि महर्षि वशिष्ठ के पास गए और उनसे मुख्य पुरोहित बनकर इस यज्ञ का कार्यभार ग्रहण करने का आग्रह किया.
निमि ने कहा- गुरूवर प्रजा बहुत कष्ट में है. इस कष्ट का अंत राजसी यज्ञ से ही होगा. आप कुलगुरू हैं. अतः विद्वान महर्षियों के साथ यज्ञ संपन्न कराएं ताकि प्रजा का कल्याण हो.
मैंने यज्ञ सामग्री तैयार कर ली है. अब पांच वर्ष के लिए दीक्षित होकर विधिपूर्वक यज्ञ करके माता जगदंबा की कृपा प्राप्त करना चाहता हूं.
वशिष्ठ निमि के विचारों से प्रसन्न थे. वशिष्ठ ने कहा-आपके विचार कल्याणकारी हैं किंतु इसमें एक बाधा है. आपसे पहले इंद्र ने मुझे अपने यज्ञ का पुरोहित बना लिया है. आप यज्ञ सामग्रियों को सुरक्षित रखें. मैं इंद्र का यज्ञ पूर्ण करते ही आपका यज्ञ आरंभ करुंगा.
निमि ने कहा- गुरुवर मैंने अन्य महर्षियों को भी निमंत्रित किया है. फिर यज्ञ सामग्री को इतने समय तक सुरक्षित रखना कैसे संभव होगा? आप कुलगुरू हैं इसलिए आप मेरे यज्ञ के लिए चलने की कृपा करें. इंद्र दूसरा आचार्य चुन सकते हैं.
वशिष्ठ ने बात टाल दी और यह कहते हुए चले गए कि इंद्र का यज्ञ पूरा कराकर वह शीघ्र आएंगे और यज्ञ आरंभ करेंगे. इंद्र का यज्ञ लंबा खिंचने लगा. कई वर्ष बीत गए. निमि और प्रतीक्षा करने की स्थिति में नहीं थे. सो उन्होंने गौतम को आचार्य बनाया और यज्ञ आरंभ किया.
इंद्र का यज्ञ अनेक वर्षों के बाद संपन्न हुआ. वशिष्ठ को ध्यान आया कि उन्हें निमि का यज्ञ भी कराना है. वह तत्काल चले. वहां पहुंचे तो पता चला कि गौतम को आचार्य बनाकर यज्ञ शुरू हुआ. वशिष्ठ क्रोधित हो गए.
उन्होंने शाप दिया- तुमने मुझे आचार्य बनने का न्योता देकर किसी अन्य से यज्ञ कराया. अपने गुरू का अपमान किया है तुमने. तुम्हारे लिए यह शरीर व्यर्थ है. तुम विदेह यानी बिना देह के हो जाओ.
जिस समय निमि को शाप मिला वह यज्ञ में दीक्षित थे. उनके ऋत्विज ब्राह्मणों ने आपस में परामर्श करके निमि के शरीर को मंत्रशक्ति के बल से सुरक्षित कर दिया. उनके शरीर से प्राण को निकलने नहीं दिया.
परमज्ञानी वशिष्ठ द्वारा शापित होने से निमि भी क्रोधित हुए. क्रोध में वह यहां तक सोच बैठे कि इंद्र की ओर से मिलने वाली दक्षिणा के लोभ में कुलगुरू होने के बाद भी मेरा यज्ञ ठुकराया और अब स्वयं मुझे विदेह करना चाहते हैं.
निमि ने कहा- मूर्खता से भरा आपका शरीर कल्याणकारी नहीं है. आप इस शरीर के अधिकारी नहीं हैं. इसलिए आपका भी शरीर क्षय हो जाएगा. निमि यज्ञ में दीक्षित तो थे ही साथ-साथ ही साथ पृथ्वी पर इंद्र के समान श्रेष्ठ थे. शाप खाली नहीं जा सकता था.
शापित होकर वशिष्ठ अपने पिता ब्रह्मदेव के पहुंचे. क्षय से पीड़ित शरीर का कष्ट सुनाकर शाप निवारण की युक्ति पूछी. ब्रह्माजी ने कहा कि वशिष्ठ को इस शरीर का त्याग करना होगा.
उन्हें मित्रावरूण और उर्वशी के संयोग से फिर से देह धारण करना पड़ेगा यानी जन्म लेना पड़ेगा. यह कथा बड़ी रोचक है और इसकी चर्चा आगे अवश्य करेंगे. वशिष्ठ का जन्म उर्वशी और मित्रावरूण से हुआ.
इघर निमि के यज्ञ समाप्त होने पर सभी देवता अपनी आहुति ग्रहण करने पधारे. निमि ने अशरीर होते हुए भी सबकी उत्तम स्तुति की. देवताओं ने प्रसन्न होकर निमि से कहा कि इस यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें मानव या देवता का स्वरूप मिल सकता है. देवताओं ने उनसे इच्छा पूछी.
निमि की ओर से उनके ऋत्विज ऋषियों और प्रजा ने देवताओं से प्रार्थना की कि ऐसा प्रजापालक और उत्तम राजा बहुत सौभाग्य से प्राप्त होता है. इसलिए देवतागण राजा निमि का मानव शरीर वापस कर दें.
निमि ने कहा- हे देवताओं! इस शरीर के खो देने के डर में भरकर मैंने क्रोधवश देवतुल्य अपने गुरू को शाप दिया. अतः मुझे अब शरीरमोह से विरक्ति हो गई है. मैं देव या मानव शरीर की इच्छा नहीं रखता.
यदि आप मुझपर प्रसन्न होकर कोई वरदान देने को इच्छुक हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं अपनी प्रजा के नेत्रों में रहकर अशरीर होते हुए भी उसके सुख-दुख में सदैव भागी और प्रत्यक्ष रहूं.
देवताओं ने निमि से कहा- माता जगदंबिका से यह वरदान मांगे. वह स्वयं आपको वरदान देने की इच्छुक हैं. देवों ने निमि को जगदंबा की स्तुति का गुप्त स्तोत्र प्रदान किया. निमि ने जगदंबा की स्तुति की.
माता जगदंबा ने निमि को दर्शन दिए. निमि ने मांगा- मुझे ऐसा ज्ञान दें जिससे मैं अशरीर होते हुए सभी मोह-माया से मुक्त रहूं और प्रजा के नेत्रों में ठहर सकूं.
भगवती ने कहा- अभी तुम्हारा प्रारब्ध भोग पूर्ण नहीं हुआ है. तुम्हें मैं सभी चर और अचर प्राणियों के नेत्र में वास करने का अधिकार देती हूं. तुम पृथ्वी लोक पर आने वाले सभी जीवों में आंखों की पलक बनोगे.
तुम्हारे कारण ही प्राणियों को आंखों की पलक गिराने की शक्ति मिलेगी. देवतागण इससे मुक्त रहेंगे. इसलिए वे अनिमिष कहलाएंगे. देवी ने मुनियों को कहा कि निमि के शरीर के मंथन से एक दिव्य पुत्र पैदा होगा जो विदेह कुल का मान बढ़ाएगा.
निमि के बाद उनके भाई देवरात ने शासन संभाला. देवरात का प्रताप ऐसा था कि जिस पिनाक धनुष को महादेव ने सतीदाह के बाद देवताओं के वध के लिए उठा लिया था, क्रोध शांत पर होने पर वह धनुष महादेव ने देवताओं को भेंट कर दिया.
देवताओं को उस धनुष के सर्वोत्तम पात्र राजा देवरात लगे. इंद्र ने भगवान शिव का वह धनुष पिनाक उनके पास सुरक्षित रखने के लिए दिया था. इसी कुल में राजा जनक हुए, जिनकी पुत्री वैदेही से श्रीराम का विवाह हुआ. भगवान ने वही धनुष तोड़कर स्वयंवर जीता था.
हमारी पलकें क्यों झपकती हैं हमारी पलकें क्यों झपकती हैं Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on अप्रैल 24, 2019 Rating: 5

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