गजकेशरी योग


चंद्रमा से केंद्र में अर्थात पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित हो, तो गजकेशरी योग होता है। बहुत सी टीकाओं में बृहस्पति की लग्न से केंद्र स्थिति योगकारक मानी है लेकिन मूल योग चंद्रमा से ही समझना चाहिए।
यह एक प्रकार का राज योग है। जातक नेता, व्यापारी, विधानसभा का सदस्य, संसद, संस्था का मुखिया या राजपत्रित अधिकारी होता है। प्राय: इस योग वाले जातक जीवन में पर्याप्त उन्नति करते हैं और मरने के बाद भी उनकी यशोगाथा रहती है। चंद्रमा से केंद्र में अर्थात पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित हो, तो गजकेशरी योग होता है। बहुत सी टीकाओं में बृहस्पति की लग्न से केंद्र स्थिति योगकारक मानी है लेकिन मूल योग चंद्रमा से ही समझना चाहिए। इसी योग में यदि शुक्र या बुध नीच राशि में स्थित न होकर या अस्त न होकर चंद्रमा को संपूर्ण दृष्टि से देखते हों तो प्रबल गज केशरी योग होता है। जब भी बृहस्पति की महादशा आएगी इसका उत्तम फल प्राप्त होगा। चंद्रमा की महादशा में भी अच्छे फल प्राप्त होंगे। राज केशरी योग वाले जातकों को बृहस्पति और चंद्रमा इन दो महादशाओं में से जो पहले आएगी उसमें अच्छा फल प्राप्त करते हुए देखा गया है। डॉ। राजेंद्र प्रसाद का मंगल की महादशा में जन्म हुआ था। चंद्रमा की महादशा उनके जीवन में संभव नहीं थी। बृहस्पति की महादशा में उनको मान-सम्मान व प्रसिद्धि प्राप्त हुई। ऎसे जातक जिनका जन्म केतु, शुक्र और सूर्य की महादशा में हुआ हो उनके जीवन में चंद्रमा व बृहस्पति दोनों की महादशा भोगने का सुख प्राप्त होता है।

ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है। शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह योग गुरू व चन्द्र की केन्द्र में युति होने से अथवा केन्द्र स्थान में स्थित गुरू व चन्द्र के मध्य दृष्टि सम्बन्ध होने पर बनाता है। केन्द्र के अलावे ये दोनों ग्रह त्रिकोण में नवम एवं पंचम होकर भी शुभ फल देते हैं। कुण्डली में इस योग के होने पर जहां कुछ लोग उन्नति करते हैं तो कुछ लोगों की कुण्डली में यह योग प्रभावहीन हो जाते है। इस संदर्भ में ज्योतिषशास्त्र कुछ नियमों की व्याख्या करता है कि कैसे यह योग शुभ फल देता और किन स्थितियों में यह प्रभावहीन होता है।

शुभ गजकेशरी योग
जिस व्यक्ति की कुण्डली में शुभ गजकेशरी योग होता है वह बुद्धिमान होने के साथ ही विद्वान भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली होता है जिससे समाज में इन्हें श्रेष्ठ स्थान मिलता है। आर्थिक मामलों में यह बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जिससे इनका जीवन वैभव से भरा होता है। लेकिन यह तभी संभव होता है जब यह योग अशुभ प्रभाव से मुक्त होता है। गजकेशरी योग की शुभता के लिए यह आवश्यक है कि गुरू व चन्द्र दोनों ही नीच के नहीं हों। ये दोनों ग्रह शनि व राहु जैसे पापग्रहों से किसी प्रकार प्रभावित नहीं हों।

लग्न के अनुसार गजकेशरी योग
मेष लग्न
इस लग्न में गुरू व चन्द्र की युति शुभ फलदायी होती है। इस लग्न में इन दोनों ग्रहों की सबसे शुभ स्थिति चतुर्थ भाव में होती है। द्वितीय एवं पंचम में भी गुरू चन्द्र की युति शुभकारी मानी जाती है।
वृष लग्न
इस लग्न में चन्द्र उच्च का एवं आठवें घर का भी स्वामी होता है इसलिए इस लग्न में इन दोनों ग्रहों का योग बनने से गजकेशरी योग का शुभ फल मिलता है। इस लग्न में इस योग का शुभत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि, इससे विपरीत राजयोग भी निर्मित होता है।
मिथुन लग्न
इस लग्न में गुरू अगर धनु राशि में होता है तो गजकेशरी योग फलित होता है क्योंकि त्रिकोण राशि में होने से गुरू का केन्द्राधिपति व सप्तमाधिपति दोष प्रभावहीन हो जाता है।
कर्क लग्न
इस लग्न में गुरू षष्ठेश एवं भाग्येश होता है। अगर लग्न का स्वामी चन्द्रमा लग्न में बैठा हो और गुरू मेष में स्थित हो या फिर गुरू कर्क में हो और चन्द्र मेष में तब भी उत्तम गजकेशरी योग बनता है जो व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी होता है।
सिंह लग्न
सिंह लग्न की कुण्डली में गजकेशरी योग तब शुभफलदायी होता है । जब गुरू मीन राशि में बैठा हो और चन्द्रमा धनु राशि में बैठा हो। अन्य स्थितियों में इस योग के फलों में कमी आती है।
कन्या लग्न
इस लग्न में गुरू अगर अपनी राशि में बैठा होता है तो केन्द्राधिपति दोष से मुक्त हो जाता है। इस स्थिति में गुरू अगर मीन राशि में हो तथा चन्द्रमा धनु या मीन में बैठा हो तो इसे शुभ फलदायी गजकेशरी योग माना जाता है तो व्यक्ति को गुणवान व वैभवशाली बनाता है।
तुला लग्न
इस लग्न की कुण्डली में गजकेशरी योग का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है फिर भी यदि कर्क राशि में गुरू हो और मकर राशि में चन्द्रमा तो कुछ हद तक शुभ फल की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, इसमें एक अच्छी बात यह होती है कि  गुरू चन्द्र की इस स्थिति से हंस योग बनता है जिनका इन्हें अत्यंत शुभ फल मिलता है।
वृश्चिक लग्न
इस लग्न की कुण्डली में गुरू द्वितीय व पांचवें घर का स्वामी होता है जबकि चन्द्रमा भाग्य स्थान का स्वामी होता है। गुरू इस कुण्डली में अगर लग्न में हो और चन्द्रमा सातवें घर में वृष राशि में तो दोनों के बीच दृष्टि सम्बन्ध बनता है जिससे यह योग बहुत ही शुभकारी होता है।
धनु लग्न
इस लग्न में चन्द्र अष्टमेश होने के कारण गजकेशरी योग का पूर्ण फल नहीं मिलता है । लेकिन गुरू अगर वृश्चिक राशि में हो और चन्द्रमा वृष राशि में तो इस योग का शुभ फल मिल सकता है।
मकर लग्न
मकर लग्न की कुण्डली में गजकेशरी योग सामान्य फलदायी होता है क्योंकि इस लग्न में गुरू तीसरे व बारहवें घर का स्वामी होता है जबकि चन्द्रमा सातवें घर का।
कुम्भ लग्न
कुम्भ लग्न की कुण्डली में भी गजकेशरी योग सामान्य फलदायी होता क्योंकि इस राशि में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी होता है। ज्योतिषशास्त्र में इस घर को शुभ स्थान नहीं माना जाता है।
मीन
गुरू की इस राशि में गजकेशरी योग बने तो बहुत ही शुभकारी होता है। इसका कारण यह है कि इस लग्न में गुरू लग्नेश व दशमेश होता है जबकि चन्द्रमा पांचवें घर का स्वामी होता है।
सभी लग्नों में मिथुन, कन्या, वृश्चिक एवं मीन लग्न में बनने वाला गजकेशरी योग सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अन्य लग्नों में इसका प्रभाव इनकी अपेक्षा कम होता है।
गजकेशरी योग गजकेशरी योग Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

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