मंगल की
स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति एवं प्रगति होती है तो दूसरी
ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है.कुण्डली में जब प्रथम,
चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष
(manglik dosha)लगता है.इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है.यह दोष
जिनकी कुण्डली में हो उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी
मान्यता है. सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है |इन भावों में
स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि
पहुँचाता है ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम (astrological principles)बताए गये
हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है
मांगलिक होने का अर्थ क्या है ?
कोई जातक
चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके मांगलिक होने का अर्थ है कि उसकी
कुण्डली में मंगल अपनी प्रभावी स्थिति में है। शादी के लिए मंगल को जिन
स्थानों पर देखा जाता है वे 1,4,7,8 और 12 भाव हैं। इनमें से केवल आठवां
और बारहवां भाव सामान्य तौर पर खराब माना जाता है। सामान्य तौर का अर्थ
है कि विशेष परिस्थितियों में इन स्थानों पर बैठा मंगल भी अच्छे परिणाम
दे सकता है। तो लग्न का मंगल व्यक्ति की पर्सनेलिटी को बहुत अधिक
तीक्ष्ण बना देता है, चौथे का मंगल जातक को कड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि
देता है। सातवें स्थान का मंगल जातक को साथी या सहयोगी के प्रति कठोर
बनाता है। आठवें और बारहवें स्थान का मंगल आयु और शारीरिक क्षमताओं को
प्रभावित करता है। इन स्थानों पर बैठा मंगल यदि अच्छे प्रभाव में है तो
जातक के व्यवहार में मंगल के अच्छे गुण आएंगे और खराब प्रभाव होने पर
खराब गुण आएंगे।
मांगलिक व्यक्ति देखने में ललासी वाले मुख का, कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम में जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ में लेने वाला और लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्य में नहीं रह पाता।
मांगलिक व्यक्ति देखने में ललासी वाले मुख का, कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम में जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ में लेने वाला और लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्य में नहीं रह पाता।
मंगलिक दोष (manglik dosha):
- कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष (manglik dosha)लगता है
- कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष लगता है
मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियों में दोष कारक नहीं होगा :
- चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि में हो और उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि नहीं हो
- मंगल राहु की युति होने से मंगल दोष का निवारण हो जाता है
- लग्न स्थान में बुध व शुक्र की युति होने से इस दोष का परिहार हो जाता है.
- कर्क और सिंह लग्न में लगनस्थ मंगल अगर केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी हो तो यह राजयोग बनाता है जिससे मंगल का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है.
- वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है.
- जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा
- यदि 1,4,7,8,12 भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो
मंगल दोष के लिए व्रत और अनुष्ठान (Fasts and Rituals to lessen the effect of Manglik Dosha)
अगर
कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और
अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए. मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत
सौभाग्य प्रदान करने वाला है. अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस
दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना
लाभदायी होता है.
जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है.
प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है.
मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है.
कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है.
महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है.
लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है.
जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है.
प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है.
मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है.
कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है.
महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है.
लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है.
मांगलिक दोष और उपचार
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जून 30, 2019
Rating:

कोई टिप्पणी नहीं: