विवाह समाज द्वारा स्थापित एक प्राचीनतम परम्परा है जिसका उद्देश्य काम -संबंधों को मर्यादित करके सृष्टि की रचना में सहयोग देना है |सभी पुराणों,शास्त्रों एवम धर्म ग्रंथों में पितरों के ऋण से मुक्त होने के लिए तथा वंश परम्परा की वृद्धि के लिए विवाह की अनिवार्यता पर बल दिया गया है |
विवाह योग्य होते ही तरुण-तरुणियों के मन में 'मेरा विवाह कब होगा?' क्या यह विवाह सफल होगा। जैसे प्रश्न उठने लगते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में मौजूद ग्रह वैवाहिक जीवन को सुखद और कलहपूर्ण बनाते हैं.लेकिन यह तथ्य भी प्रमाणिक है कि अगर वैवाहिक लग्न(marriage ascendant) का विचार सही से किया जाए तो विवाहोपरान्त दामपत्य जीवन में आने वाली परेशानियां काफी हद तक कम हो सकती है और वैवाहिक जीवन सुखद हो सकता है.
विवाह संस्कार को व्यक्ति का दूसरा जीवन माना जाता है.इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न (benefic ascendant) उसी प्रकार महत्व रखता है, जैसा जन्म कुण्डली (birth chart) में लग्न स्थान(ascendant) में शुभ ग्रहों की स्थिति का होता है.विवाह के लिए लग्न निकालाते समय वर वधु की कुण्डलियों का परीक्षण (examination of birth charts)करके विवाह लग्न तय करना चाहिए.अगर कुण्डली नही है तो वर और कन्या के नाम राशि(name according to birth sign) के अनुसार लग्न का विचार करना चाहिए.ज्योतिषशास्त्र के विधान के अनुसार जन्म लग्न (birth ascendant) और राशि (birth sign) से अष्टम लग्न (8th ascendant)अशुभ फलदायी होता है अत: इस लग्न में विवाह का विचार नहीं करना चाहिए.
विवाह योग :
विवाह योग्य देखने के लिए गुरु का गोचर प्रमुखता से देखा जाता है। गोचर में गुरु जब भी सप्तम स्थान पर शुभ दृष्टि डालता है, या सप्तमेश से शुभ योग करता है या पत्रिका के मूल गुरू स्थान से गोचर में भ्रमण करता है तो विवाह योग आता है। इसके अलावा लग्नेश की महादशा में सप्तमेश-पंचमेश का अंतर आने पर भी विवाह होता है।
विवाह कब होगा ?
सप्तम भाव में स्थित बलि ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होता है|लग्न अथवा चन्द्र से सप्तमेश ,द्वितीयेश ,इनके नवांशेश ,शुक्र व चन्द्र की दशाएं भी विवाह्कारक होती हैं |सप्तम भाव या सप्तमेश को देखने वाला शुभ ग्रह भी अपनी दशा में विवाह करा सकता है |उपरोक्त दशाओं में सप्तमेश ,लग्नेश ,गुरु एवम विवाह कारक शुक्र का गोचर जब लग्न ,सप्तम भाव या इनसे त्रिकोण में होता है उस समय विवाह का योग बनता है |लग्नेश एवम सप्तमेश के स्पस्ट राशिः -अंशों इत्यादि का योग करें ,प्राप्त राशिः में या इससे त्रिकोण में गुरु का गोचर होने पर विवाह होता है |
गृहस्थ जीवन कैसा होगा ?
सप्तमेश ,सप्तम भाव ,कारक शुक्र तीनों शुभ युक्त ,शुभ दृष्ट ,शुभ राशिः से युक्त हो कर बलवान हों ,सप्तमेश व शुक्र लग्न से केन्द्र -त्रिकोण या लाभ में स्थित हों तो गृहस्थ जीवन पूर्ण रूप से सुखमय होता है |लग्न का नवांशेश जन्म कुंडली में बलवान व शुभ स्थान पर हो तो गृहस्थ जीवन आनंद से व्यतीत होता है | लग्नेश एवम सप्तमेश की मैत्री हो व दोनों एक दूसरे से शुभ स्थान पर हों तो दांपत्य जीवन में कोई बाधा नहीं आती |लग्नेश एवम सप्तमेश का जन्म कुंडली के शुभ भावों में युति या दृष्टि सम्बन्ध हो अथवा दोनों एक - दूसरे के नवांश में हों तो पति -पत्नी का परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है |
सप्तम भाव में पाप ग्रह हों ,सप्तमेश एवम शुक्र नीच व शत्रु राशिः-नवांश में ,निर्बल ,पाप युक्त व दृष्ट ,६,८,१२वें भाव में स्थित हों तो विवाह में विलंब ,बाधा एवम गृहस्थ जीवन में कष्ट रहता है |लग्नेश एवम सप्तमेश एक दूसरे से ६,८,१२ वें स्थान पर हों तथा परस्पर शत्रु हों तो गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता | ६,८,१२, वें भावों के स्वामी निर्बल हो कर सप्तम भाव में स्थित हों तो वैवाहिक सुख में बाधा करतें हैं |सप्तम भाव से पहले एवम आगे के भाव में पाप ग्रह स्थित हों तो गृहस्थ जीवन में परेशानियाँ रहती हैं |
सप्तम भाव में पाप ग्रह हों ,सप्तमेश एवम शुक्र नीच व शत्रु राशिः-नवांश में ,निर्बल ,पाप युक्त व दृष्ट ,६,८,१२वें भाव में स्थित हों तो विवाह में विलंब ,बाधा एवम गृहस्थ जीवन में कष्ट रहता है |लग्नेश एवम सप्तमेश एक दूसरे से ६,८,१२ वें स्थान पर हों तथा परस्पर शत्रु हों तो गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता | ६,८,१२, वें भावों के स्वामी निर्बल हो कर सप्तम भाव में स्थित हों तो वैवाहिक सुख में बाधा करतें हैं |सप्तम भाव से पहले एवम आगे के भाव में पाप ग्रह स्थित हों तो गृहस्थ जीवन में परेशानियाँ रहती हैं |
विवाह सुख की अल्पता
जन्म कुंडली में ग्रहजनित अनेक ऎसे दोष हो सकते हैं, जिन की वजह से वैवाहिक जीवन में आपसी सोहाद्रü का अभाव रहता है। जन्म कुंडली में विवाह का योग है या नहीं यह सप्तम भाव में स्थित ग्रह एवं राशि, सप्तम भाव के स्वामी की स्थिति और विवाह के कारक की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि पुरूष की कुंडली है, तो शुक्र व स्त्री की कुंडली है, तो गुरू विवाह का कारक होता है। इसलिए सप्तमेश, शुक्र या गुरू अस्त, नीच या बलहीन हो तो विवाह के योग नहीं बन पाते। बनते भी हैं, तो शादी होने के बाद भी वैवाहिक जीवन में सरसता का अभाव रहता है। विवाह सुख में कमी के अन्य ग्रहजनित कारण इस प्रकार हो सकते हैं-
- लग्नेश अस्त हो, सूर्य दूसरे स्थान में और शनि बारहवें स्थान में हो तो विवाह सुख में अल्पता दर्शात है।
- पंचम स्थान पर मंगल, सूर्य, राहु, शनि जैसे एक से अधिक पापी ग्रहों की दृष्टि विवाह सुख में कमी लाती है।
- शुक्र और चंद्र, शुक्र और सूर्य की युति सप्तम स्थान में हो व मंगल शनि की युति लग्न में हो, तो विवाह सुख नहीं होता।
- अष्टम स्थान में बुध-शनि की युति वाले [पुरूष] विवाह सुख नहीं पाते या होता भी है, अल्प होता है।
- पंचम स्थान में मंगल, लाभ स्थान में शनि तथा पापकर्तरी में शुक्र होने से विवाह सुख में अल्पता आती है।
- लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश तथा भाग्येश छठे, आठवें या 12वें स्थान में युति करें और इन ग्रहों पर शनि का प्रभाव हो पति-पत्नी के बीच सामंजस्य कम होता है। पंचमेश अस्त, शत्रु क्षेत्री या नीच का होकर छठे, आठवें या 12वें स्थान में हो वैवाहिक सुख अल्प होता है।
- सूर्य, चंद्र, शुक्र, पंचमेश या सप्तमेश यदि शत्रु ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो, तो वैवाहिक सुख में कमी संभव है। ग्रह जनित दोषों के उपाय करने से लाभ मिलना संभव है।
महिला की कुंडली में गुरु की भूमिका-
गुरु महिलाओं का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है। जन्म कुंडली में गुरु 1,2,4,5,11,12 में शुभ फल तथा 3,6,7,8,10 में अशुभ फल देता है। स्त्रियों की कुंडली में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अधिक प्रभावित करता है। मकर-कुंभ का अकेला गुरु पति-पत्नी के सुख में कमी लाता है। जलतत्वीय या कन्या राशि का सप्तम का गुरु होने पर पति-पत्नी के संबंध मधुर नहीं रहते।
सप्तम में शुभ गुरु व मीन-धनु का होने पर विवाह विच्छेद की स्थिति बनाता है। गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है। महिला कुंडली में आठवें भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है। आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।
सप्तम में शुभ गुरु व मीन-धनु का होने पर विवाह विच्छेद की स्थिति बनाता है। गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है। महिला कुंडली में आठवें भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है। आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।
- गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।
- 1/5/9/11 का गुरु बली होने पर जल्दी विवाह के योग बनाता है, परंतु वक्री, नीच, अस्त, अशुभ, कमजोर होने पर विलंब।
- मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।
- कारक गुरु मिथुन-कन्या का गुरु लग्न या सप्तम में हो तो अति शुभ होता है।
- अत्यंत प्रबल गुरु चंद्र-मंगल से उत्तम तालमेल होने पर वैवाहिक जीवन सफल होता है।
- मेष लग्न में विवाह में विलंब सप्तम का गुरु कराता है।
- कर्क-सिंह लग्न में 7/8 भाव का गुरु शुभ होने से वैवाहिक जीवन शुभ रहता है।
- वृश्चिक-धनु-मीन लग्न का गुरु वैवाहिक जीवन सुखी बनाता है तथा सहायक होता है। मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।
ज्योतिष और वैवाहिक सुख
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जून 30, 2019
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