कई बार लोग प्रश्न करते हैं कि घर में नियमित पूजा-पाठ किस तरह की जाये और किस भगवान की पूजा की जाये शुद्ध आसन पर बैठकर प्रातः और संध्या को पूजा अर्चना करने को नित्य नियम कहते हैं पाठ का…
क्रम इस तरह से होना चाहिए :
1. सर्वप्रथम गणेश जी की उपासना – विघ्नों को दूर करने के लिए
2 . सूर्य भगवान की उपासना – स्वास्थ्य के लिए
3 . माँ भगवती की उपासना – शक्ति के लिए
4 . भगवान शंकर की उपासना – भक्ति के लिए और सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट और विपदाओं से निवारण के लिये
5 . उसके बाद अपने कुल देवता, इष्ट देवता और पितृ देवताओं की उपासना करनी चाहिए
कुछ अनुभूत नित्य नियम
1. नारायण कवच या हनुमान चालीसा एक सर्वविदित और लोकप्रिय उपाय है इसके नित्य कम से कम तीन बार पाठ करने से हर तरह की बाधाओं का निवारण हो जाता है और अटके हुए काम बन जाते हैं
2. दरिद्रता के नाश के लिए माँ लक्ष्मी के श्रीसूक्त या लिंगाष्टक का पाठ करना चाहिए
3. रोग से मुक्ति पाने के लिए और ऋण से पाने के लिए गजेन्द्र मोक्ष और नवग्रह स्तुति नित्य नियम से करना चाहिए.
4. यदि कोई व्यक्ति प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराता है तो उसे अनंत कोटि फल प्राप्त होते हैं
5. मंदिर में आरती के लिए धुप दीप की व्यवस्था करता है तो उसे यश कीर्ति की प्राप्ति होती है
6. अगर व्यक्ती गाय के लिए चारे पानी की व्यवस्था करता है, पक्षियों को चूगा डालता है तो उसके घर से सभी अमंगल दूर होते हैं.
7. जो लोग देवताओं को भोग लगाकर ब्राह्मणों और साधुओं को प्रसाद वितरण करते है उनके जन्म जन्मान्तर के कष्टों और पापों का नाश होता है।
8. यदि कोई व्यक्ति विद्यालय या अस्पताल का निर्माण कराता है या बनाने में अपना योगदान देता है और उसकी सेवा करता है तो उसको सदबुद्घि और भगवत्कृपा मिलती है, लेकिन अपने नाम प्रचार के लिए या स्वार्थ पूर्ति के लिए जो उपरोक्त कार्य करता है, अहंकार करता है तो सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं।
षोडशोपचार पूजन विधि
ईश्वर की पूजा के तरीके अलग अलग है पर षोडशोपचार पूजा विधि को सबसे ज्यादा पूर्ण बताया गया है | इसके अलावा एक छोटी विधि पंचोपचार पूजा भी है |
1) ध्यान-आवाहन– मंत्रो और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है |
आवाहन का अर्थ है पास बुलाना । अपने ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है। हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें।
2) आसन-ईष्ट देवता को आदर के साथ प्रार्थना करे की वो आसन पे विराज मान होवे ।
पाद्य– पाद्यं, अर्घ्य दोनों ही सम्मान सूचक है। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं ।
3) पाद्यं – अपने आराध्य देवी देवता के हाथ और पैर धुलाना |
4) अर्घ्य– पाद्यं, अर्घ्य दोनों ही सम्मान सूचक है। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं ।
5) आचमन– आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि आचमन का अर्थ है अंजलि मे जल लेकर पीना, यह शुद्धि के लिए किया जाता है। आचमन तीन बार किया जाता है। इससे मन की शुद्धि होती है। पढ़े : कैसे करे आचमन और महत्व
6) स्नान– ईष्ट देवता, ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है | एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है | जल से स्नान के उपरांत भगवान को पंचामृत स्नान कराया जाता है |
7) वस्त्र– ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहे है, यह ईश्वर की सेवा है |
8) यज्ञोपवीत– यज्ञोपवीत का अर्थ जनेऊ होता है | भगवान को समर्पित किया जाता है। यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता है।यह सिर्फ देवताओं को ही अर्पण किया जाता है |
9) गंधाक्षत– अक्षत (अखंडित चावल ), रोली, हल्दी,चन्दन, अबीर,गुलाल,
10) पुष्प– फूल माला (जिस ईश्वर का पूजन हो रहा है उसके पसंद के फूल और उसकी माला )
11)धूप– धूपबत्ती | पूजा में अगरबत्ती को क्यों नही जलाना चाहिए
12) दीप– दीपक (घी का )
13) नैवेद्य– भगवान को मिठाई का भोग लगाया जाता है इसको ही नैवेद्य कहते हैं ।
14.ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती – तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है ।
दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए,स्वर्ण,
चांदी कुछ की अर्पित किया जा सकता है।
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
15) मंत्र पुष्पांजलि– मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
16) प्रदक्षिणा-नमस्कार स्तुति- प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा | पूजा में आरती के बाद आराध्य की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए |
इसके बाद क्षमा याचना की स्तुति करनी चाहिए की यदि हम आदान और अज्ञानी से कुछ भूल हुई हो तो माफ़ करे |
नित्य पूजा पाठ के नियम : कैसे करें रोज घर में पूजा…
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
जुलाई 09, 2019
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