गुण मिलान

भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव जैसे जैसे बढ़ता जा रहा है। वैसे ही हमारे समाज में दूषित प्रभाव बढ़ता जा रहा हैं। आज हर अभिभावक अपनी संतान के युवावस्था में प्रवेश करते ही परेशान होने लगता हैं। प्रथम इस बात पर की उसके लिए सही जीवन साथी का चयन कैसे किया जाये तो दूसरा इस बात से की उसकी संतान की गलत हरकतों की वजह से उसके व्यवहार, मान, सम्मान और उनकी इज्जत में कोई कमी नहीं आये। समय चक्र के साथ साथ कुछ अभिभावक अपनी संतान की पसंद को महत्त्व देने लगे हैं। कई बार देखा गया हैं की युवावस्था में प्रवेश करते ही कोई जातक किसी लड़की की तरफ आकर्षित होने लगता हैं लेकिन कुछ समयावधि के उपरांत ही उनमे आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू होने लगता हैं। तो कई बार इनके अभिभावक भी इनकी पसंद को स्वीकार कर शादी करवा लेते हैं लेकिन शादी के कुछ समय पश्चात् ही इनमे टकराव होने लगता हैं। शादी से पूर्व दोनों में जितना प्यार और घनिष्ठ सम्बन्ध था आखिर शादी के पश्चात् वह अपनापन कहा चला गया इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र के द्वारा विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी जातक की प्रकृति ,अभिरुचि ,उसका व्यक्तित्व और उसका व्यव्हार उसके जन्म नक्षत्र और राशी के आधार पर निर्धारित होता हैं। इसी आधार पर वर -वधु के जन्म नक्षत्र और जन्म राशी का मिलान करना गुण मिलान कहलाता हैं। गुण मिलान के आधार पर जाना जाता हैं की दोनों में परस्पर कैसा सम्बन्ध रहेगा। यदि दोनों के गुण ५० प्रतिशत से अधिक मिल रहे हैं। तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा। जब पहली बार किसी के प्रति आकर्षण की भावना बढती हैं तो उनमे सही गलत का निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती। जब किसी के प्रति आकर्षित होते हैं या दिल का मिलना शुरू होता हैं तो उनमे परस्पर प्रेम भाव और अपनत्व की भावना बढती रहेगी। इसका कारण दोनों में सिर्फ लगाव या ज्योतिष के अनुसार किसी शुभ ग्रह का समय चल रहा होता हैं परन्तु यदि दोनों में यदि कम गुण मिल रहे हैं तो जब अशुभ ग्रह का समय शुरू होगा तो उनमे वैचारिक मतभेद होने लगेगा , जिससे वाद विवाद की स्थिति बनती हैं। गुण मिलान में अष्ट कूटो का मिलान किया जाता हैं। ये अष्ट कूट परस्पर विभिन्न प्रकार से सामंजस्य स्थापित करने हेतु उत्तरदायी माने जाते हैं। आइये इनके बारे में जानकारी प्राप्त करे …………….

१) वर्ण - अष्ट कूटो में प्रथम कूट वर्ण माना गया हैं इसके आधार पर कार्य क्षमता का मूल्यांकन किया जाता हैं ज्योतिष शास्त्र और भारतीय संस्कृति में चार वर्ण माने गये हैं। इनकी परस्पर कार्य क्षमता भी अलग अलग मानी गयी हैं। कन्या से वर का वर्ण उत्तम या परस्पर एक ही हो तो दंपत्ति अपने जीवन का निर्वाह भली प्रकार से कर पाएंगे इसका मिलान होने पर एक गुण मिलता हैं।

२) वश्य - वश्य पांच प्रकार के माने गए हैं। चतुष्पद ,द्विपद ,जलचर ,वनचर और किट। मेष ,वृषभ ,सिंह, धनु का उत्तरार्ध और मकर का पूर्वार्ध चतुष्पद माने गये हैं। इनमे से सिंह राशी चतुष्पद होते हुए भी वनचर मानी गयी हैं। मिथुन ,कन्या ,तुला ,धनु का पूर्वार्ध और कुम्भ राशी द्विपद मानी गयी हैं। मकर का उत्तरार्ध और कर्क राशी को जलचर माना हैं , इसमे कर्क राशी को जलचर होते हुए भी किट माना हैं। वश्य के द्वारा स्वभाव और परस्पर सम्बन्ध के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती हैं यदि वश्य एक ही अथवा परस्पर मित्र हैं तो सम्बन्ध अच्छा बना रहेगा परन्तु वश्य परस्पर शत्रु हैं तो दोनों में शत्रुता की भावना सामान्य बात पर भी हो जाएगी। भक्ष्य होने पर एक दुसरे का ख्याल रखने पर भी ऐसे विचार आएंगे की मेरा जीवन साथी मुझे किसी भी प्रकार से दबाना चाहता हैं। मेरी भावनाओ की कोई क़द्र नहीं हैं। ऐसे विचार आपके प्रेमी को भी आ सकते हैं इसका शुभ मिलान होने पर दो गुण प्राप्त होते हैं

) तारा - जन्म नक्षत्र के आधार पर तारा ९ प्रकार की मानी गयी हैं। जन्म ,संपत ,विपत ,क्षेम ,प्रत्यरी ,साधक ,वध , मित्र और अतिमित्र। तारा का मिलान होने पर दोने में परस्पर एक दुसरे को समझने की शक्ति प्राप्त होती हैं इसके लिए वर या पुरुष के जन्म नक्षत्र से गिनकर कन्या के नक्षत्र पर जाये और प्राप्त संख्या में ९ का भाग देवे इसी प्रकार कन्या के नक्षत्र से वर या पुरुष के नक्षत्र पर जाकर गिनने पर प्राप्त संख्या में ९ का भाग देवे। इससे प्राप्त शेष संख्या से तारा जानी जाती हैं। तीसरी विपत , पांचवी प्रत्यरी और सातवी वध अपने नाम के अनुसार अशुभ हैं ,शेष शुभ हैं। इसका मिलान होने पर तीन गुण प्राप्त होते हैं।

) योनी - योनी चौदह मानी गयी हैं। अश्व ,गज ,मेष ,सर्प ,मार्जार मूषकगौमहिषव्याघ्रमृगवानरनकुल और सिंह । इसके द्वारा निर्णय लेने की क्षमता ,परस्पर संतुलन और विवेक का विचार किया जाता हैं। इसके द्वारा किसी कार्य को करते समय विचारो का मिलना जाना जाता हैं। विचार अलग होने पर अर्थात योनी अलग होने पर कार्य में बाधा आती हैं इसके मिलने पर चार गुण प्राप्त होते हैं। समान योनी होने पर चार गुण ,मित्र योनी होने पर तीन गुण ,सम योनी होने पर दो गुण और शत्रु योनी होने पर शून्य गुण प्राप्त होता हैं।

५) ग्रह मैत्री - ग्रह मैत्री के द्वारा परस्पर स्वभाव और उनकी प्रकृति के बारे में जाना जाता हैं। ग्रहों में परस्पर नैसर्गिक रूप से तीन प्रकार के सम्बन्ध बनते हैं। यदि दोनों के राशी स्वामी परस्पर मित्र अर्थात एक ही हो तो परस्पर प्रेम रहता हैं परन्तु शत्रु होने पर विरोध रहता हैं। दोनों के राशी स्वामी परस्पर सम हो तो कभी ख़ुशी कभी गम की स्थिति बनती हैं। इसका मिलान होने पर पांच गुण प्राप्त होते हैं।

६) गण - गण तीन होते हैं देव , मनुष्य और राक्षस। गण के द्वारा शालीनता ,उदारता ,सहृदयता सुशीलता का विचार किया जाता हैं। देव गण में उत्तपन जातक उदार ,दयालु ,दानी और आत्म विश्वासी होते हैं। मनुष्य गण में उत्त्पन्न जातक चतुर ,स्वार्थी और स्वाभिमानी होते हैं। राक्षस गण में उत्त्पन्न जातक क्रोधी ,जिद्दी ,लापरवाह ,निर्दयी होते हैं। गण मिलान होने पर ६ गुण मिलते हैं।

७) भकूट - भकूट छः प्रकार के होते हैं। वर की राशी से कन्या की राशी एवम कन्या की राशी से वर की राशी तक गिनने पर इसकी जानकारी प्राप्त होती हैं। षडाष्टक ,द्विद्वादश ,नव पंचम अदि अशुभ हैं। षडाष्टक में दोनों के राशी स्वामी एक हो या परस्पर मित्र हो तो प्रीति षडाष्टक शुभ होता हैं। शेष मिलान शुभ हैं। इसका मिलान होने पर अधिकतम ७ गुण प्राप्त होते हैं

८) नाड़ी - नाडीया तीन होती हैं आदि ,मध्य और अन्त। इनमे दोनों की एक ही नाड़ी अशुभ हैं अलग अलग नाड़ी होना शुभ हैं। इनका मिलान होने पर आठ गुण प्राप्त होते हैं। इस प्रकार यदि दिल मिलाने के उपरांत भी गुण मिलान नहीं हो रहा हो तो किसी न किसी कारणवश परस्पर वैचारिक मतभेद ,सामंजस्य का अभाव होने से उनमे अपनत्व की भावना कमजोर रहती हैं। इसलिए दिल मिलाने से ज्यादा जरुरी गुण मिलान को कहा जा सकता हैं। 


गुण मिलान गुण मिलान Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

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