आदि
काल से ऋषियों ही संतान प्राप्ति के नियम (Progeny Rules) और संयम आदि
निर्धारित किये थे जिस प्रकार प्रथ्वी पर उत्पत्ति और विनाश का क्रम हमेशा
से चलता रहा है प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान
(Conception) का कारण भी समझ लेना चाहिये जिनका पालन करने से आप तो
संतानवान होंगे ही साथ ही होने वाली संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं
करना होगा-
संतान प्राप्ति के नियम और उपाय
संतानोत्पत्ति के बारे में जाने-
1-
जीवन में हर दम्पति(Couple)की अभिलाषा होती है कि उसकी कम से कम एक संतान
अवश्य हो जिस प्रकार धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है तो बीज की
उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है और समय आने
पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म
ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के
मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म
हो जायेगा-
2-
इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान(Conception)
का कारण समझ लेना चाहिये जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप
की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा इनमे से अधिकांश औषधियों का
चयन प्राचीन ग्रंथो से किया गया हैं और वैद्यों एवं प्रयोगकर्ता इन्हें
पूर्ण सफल और अनुभव सिद्ध भी मानते हैं और कुछ मंत्रो के विधान से भी और
निष्ठां पूर्वक किया गया ब्रत भी फलदायी होता है -
3- कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए-जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और आमवस्या -
4-
चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय
स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर
तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है गर्भाधान के समय स्त्री का
दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा-
5-
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान- तो हम आपकी सुविधा
के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी
दे रहे हैं-मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष
रुग्णता(Disease)को प्राप्त होता है पांचवी रात्रि से संतान उत्पन्न करने
की विधि करनी चाहिए -
6-
इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये-यह
अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता है इसमे ध्यान देने वाली
बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक
मात्रा में शुक्राणुओं(Sperm)का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में
पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है-
7-
यदि पति-पत्नी संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो
मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में
सहवास(sexual intercourse) कर सकते हैं इस काल में गर्भाधान की संभावना नही
के बराबर होती है-
8-
चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये अगर
इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का
खतरा बना रहता है- इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव
आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये इसका गर्भस्थ
शिशु पर अत्यंत प्रभावकारी असर पडता है-
9-
अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आ रही
हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये- यदि
संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें- राहु
बाधक हो तो कन्यादान से- केतु बाधक हो तो गोदान से- शनि या अमंगल बाधक बन
रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा
सकती हैं-
सहवास (Sexual Intercourse) की कुछ राते -
मासिक
स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं
रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के
गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है इसकी गणना आप जिस दिन और जिस समय मासिक
धर्म हुआ है उससे चौबीस घंटे बाद ही एक दिन पूर्ण हुआ माने-
चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है-
पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी-
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा-
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी-
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है-
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है-
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है-
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है-
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है-
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है-
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है-
पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है-
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न पुत्र पैदा होता है-
पुरातन काल के लोग उपरोक्त नियम-संयम से संतान-उत्त्पति किया करते थे -
ध्यान
रहें सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे
रहना चाहिए एकदम से नहीं उठना चाहिए तथा वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख
दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि
रुक जाती है इस समस्या के पीछे की वास्तविकता-क्या है इसका शास्त्रीय और
ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त
कर सकते है-इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप
करे-
पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें-
संतान प्राप्ति गोपाल मन्त्र -
" ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।"
इस
मंत्र का बार रोज 108 जाप करे और मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से
निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें तथा
अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल
को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे-
कई
बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो
पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक
प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता
है या घर का वास्तुदोष भी होता है जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या
बार-बार गर्भपात हो जाता है-
पुत्र-प्राप्ति गणपति मन्त्र -
श्री
गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से
निवृत होकर एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने
से संतान प्राप्ति होती है-
'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:'
पुत्र-प्राप्ति शीतला-षष्ठी ब्रत-
शीतला षष्ठी का व्रत
माघ
शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता
है कहीं-कहीं इसे 'बासियौरा' नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन प्रात:काल
स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना
चाहिये- इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है-
शीतला-षष्ठी व्रत-कथा -
एक
ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के
बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं
से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने
श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो
गई-
एक
बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा
खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न
देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था।
ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो
क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी।
पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ''ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से
हुआ है।'' ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई। रोती-चिल्लाती वन की ओर चल
दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी।
पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला
माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को
मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर
भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर
स्वस्थ होकर शीतल हो गया-
ब्राह्मणी
को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने
परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर
मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके
परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी
मान्यता है-
संतान प्राप्ति के नियम और उपाय
Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला
on
अक्टूबर 02, 2018
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