जानिए आपको कब मिलेगा मकान का सुख

किसी भी जातक की जन्म कुण्डली में घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्रऔर चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों में रहती है। कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। कुछ लोगों को मकान हर दृष्टि से फलदायी है। कोई टूटे-फूटे मकानों में रहता है तो कोई आलिशान बंगले का स्वामी है। सुख-दुख जीवन के अनेक पहलुओं पर मकान एक परमावश्यकता बन गई है।

जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।

साथ ही मंगल की स्थिति का सुदृढ़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्ययन पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेंश, नवमेंश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।

1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से)

निष्पत्ति – लग्नेश चतुर्थ स्थान में हो चतुर्थेश लग्न में हो तो यह योग बनता है।

परिणाम – इस योग में जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।

2. उत्तम ग्रह योग

निष्पत्ति – चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1,4,7,9,10) में हो तो यह योग बनता है।

परिणाम – ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।

3. अकस्मात घर प्राप्ति योग

निष्पत्ति – चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव में हो तो यह योग बनता है।

परिणाम – अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।

4. एक से अधिक मकानों का योग

निष्पत्ति – चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों में (1,4,7,10) हो। चतुर्थ भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।

परिणाम – ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।

5. वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से)

निष्पत्ति – नवमेंश, दूसरे भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।

परिणाम – इस योग में जन्में जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष में होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।

6. बड़े बंगले का योग

निष्पत्ति – चतुर्थ भाव में यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।

परिणाम – ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।

7. बिना प्रयत्न प्राप्ति योग

निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेंश लग्न में हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।

परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।

8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग

निष्पत्ति – चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेंश केंद्र में हो तो ये योग बनता है।

परिणाम – ऐसे जातक को बिना प्रयत्न के घर मिल जाता है।

9. ग्रहनाश योग

निष्पत्ति – चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह दोष बनता है।

परिणाम – ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।

10. उत्तम कोठी योग

निष्पत्ति – चतुर्थेश और दशमेंश एक साथ केंद्र त्रिकोण में हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।

परिणाम – कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है।


जानिए मकान (घर) सुख संबंधी कुछ मुख्य ज्योतिषीय सिद्धांत
1. चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है।

2. चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

3. चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है।

4. चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है।

5. चतुर्थ स्थान का मंगल घर में आग से दुर्घटना का संकेत देता है। अशांति रहती है।

6. चतुर्थ में शनि हो, शनि की राशि हो या दृष्टि हो तो घर में सीलन, बीमारी व अशांति रहती है।

7. चतुर्थ स्थान का केतु घर में उदासीनता देता है।

8. चतुर्थ स्थान का राहु मानसिक अशांति, पीड़ा, चोरी आदि का डर देता है।

9. चतुर्थ स्थान का अधिपति यदि राहु से अशुभ योग करे तो घर खरीदते समय या बेचते समय धोखा होने के संकेत मिलते हैं।

10. चतुर्थ स्थान का पापग्रहों से योग घर में दुर्घटना, विस्फोट आदि के योग बनाता है।

11. चतुर्थ स्थान का अधिपति 1, 4, 9 या 10 में होने पर गृह-सौख्य उच्च कोटि का मिलता है।

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली में गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।



गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है । शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है।

वर्षफल के हिसाब से शुक्र जब राहु, केतु के सम्बन्ध से अछूता हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो मकान ही मकान बनवायेगा लेकिन जब केवल राहु, केतु के साथ हो तो मकान बनने से बर्बाद होगा और हानि देगा। पुष्य नक्षत्र से शुरू कर इसी नक्षत्र में पूर्ण किया मकान अति उत्तम होता है तथा पूर्ण होने पर मकान की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

शुभ लग्न में शुरू किये मकान के लिए निम्न सावधानियां जरूरी हैं

कोने: जमीन के टुकड़ों को एक गिन उस के कोने देखें। चार कोने वाला (90 डिग्री) का मकान सर्वोत्त्म है, आठ कोनो वाला मातमी या बीमारी देने वाला, अठारह कोनों वाला हो तो सोना, चांदी देने वाला होता है। तीन या तेरह कोनों वाला हो तो भाई बन्धुओं को मौतें, आग, फांसी देने वाला होता है। पांच कोनों वाला हो तो सन्तान का दुख व बरबादी, मध्य से बाहर या मछली की पेट की तरह उठा हुआ मकान हो तो खानदान घटेगा यानी दादा तीन, बाप दो, स्वयं अकेला और नि:सन्तान होता है।



दीवारें: कोने देखने के बाद, मकान बनाने के पहले दीवारों का क्षेत्रफल और नींव छोड़कर हरेक हिस्सा या कमरे का अंदरूनी क्षेत्रफल अलग-अलग देखा जाए तो जातक (मालिक मकान) के अपने हाथों का क्षेत्रफल भी देखा जाए। उस का हाथ चाहे 18,19 या 17 इंच का हो पैमाना उस के हाथ की लम्बाई का हो।

मुख्य द्वार: 1 पूर्व में उत्तम, नेक व्यक्ति आए जाए, सुख हो। 2 पश्चिम में दूसरे दर्जे का उत्तम। 3 उत्तर में नेक, लम्बे सफर, पूजा पाठ नेक कार्य के लिए आने जाने का रास्ता जो परलोक सुधारे। 4 दक्षिण में हानिकारक, मौत की जगह।

निम्न सावधानियां रखें नया मकान बनवाते समय:

हमारे ग्रंथ पुराणों आदि में वास्तु एवं ज्योतिष से संबंधित गूढ़ रहस्यों तथा उसके सदुपयोग सम्बंधी ज्ञान का अथाह समुद्र व्याप्त है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है।

सुखी परिवार अभियान में वास्तु एक स्वतंत्र इकाई के रूप में गठित की गयी है और उस पर श्रेष्ठ वातावरण और परिणाम के लिए वास्तु के अनुसार जीवनशैली और ग्रह का निर्माण अति आवश्यक है। इस विद्या में विविधताओं के बावजूद वास्तु सम्यक उस भवन को बना सकते हैं, जिसमें कि कोई व्यक्ति पहले से निवास करता चला आ रहा है। वास्तु ज्ञान वस्तुत: भूमि व दिशाओं का ज्ञान है।

जानिए कब प्रारंभ करें मकान बनवाना ?

शुक्ल पक्ष में करें गृह निर्माण: वास्तुशास्त्र में प्राचीन मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की विवेचना की है।

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है।

2. वृषभ राशि में सूर्य संपत्ति बढऩा, आर्थिक लाभ

3. मिथुन राशि में सूर्य गृह स्वामी को कष्ट

4. कर्क राशि में सूर्य धन-धान्य में वृद्धि

5. सिंह राशि का सूर्य यश, सेवकों का सुख

6. कन्या राशि का सूर्य रोग, बीमारी आना

7. तुला राशि का सूर्य सौख्य, सुखदायक

8. वृश्चिक राशि का सूर्य धन लाभ

9. धनु राशि का सूर्य हानि, विनाश

10. मकर राशि का सूर्य धन, संपत्ति वृद्धि

11. कुंभ राशि का सूर्य रत्न, धातु लाभ

12. मीन राशि का सूर्य चौतरफा नुकसान..

घर बनाने का प्रारंभ हमेशा शुक्ल पक्ष में करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण उत्तम फल देता है।

वर्जित: मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, ज्येष्ठा, रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग – इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा घर फलदायक नहीं होता।

अति शुभ योग: शनिवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दैवी आनंद व सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।



घर किस नगर, मोहल्ले में बनवाना शुभ है। इस हेतु तीन विधियों से विचार करने का मत हमारे प्राचीन वास्तुशास्त्रियों ने दिये हैं-

नक्षत्र विधि: सर्वप्रथम अपने जन्म नक्षत्र का ज्ञान करें जो कि जन्मकुंडली से जाना जा सकता है और यदि जन्मकुंडली न हो तो जो प्रचलित नाम हो उसके प्रथम अक्षर से ज्ञात कर लें। इसी प्रकार जिस नगर, ग्राम, मोहल्ले में घर बनवाना हो उसका भी नक्षत्र नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार जान लें। अब ग्राम, नगर, मोहल्ले की नक्षत्र संख्या से अपने जन्म नक्षत्र की संख्या तक गिनें और फल इस प्रकार जानें….

यदि संख्या फल 1 से 5 लाभदायक, 6 से 8 धन हानि, 9 से 13 समृद्धि धन लाभ, यश, 14 से 19 पत्नीकष्ट, हानि, विवाह सुख का अभाव 20 अंग भंग 21 से 24 सुखदायक, संपति से बढ़ोश्ररी 25 कष्टकारक तथा भयकारक 26 कष्टकारी, शोककारी 27 ग्राम, नगर, मोहल्ले वालों से बैर इसमें अभिजित को संज्ञान में लिया गया है।

उदाहरण – माना कि आपका नाम मनमोहन सिंह तथा आप दिल्ली में घर बनवाना चाहते हैं तो उपरोक्त विधि से विचार करने पर दिल्ली का नक्षत्र है पूर्वाभाद्रपद जिसकी नक्षत्र संख्या 25 है तथा नाम नक्षत्र मघा की नक्षत्र संख्या 10 है नगर नक्षत्र से नाम नक्षत्र तक गणना करने पर 13 अंक आ रहा है विवरण अनुसार यह अंक आपके लिए समृद्धि, धन लाभ एवं लाभ कारक है। अर्थात शुभ है।

वर्ग विचार विधि: इस विधि में अपना तथा ग्राम, नगर, मोहल्ले का नाम लेने का विधान है। इस विधि में यह विचारा जाता है कि अपना नाम एवं ग्राम, नगर, मोहल्ले का नाम किस वर्ग में है। किस अक्षर का किस अक्षर तक क्या वर्ग है उसका विवरण इस प्रकार है- अक्षर वर्ग अ से अं तक अ वर्ग में जिसका स्वामी गरुण। क से ड. तक क वर्ग में जिसका स्वामी बिल्ली। च से ञ तक च वर्ग जिसका स्वामी सिंह। ट से ण तक ट वर्ग जिसका स्वामी श्वान। त से न तक त वर्ग का स्वामी सांप। प से म तक प वर्ग का स्वामी चूहा। य से व तक य वर्ग जिसका स्वामी हिरन। श से ह तक श वर्ग का स्वामी बकरी। अपने नाम की वर्ग संख्या को दो से गुणा कर उसमें नगर, ग्राम, मोहल्ले आदि वर्ग संख्या जोड़ दें फिर इसमें आठ का भाग दें।

अब नगर, ग्राम, मोहल्ले की वर्ग संख्या को दूना करके उसमें अपने वर्ग की संख्या जोड़ दें। अब यदि ग्राम, नगर, मोहल्ले की संख्या कम और नाम अधिक है तो यह ग्राम, नगर, मोहल्ला आपके 4, 8, 12 होने पर स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ नहीं है। घर किस ग्राम/नगर/मोहल्ले में बनवाना है निश्चित हो जाने के बाद प्रश्न यह उठता है कि घर स्थान के किस भाग में बनवाया जाये।

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया को राशि के अनुसार वृष, मकर, सिंह, मिथुन राशि के जातकों को बीच में, वृश्चिक राशि वालों को पूर्व में, मीन वाले को पश्चिम में, तुला वालों को वायव्य में, उत्तर दिशा में मेष वालों को तथा कुंभ वालों को ईशान दिशा में घर बनवाना चाहिए।

जानिए आपको कब मिलेगा मकान का सुख जानिए आपको कब मिलेगा मकान का सुख Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on अक्टूबर 30, 2019 Rating: 5

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