ज्योतिष में राहु ग्रह


कौन है राहु
मान लो, धरती स्थिर है तब उसके चारों ओर सूर्य का एक काल्पनिक परिभ्रमण-पथ बनता है। पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा का एक परिभ्रमण पथ है ही। ये दोनों परिभ्रमण-पथ एक-दूसरे को दो बिन्दुओं पर काटते हैं। एक पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होते हैं। दोनों ही समय पाया होगा कि सूर्य, चंद्र, पृथ्वी एवं सूर्य, चंद्र के परिभ्रमण-पथ पर कटने वाले दोनों बिन्दु लम्बवत हैं। इन्हीं बिन्दुओं के एक सीध में होने के फलस्वरूप खास अमावस्या के दिन सूर्य तथा खास पूर्णिमा की रात्रि को चंद्र आकाश से लुप्त हो जाता है। प्राचीन ज्योतिषियों ने इन बिन्दुओं को महत्वपूर्ण पाकर इन बिन्दुओं का नामकरण 'राहु' और 'केतु' कर दिया।
 राहु यानी बिजली की चमक
बुध ग्रह हमारी बुद्धि का कारण है, लेकिन जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है उसका कारण राहु है। जैसे मान लो कि अकस्मात हमारे दिमाग में कोई विचार आया या आइडिया आया तो उसका कारण राहु है। राहु हमारी कल्पना शक्ति है तो बुध उसे साकार करने के लिए बुद्धि कौशल पैदा करता है।
पुराणों के अनुसार
पुराणों के अनुसार राहु सूर्य से 10,000 योजन नीचे रहकर अंतरिक्ष में भ्रमणशील रहता है। कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। इनकी दैनिक गति 3 कला और 11 विकला है। ज्योतिष के अनुसार 18 वर्ष 7 माह, 18 दिवस और 15 घटी, ये संपूर्ण राशियों में भ्रमण करने में लेते हैं। राहु दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का पुत्र माना जाता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में दैत्यगुरु के रूप में इनका उल्लेख मिलता है। अमृत वितरण के समय दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने गुप्तचर के रूप में इन्हें देवसभा में भेजा था। जहां भगवान शिव की कृपा से ये भगवान विष्णु के मोहनी रूप को समझ गए। तत्पश्चात देव बनकर भगवान विष्णु से अमृत पान कर अमर हो गया। एक बार सूर्य और चंद्र द्वारा शिकायत करने पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से इसका धड़ सिर से अलग कर दिया। फलस्वरूप धड़ केतु तथा सिर राहु कहलाया। घोर तपस्या के पश्चात बह्माजी ने इन्हें आकाश मंडल में जगह दी।

ग्रह नहीं
राहु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है, हमारी धरती की छाया या धरती पर पड़ने वाली छाया। छाया का हमारे जीवन में बहुत असर होता है। कहते हैं कि रोज पीपल की छाया में सोने वाले को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता लेकिन यदि बबूल की छाया में सोते रहें तो दमा या चर्म रोग हो सकता है। इसी तरह ग्रहों की छाया का हमारे जीवन में असर होता है।
तेज
व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। रहस्यमय या धार्मिक बातों में रुचि लेगा। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं।
मंदा
व्यक्ति बेईमान या धोखेबाज होगा। ऐसे व्यक्ति की तरक्की की शर्त नहीं। राहु का खराब होना अर्थात दिमाग की खराबियां होंगी, व्यर्थ के दुश्मन पैदा होंगे, सिर में चोट लग सकती है। व्यक्ति मद्यपान या संभोग में ज्यादा रत रह सकता है।
तत्व/प्रकृति/रंग
Ø यह ग्रह वायु तत्व म्लेच्छ प्रकृति तथा नीले रंग पर अपना विशेष अधिकार रखता है।
Ø जानवरों में हाथी, बिल्ली व सर्प पर राहु ग्रह का विशेष प्रभाव माना गया है।
Ø धातुओं में कोयले पर राहु का अधिकार होता है।
Ø राहु को नीले फूल प्रिय हैं।
Ø सरस्वती इनकी ईष्ट देवी है।
Ø ध्वनि तरंगों पर राहु का विशेष अधिकार है।
Ø शरीर में कान, जिह्वा, समस्त सिर तथा गले में राहु का विशेष प्रभाव रहता है।
Ø सोच-विचार, कपट, झूठ चोर-बाजारी, स्वप्न, पशु मैथुन आदि क्रियाओं को यह संचालित करता है।
ज्योतिष में राहु ग्रह ज्योतिष में राहु ग्रह Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on जून 30, 2019 Rating: 5

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