लॉकडाउन, मोदी जी का दीपक और रवि प्रदोष व्रत का संयोग

प्रदोष व्रत क्यों संपादित किया जाता है, प्रदोष शब्द का अर्थ 'विशेष दोष' है, फिर भी इसे पवित्रता के साथ क्यों व्रत लिया जाता है?
हमारे शास्त्रों में कई साधनाओं, तपस्याओं, उपवासों और व्रतों का उल्लेख किया गया है, जिनके माध्यम से शोधकर्ताओं, खोजकर्ताओं, और भक्तों ने अपने निहित लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करके, दुनिया की अनंत इच्छाओं को समाप्त करके और मृत्यु के बाद भक्ति और मोक्ष प्राप्त करके अनन्त जीवन प्राप्त किया है। सनातन धर्म में, कई साधनाएं व प्रतिज्ञाएं हैं, जिनके माध्यम से एक व्यक्ति न केवल अपने भौतिक जीवन में लाभ उठाता है, बल्कि विभिन्न सुखों का भी अनुभव करता है। इन विभिन्न व्रतों के बीच, प्रदोष का व्रत एक अलग और महत्वपूर्ण उपवास है।
प्रदोष का व्रत भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाने बाला एक उपवास है। भगवान शिव को आशुतोष के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि महादेव तुरंत प्रसन्न होते हैं और भक्त केवल थोड़े से प्रयास से जल्दी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति इस पवित्र व्रत को पालन करते हैं । इस वीडियो में मैं प्रदोष व्रत के साथ-साथ रविपदोष की महात्म्य, इसका प्रत्यक्ष लाभ और रविपदोष की शास्त्रीय कहानी के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी को कवर करने का प्रयास करूंगा।


आइए पहले हम प्रदोष व्रत को कैसे संपादित करना है, सीखें
यह व्रत हर महीने में दो बार होता है। चूंकि यह व्रत तिथि के आधार पर लिया जाता है, इसलिए यह प्रत्येक शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन किया जाने वाला व्रत है। चूंकि प्रदोष की अवधि शायं काल में पूर्ण अन्धरा छा जाने के बाद लगभग दो घंटे का समय माना जाता है । इसलिए उस तिथि को शाम को छुआ जाना चाहिए और तव ही प्रदोष का उपवास लिया जाता है । इसलिए यह व्रत कभी द्वादशी की शाम को और कभी त्रयोदशी को होता है। प्रदोष के दिन, हर प्रदोष का व्रत लेने वाले व्रती को ब्रह्ममुहूर्त पर बिस्तर छोड़ना चाहिए और शौचादि क्रिया से निवृत्त होकर नहाधोकर शुद्ध वस्त्र पहनने के बाद पूजवेदी में प्रवेश करना चाहिए और नियमित रूप से पूजा और जपादि करना चाहिए और विभिन्न उपचार प्रक्रिया के माध्यम से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दिन आपको केवल फल खाने चाहिए। प्रदोष के दौरान, बड़ी शाम के बाद, हमें भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और उपवास खत्म करना चाहिए। यह सामान्य नियम है। हालाँकि, कुछ उपवास करने वाले लोग अपनी शारीरिक शक्ति के अनुसार इस व्रत को निर्जल रहकर भी करते हैं। शाम को हल्की फलाहार लेकर पूरी रात जागरण करने का विधान भी है। प्रदोष के व्रत में प्रदोष के समय का विशेष महत्व है। सूर्यास्त के दो घंटे बाद प्रदोष का समय होता है। दो घड़ियों का मतलब ४८ मिनट है। दिन के अनुसार, हर प्रदोष का विशेष महत्व है। बार के अनुसार, इस व्रत का नाम का भी अलग महत्व, विशेषताएं और विधान होते हैं । जैसे कि सोम प्रदोष, शनि प्रदोष, गुरु प्रदोष, रवि प्रदोष आदि । इसका मतलब है, सोमवार का प्रदोष सोम प्रदोष है, शनिवार के प्रदोष का नाम शनि प्रदोष है। ऐसा माना जाता है कि भक्त को इनमें से प्रत्येक प्रदोष से अलग-अलग फल मिलते हैं, जैसे :-
1. रवि प्रदोष - रवि प्रदोष ने केस जीतने, निर्णय क्षमता बढ़ाने और स्वास्थ्य लाभ के लिए । रविवार और त्रयोदशी तिथि के  संयोग होने को रवि प्रदोष कहते हैं। रविप्रदोष का व्रत रखने से दीर्घायु और स्वास्थ्य लाभ होता है। चूंकि सूर्य नेतृत्व, निर्णय क्षमता, उच्च पद, व्यक्तित्व विकास आदि प्रदान करता है, इसलिए यह माना जाता है कि ये फल इस व्रत से आसानी से प्राप्त होते हैं।
2. सोम प्रदोष - मानसिक अशांति, बेचैनी और मानसिक बीमारी के इलाज और परिवार की बेहतरी के लिए सोमप्रदोष व्रत। सोमवार और त्रयोदशी तिथि के संयोगबाले दिन को सोमप्रदोष कहा जाता है। सोम चंद्रमा है। धर्म शास्त्रों में, चंद्रमा का मन और संपत्ति के साथ सीधा संबंध है। पुराणों में उल्लेख है कि चंद्रमा ने अपने श्राप से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली और शिव ने चंद्रमा को अपने सिर पर रख लिया। इसलिए सोमप्रदोष का व्रत किसी भी चिंता,  दिकदारी और असंतोष को ठीक करने के लिए लिया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से विवाह और प्रेम जीवन की समस्याओं का भी समाधान होता है ।
3. भौम प्रदोष - बच्चों की खुशी, संतान की उन्नति और आत्मविश्वास, साहस और उत्साह में विकास के लिए मंगलवार को जो प्रदोष होता है उसका संपाद किया जाता है । मंगलवार और प्रदोष के संयोजन को भौम प्रदोष कहा जाता है। यह कर्ज से छुटकारा पाने का एक शानदार उपाय है। शास्त्र कहते हैं कि मंगल का पृथ्वी और साहस से सीधा संबंध है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा और लाभ मिलेगा।
4. बुध प्रदोष - वैवाहिक जीवन, प्रेम प्रसंग, खुशी और आनन्द प्राप्ति के लिए बुध प्रदोष का व्रत। बुध ग्रह की बुद्धि, दिल और खुशी के साथ नाता जुडा होता है । इसलिए, भक्त बुधवार और त्रयोदशी तिथि के संयोजन से निर्मित बुध प्रदोष के दिन भगवान शिव व बुध की पूजा करके अपनी खुशी बढ़ाते हैं। उनकी बौद्धिक क्षमता और बुद्धिमत्ता में भी वृद्धि होती है। प्रेम जीवन और वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए बुध प्रदोष का व्रत लेने का नियम भी है।
5. गुरु दोष - गुरु प्रदोष व्रत, राज्य क्षमता, प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने के लिए, और वंश और पूर्वजों की रक्षा के लिए तथा दुश्मन को खत्म करने के लिए। गुरुवार और त्रयोदशी तिथि के संयोग को गुरु प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत लेने से पितृदोष का नाश होता है। इस व्रत को राज्य और प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने और प्रतिद्वंद्वियों और दुश्मनों को नष्ट करने के साधन के रूप में भी चर्चा की जाती है। इसी प्रकार, कुंवारी जिसका विवाह उमर ढल जाने के बाद भी नहीं हुआ है, गुरु बृहस्पति के आशीर्वाद पाने के लिए इस प्रदोष के उपवास करने से लाभ होता है।
6. शुक्र प्रदोष - ज्योतिष और धर्मशास्त्र में शुक्र की विशेष भूमिका है। यह वीर्य, यौन सामर्थ्य, प्रजनन क्षमता, तकनीकी ज्ञान, कौशल, कारीगरी आदि प्रदान करनें मे जाना जाता है । इसलिए, इन चीजों को प्राप्त करने के लिए, और इस दुनिया में जीवन को खुशी से बिताने के लिए और अंत में शिवसायुज्य प्राप्त करने के लिए, शुक्र प्रदोष का उपवास करने का प्रथा है, जो शुक्रवार और प्रदोष के साथ मेल खाता है। शुक्र को बुद्धि बढ़ाने और प्रेम और विवाह को सफल बनाने में एक विशेष भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है।
7. शनिश्चरी प्रदोष - शनि के कुप्रभाव को खत्म करने, कुण्डली में संतान दोष का निवारण करने के लिए, और संतान प्राप्ति, और संतानों की उन्नति व प्रगति के लिए शनि प्रदोष का व्रत । शनिवार के दिन का प्रदोष विशेष महत्व का दिन बन जाता है, इसलिए इस दिन को शनि प्रदोष कहा जाता है। इसका संपादन करने से संतान उत्पन्न होगी, संतान की समस्याओं का निवारण होगा और सन्तान के रोगों का निवारण होगा। इसके अतिरिक्त, कर्मजीवन की सभी समस्याओं को दूर करने, न्याय प्राप्त करने के लिए, और शनि के दुष्प्रभाव और समस्याओं से बचने के लिए इस व्रत का पालन करने का विधान है।

प्रदोष का व्रत कब शुरू करें?
यह व्रत हमेशा लिया जा सकता है। हर प्रदोष महत्वपूर्ण और विशेष है। यद्यपि व्रती का अपना विशिष्ट उद्देश्य है, तो दिन से संबंधित प्रदोष के दिन से उपवास शुरू करना सबसे अच्छा है, जैसे कि शुक्र के दिन से तकनीकी कौशल बढ़ाना, और गुरु के दिन से दुश्मनों का सफाया करना, साथ ही शनि प्रदोष के दिन से संतान की प्रगति की कामना करना।  हालांकि, व्रत शुरू करते समय, आमतौर पर शुक्ल पक्ष में आने बाले किसी एक प्रदोष से लेना अच्छा माना जाता है।
धर्म शास्त्रों में, प्रदोष की महिमा बहुत है। इस दिन, भगवान शिव की पूजा और भक्ति सभी बाधाओं और संकटों से भक्तों को बचाएगी, और वे अपने दिल की असीमित इच्छाओं को तृप्त कर लेंगे । अब मैं इस बारे में बात कर रहा हूं कि प्रदोष को कैसे संपादित किया जाए।
इस व्रत में भगवान शंकर भगवान महादेव की पूजा और आराधना करने का विधान है। व्रत के दिन, दम्पती को एक साथ सुबह स्नान करना चाहिए और शिव, पार्वती और गणेश की संयुक्त पूजा के लिए शिव मंदिर जाना चाहिए। सुबह भगवान शिव को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत और धूप अर्पण के साथ स्नान और पूजा करनी चाहिए। शाम को फिर से स्नान करके शिव की पूजा की जानी चाहिए। इस तरह, पवित्र भाव से उपवास व पूजा करने से व्रती की इच्छा पूरी हो जाती है।
व्रत के माध्यम से, भगवान सदाशिव को तुरंत और जल्दी से प्रसन्न किया जा सकता है। प्रदोष के महत्व पर एक शास्त्रीय कहानी में चर्चा की गई है, और इस कहानी में भगवान शिव के सिर में चंद्रमा के निवास के बारे में बताया गया है ।
पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था जिन्हें हम नक्षत्र के रूप में जानते हैं। विवाह के पश्चात बाकी कन्याओं ने अपने पिता से शिकायत की कि उनके पति सिर्फ रोहिणी पर ही अपना सारा प्यार लूटा रहे हैं और बाकी सबकी उपेक्षा कर रहे हैं। दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया और कहा कि वो सबसे समान भाव रखें किंतु चंद्रदेव ने कहा कि ये उनका निजी मामला है इसमें दखल देने का उन्हें कोई अधिकार नहीं तब क्रोध में आकर दक्ष ने उन्हें कांतिहीन होने का श्राप दे दिया क्योंकि चंद्रदेव को अपने रूप और तेज का बड़ा घमंड था। श्राप मिलने के बाद वो लगे क्षमायाचना करने किन्तु दक्ष ने उनकी एक न सुनी तब नारद जी ने उन्हें भोलेनाथ की तपस्या करने का सुझाव दिया। चंद्रदेव ने तब सोमनाथ की स्थापना की और तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। भोलेनाथ आकर बोले मैं तुम्हारा श्राप खत्म तो नहीं कर सकता किन्तु उसका असर कम कर दूंगा, आज से एक पक्ष तक तुम्हारा रूप धीरे धीरे कम होगा (जिसे हम कृष्ण पक्ष कहते हैं) और पूरा तेज खत्म होने के बाद धीरे धीरे अगले पक्ष में बढ़ते बढ़ते (जिसे हम शुक्ल पक्ष कहते हैं) पूर्ण तेज को प्राप्त होगा और ऐसा कह कर उन्हें अपने शीश पर धारण कर लिया। 
रविवार, 5 अप्रैल को रवि प्रदोष है, आइए, जानते हैं कि रवि प्रदोष के पवित्रता के साथ संपादन करने के बाद क्या लाभ है -
1. सूर्य प्रदोष का व्रत लेने से जीवन में स्वास्थ्यलाभ होता है । मन प्रसन्न हो जाता है, असीम सुख और शांति आती है। नतीजतन, एक व्यक्ति का जीवन काल लंबा हो जाता है और वह दीर्घायु बन जाता है ।
2. सूर्य ही रवि है। इसलिए, इस दिन का प्रदोष का सीधा सम्बन्ध सूर्य से है। हमारे भौतिक जीवन के प्रत्यक्ष देवता सूर्य और चंद्रमा हैं। इस तरह, रवि प्रदोष को संपादन करने के बाद आपके जीवन में सूर्य व चन्द्र दोनों का सक्रिय होने का अवसर होता है। नतीजतन, आपका मन और मस्तिष्क दोनों बेहतर परिणाम देने की शक्ति प्राप्त करते हैं। सूर्य से संबंधित सभी समस्याओं को रवि प्रदोष के व्रत को संपादित करके हल किया जा सकता है।
3. आपके व्यक्तित्व, नाम, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा और उच्च पद में सूर्य ग्रह का विशेष बल है। इसलिए भले ही आपकी कुंडली में सूर्य मजबूत हो या कमजोर हो, इस व्रत को संपादित करने से आपको केवल अच्छे ही अच्छे परिणाम मिलने हैं।
4. मानव जीवन में अधिकांश समस्याओं और क्लेशों को कम करने में मदद करने के लिए प्रदोष का व्रत है। पुराणों में स्पष्ट से बताया गया है, प्रदोष का व्रत संपादन करने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार के संकट का सामना नहीं करना पड़ता है। उनके जीवन में धन और समृद्धि की कोई कमी नहीं होती है।
5. इसलिए मानव जीवन में रवि प्रदोष का विशेष महत्व है। शरीर के सभी रोगों को रवि प्रदोष के व्रत से ठीक किया जा सकता है। इसका उपवास जीर्ण रोग और महामारी के प्रकोप से भी राहत देता है। और व्यक्ति स्वयं और परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए स्वच्छ स्वास्थ्य और लंबी आयु प्राप्त कर सकता है।
6. शिव और सूर्य की पूजा एक साथ होने का व्रत है, रवि प्रदोष व्रत। इस पूजा से व्रती को दिल की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

रविवार और त्रयोदशी तिथि को मिलाकर रवि प्रदोष योग बनता है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से लंबे जीवन, अच्छे स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। यहां इस व्रत की कथा है
एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया  करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के  लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें  मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो।  
बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां  है?  
तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?  
बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं। 
यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है  अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।  
बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह  बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को  खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा  के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।  
ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन  प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र  की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।  
भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस  राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा  उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।  
प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया।  बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई।  
सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके  माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें  भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण  को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। भगवान  शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा। भगवान शिव की दया से उसकी गरीबी नष्ट हो गई।
अब बात करते हैं कि रवि प्रदोष में कौन से विशेष कार्य उचित होंगे।
- सुबह धूप उगने से पहले उठें, सूर्योदय से पहले ही शुद्ध जल से या किसी पवित्र नदी के पानी से स्नान करें।
- स्नान की दिनचर्या से निवृत्त होने के बाद, तांबे के कलश या लोटे में शुद्ध पानी या गंगाजल भरें और उस पानी में कुमकुम, शहद या चीनी, लाल फूल डालें और दोनों हाथों से कलश को पकड़कर अपने सिर के ऊपर उठाएं और सूर्य को अर्घ्य दें । इस तरह, अर्घ्य से गिरते हुए पानी से सूरज की बिम्ब को देखना सबसे अच्छा है।
- उपवास के दिन, भगवान शिव के मंत्र, ॐ नमः शिवाय, और सूर्य का बीज मंत्र ॐ घृणि सूर्याय नमः का लगातार जप करना अच्छा होता है।
- शाम के समय भगवान शिव की पूजा दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और विभिन्न पूजन सामग्रियों से करें।
- भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाते समय आप चावल की खीर और मीठे फल या मिठाइ चढ़ा सकते हैं।
- जब तक संभव हो, निर्जल व्रत (बिना पानी पिए) भी लें, लेकिन शरीर कमजोर होने पर केवल उसी भोजन का त्याग करना सबसे अच्छा है, जो आप से बरदास्त हो । ऐसे मामलों में जहां भोजन का त्याग किया जा सकता है, किसी भी रविवार के व्रत या रवि-प्रदोष के दिन नमक नहीं खाना सबसे अच्छा है।
- जो लोग इस व्रत का व्रत करते हैं, उन्हें नेत्रहीनों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा प्रदान करना चाहिए, और पेट भर के खीर का भोजन कराना उत्तम है।
- अपने घर की पूर्व दिशा की सफाई करें और वहां दीपक जलाएं। गायत्री मंत्र के पाठ से, व्यक्ति रवि प्रदोष में पूर्णता प्राप्त करता है।
- इस दिन भगवान सूर्य के किसी भी मंत्र, कवच या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से भी अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे।
- जो व्यक्ति सूर्य और शिव की दया प्राप्त करना चाहता है, उसे किसी भी हालत में पिता या पितातुल्य व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। हर दिन, इन लोगों के पैर पकडकर आशीर्वाद प्राप्त करने का अभ्यास करना चाहिए।
अब आखिरी बात
अब हम एक वैश्विक महामारी से त्रस्त हैं। सूर्य में वह विशेष शक्ति और ताकत है, जो हर बीमारी और महामारी को ठीक कर देती है। अब, लॉकडाउन के मामले में, हमें इस प्रतिज्ञा का पालन करने और व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वास्थ्य की रक्षा करने का विशेषाधिकार है। इसलिए, दिन के नियमों का पालन करते हुए, हम इस रविवार का उपवास करें, प्रदोष के समय (शाम के लगभग साढ़े छह बजे) आशुतोष भगवान शिव और जगत प्रकाशक सूर्य की पूजा पूरी करें, और अंत में, घर के सभी बल्बों को बुझाएं और कमसे कम परिवार के सदस्यों के संख्या के बराबर नहीं तो केवल एक दिया घर के बाहर जला दें । इस कार्यक्रम को प्रधानमन्त्री मोदी जी ने भी आह्वान किया है, जो हमारे धर्मशास्त्र के अनुकूल है । यह कार्य न केवल हमारी भक्ति व श्रद्धा को पूरा करता है, बल्कि उन लोगों की आध्यात्मिक भावनाओं को भी पूरा करता है, जिन्हें वैश्विक महामारी के संकट से बचाना है । अपने को स्वस्थ रखना है और परिवार को तन्दुरुस्त रखना है । जय शिवशङ्कर ।

लॉकडाउन, मोदी जी का दीपक और रवि प्रदोष व्रत का संयोग लॉकडाउन, मोदी जी का दीपक और रवि प्रदोष व्रत का संयोग Reviewed by कृष्णप्रसाद कोइराला on अप्रैल 04, 2020 Rating: 5

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